चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी - C. Rajagopalachari Biography In Hindi
दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, लेखक और वकील “चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी” ( C. Rajagopalachari Biography) के बारे में.
एक झलक C. Rajagopalachari की जीवनी पर :
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, लेखक और वकील के रूप में प्रसिद्ध रहे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी जोकि भारत के अंतिम गवर्नर जनरल भी थे. जिन्होंने अपने जीवनकाल में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहकर कार्य किया. राजनीतिक क्षेत्र में भी उनका योगदान रहा.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को निभाया. और मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रमुख, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, भारत के गृह मंत्री और मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे. और देश की सेवा की. साथ उन्होंने एक राजनीतिक दल ‘स्वतंत्रता पार्टी’ की भी स्थापना की. उनके द्वारा सच्चे ह्रदय से देश की सेवा के कार्यों के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’ से भी उन्हें सम्मानित किया गया.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को निभाया. और मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रमुख, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, भारत के गृह मंत्री और मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे. और देश की सेवा की. साथ उन्होंने एक राजनीतिक दल ‘स्वतंत्रता पार्टी’ की भी स्थापना की. उनके द्वारा सच्चे ह्रदय से देश की सेवा के कार्यों के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’ से भी उन्हें सम्मानित किया गया.
प्रारंभिक जीवन :
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ( C. Rajagopalachari ) का जन्म 10 दिसम्बर 1878 को मद्रास प्रेसीडेंसी के सालेम जिले के थोरापल्ली गाँव में हुआ. उनके पिता जी का नाम चक्रवर्ती वेंकटआर्यन और माता जी का नाम सिंगारम्मा था. वो एक धार्मिक आएंगर परिवार से थे.
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राजगोपालाचारी जी शारीरिक रूप से बचपन में बहुत ही ज्यादा कमजोर थे, जिसके कारण परिवार वालो को लगता था की वो ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाएंगे. और जब उनकी आयु 5 साल की हुयी तो तब उनका परिवार होसुर चला गया.
शिक्षा :
होसुर में उनकी शिक्षा की शुरुवात आर. वी. गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी से हुयी. और उन्होंने सन 1891 में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा को पास किया. और उसके बाद अपना दाखिला बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज में कराया और वही से वर्ष 1894 में कला में स्नातक हुए.
इसके बाद कानून की पढाई के के लिए प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास में दाखिला लिया और सन 1897 में कानून की पढाई को पूरा किया.
स्वाधीनता आन्दोलन की ओर :
और उन्होंने कानून की पढाई के बाद सन 1900 के दौरान अपनी वकालत शुरू की और धीरे धीरे अच्छे वकीलों में उनका नाम होने लगा.
वकालत के दौरान ही बाल गंगाधर तिलक जी से काफी प्रभावित थे. और उन्हें से प्रभावित होकर C. Rajagopalachari जी ने राजनीति में प्रवेश किया. और फिर राजनीति के सफ़र में आगे बढ़ने लगे सालेम नगर पालिका के सदस्य बने उसके बाद अध्यक्ष चुने गए. भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सदस्य बन गए और धीरे-धीरे इसकी गतिविधियों और आंदोलनों में अपना सक्रीय योगदान देने लगे. कांग्रेस के कलकत्ता और सूरत अधिवेसन में सन 1906 और 1907 में भाग लिया.
स्वाधीनता आन्दोलन :
वह एनी बेसेंट और सी. विजयराघव्चारियर जैसे प्रसिद्ध नेता से बहुत ही ज्यादा प्रभावित थे. देश की आज़ादी को लेकर महात्मा गाँधी जी स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय हुए तब राजगोपालाचारी जी उनके अनुगामी बन गए. और अपनी वकालत को छोड़ कर असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए.
नो चेन्जर्स’ समूह के नेता :
जब अंग्रेजी सरकार द्वारा ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1919’ को लागु किया तब उन्होंने इसका विरोध किया और ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल’ के साथ-साथ राज्यों के ‘विधान परिषद्’ में प्रवेश का भी जोरदार विरोध करते हुए ‘नो चेन्जर्स’ समूह के नेता बन गए. और "नो चेन्जर्स" ने "प्रो चेन्जर्स" को हरा दिया जिसके कारण मोतीलाल नेहरु और चितरंजन दास जैसे नेताओं ने अपना इस्तीफा दे दिया
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उन्हें कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य वर्ष 1921 में बनाया गया और वह कांग्रेस के महामंत्री भी रहे. कांग्रेस द्वारा सन 1922 में गया अधिवेसन में उनको एक नयी पहचान मिली. और 1924 से लेकर 1925 तक वैकोम सत्याग्रह में सक्रीय भूमिका निभाई.
तमिलनाडु कांग्रेस समिति :
और इसी तरह उनकी उपलब्धियां बढती गयी और राजगोपालाचारी जी तमिल नाडु कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में उभर के सामने आये. और तमिलनाडु कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी बन गए.
नमक सत्याग्रह :
गांधीजी ने सन 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान दांडी मार्च किया, तब C. Rajagopalachari जी ने नागपट्टनम के पास वेदरनयम में नमक कानून तोड़ा जिसके कारण अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया.
द्वितीय विश्व :
पूरा विश्व द्वितीय विश्व की आग में जल रहा था. तब अंग्रेजी सरकार ने भारत के लोगो को शामिल करना चाह तो इसका विरोध किया और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. दिसम्बर 1940 में अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार करके उन्हें एक वर्ष की सजा सुना दी और जेल भेज दिया.
भारत छोड़ो :
भारत की आज़ादी को लेकर अंग्रेजी सरकार के विरोध में पूरा भारत एकजुट हो गया था. तब सन 1942 को गाँधी जी द्वारा ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन की शुरुआत की गयी.
पश्चिम बंगाल का प्रथम राज्यपाल :
अंग्रेजो से भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ. उस दौरान बंगाल दो हिस्सों में बंट गया था तब भारत के हिस्से वाले पश्चिम बंगाल का प्रथम राज्यपाल C. Rajagopalachari जी को बनाया गया.
भारत के गवर्नर जनरल :
10 नवम्बर से 24 नवम्बर 1947 के दौरान रहे गवर्नर जनरल माउंटबेटन के अनुपस्थिति में राजगोपालाचारी ने कार्यकारी गवर्नर जनरल के रूप में रहे और उसके बाद जून 1948 से लेकर 26 जनवरी 1950 तक गवर्नर जनरल रहे. इसी तरह वो भारत के अंतिम ही नहीं बल्कि प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल बने.
गृह मंत्री :
सन 1950 में नेहरू जी ने अपनी सरकार में उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया. जहाँ वो बिना किसी मंत्रालय के मंत्री थे.
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सरदार पटेल जी के निधन के बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी को गृह मंत्री बनाया गया देश का. लेकिन मात्र 10 माह के बाद उन्होंने बहुत सारे मुद्दों पर हुए मतभेदों के कारण अपना गृह मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया. और मद्रास चले गए.
मुख्यमंत्री :
मद्रास के मुख्यमंत्री पद पर दो साल तक मद्रास की सेवा की. और उसके बाद उन्होंने सक्रीय राजनीति से अपना सन्यास ले लिया.
भारत रत्न :
देश की सेवा के लिए दिए गए योगदान को देखते हुए उन्हें सन 1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.
साहित्य अकादमी पुरस्कार :
राजनीति से अपना सन्यास लेने के बाद उन्होंने लेखन क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया और उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी. सन 1958 में उनके द्वारा लिखी पुस्तक ‘चक्रवर्ती थिरुमगन’ के लिए तमिल भाषा के साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया.
स्वतंत्रता पार्टी की स्थापना :
कांग्रेस की सदस्यता से उन्होंने जनवरी 1957 में अपना इस्तीफ़ा दे दिया और उसके बाद सन 1959 में मुरारी वैद्या और मीनू मसानी के साथ मिलकर एक नए राजनैतिक दल के रूप में ‘स्वतंत्रता पार्टी’ की स्थापना की.
निधन :
उम्र के साथ साथ उनका लगातार स्वास्थ्य बिगड़ने लगा जिसके कारण उनको 17 दिसम्बर 1972 को मद्रास गवर्नमेंट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, और 25 दिसम्बर 1972 को उनका निधन हो गया.