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जाने राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की जीवनी - Mahatma Gandhi Biography in Hindi

राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की जीवनी - Mahatma Gandhi Biography in Hindi

दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं, सत्य, अहिंसा व शांति के मार्ग पर चल कर आज़ादी दिलाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी,  राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की जीवनी - (Mahatma Gandhi Biography in Hindi) के बारे में.  

आईये तो शुरुआत करते हैं इस पोस्ट की इस लाइन के साथ, "दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

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सत्य, अहिंसा व शांति के मार्ग पर चल कर आज़ादी दिलाने वाले राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 को गुजरात में स्थित काठियावाड़ के पोरबंदर नामक गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था. जोकि ब्रिटिश काल में वो गुजरात में स्थित काठियावाड़ (पोरबंदर) की एक छोटी सी रियासत के दीवान थे.
महात्‍मा गांधी जी की माता का नाम पुतलीबाई परनामी था जोकि वैश्य समुदाय से थीं. करमचंद गांधी की ये चौथी पत्नी थी. इससे पहले तीनो पत्नियों का स्वर्गवास हो गया था प्रसव के दौरान ततपश्चात करमचंद गांधी ने चौथी शादी की थी.

पुतलीबाई शुरू से ही धार्मिक विचारधारा की थी जिसके कारण गाँधी जी के ऊपर विशेष प्रभाव रहा. बचपन से ही धर्म कांड और निर्बलो की सहायता करने के प्रति श्रद्धा भाव था.

वाल्या अवस्था में विवाह:- गाँधी जी का विवाह कम आयु में ही करा दिया गया था जब वो मात्र 13 साल के हुए थे. मई 1883 में कस्तूरबा माखनजी से जिनकी उम्र गाँधी जी से एक वर्ष ज्यादा थी. विवाह के समय कस्तूरबा माखनजी की उम्र 14 साल की थी. बाल विवाह की यह प्रथा उस समय मान्य थी समाज में, जिसके कारण उनके माता पिता ने यह शादी करायी थी.

शिक्षा:- गाँधी जी की शिक्षा की शुरुआत काठियावाड़ से ही प्रारम्भ हो गयी थी. प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद 4 सितम्बर 1888 उच्च शिक्षा हेतु वो लंदन चले गए कानून शिक्षा की पढाई करने के लिए और कानून की शिक्षा प्राप्त कर के वो भारत वापस लौट आये और मुंबई में रह कर उन्होंने वकालत का कार्य प्रारम्भ किया,

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परन्तु उनको इस पेशे में कोई ज्यादा सफलता नहीं मिली. और इस असफलता के बाद उन्होंने राजकोट को अपना कार्यस्थल के रूप में चुना और वहा वकालत की अर्जियां गरीब जरूरतमंद लोगो के लिए लिखने लगे.. परन्तु यह कार्य भी छोड़ना पड़ा एक मुर्ख अंग्रेज के चलते.

और इसी के बाद गाँधी जी सन 1893 में एक वर्ष के करार पर वकालत करने के लिए दक्षिण अफ्रीका की एक भारतीय फर्म में न्यायिक सलाहकार के तौर पर चले गए. और उन्होंने अपने जीवन के 21 वर्ष वही व्यतीत किये और वही से उनकी शुरुआत हुयी राजनीति विचार और कुशल नेतृत्व किया.

भारतीयों पर भेदभाव : 
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर भेदभाव होते थे जिसके चलते गाँधी जी को भी इसी नज़र से वहा के लोग देखते थे. एक बार तो उन्हें ट्रेन के डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया था, उनके पास प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट भी थी लेकिन उन्होंने बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार से इंकार किया और इसी के चलते उन्हें ट्रेन के डिब्बे से बाहर फेक दिया गया. इतना ही नहीं गाँधी जी अपनी शेष यात्रा को पूरी करने के लिए पायदान पर सफ़र किया लेकिन एक यूरोपियन यात्री के अन्दर आने पर चालक की मार भी खानी पड़ी. और गाँधी जी को यह यात्रा काफी दुखदायी बीती.
अफ्रीका के कटी नामी होटलों में तो इनका प्रवेश ही वर्जित कर दिया था इस तरह तमाम प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिया गया था. एक बार की घटना और भी दुखदायी थी जब गाँधी जी को न्यायाधीश ने न्यालय के अन्दर पगड़ी उतारने का आदेश सुनाया और इस आदेश को गाँधी जी ने नहीं माना.

अन्याय के खिलाफ ज्वाला :
इसी तरह हो रही बार बार की घटनाओ से उनके जीवन में एक नया मोड़ आना शुरू हो गया. और उनके ह्रदय में अन्याय के खिलाफ ज्वाला जलने लगी और सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुकता बढ़ी. और इसी तरह सामाजिक अधिकारों के लिए प्रेरणा मिली.

दक्षिण अफ्रीका में हो रहे, भारत के लोग के साथ, अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिए भारतियों को प्रेरित किया अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए. गाँधी जी ने भारतियों की नागरिकता सम्बंधित मुद्दे को भी उठाया दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के सामने. सन 1906 के ज़ुलु युद्ध के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों को अपनी तरफ से प्रेरित किया की भारतीयों को भर्ती करने के लिए.

आन्दोलन:-
और इसी तरह गाँधी जी को राजनीति के क्षेत्र में एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में जाना जाने लगा और इसी बढ़ते कद को देखते हुए उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले जी ने गाँधी जी को भारत आने को कहा.

राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की जीवनी - Mahatma Gandhi Biography in Hindi

और गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से वर्ष 1914 भारत वापस लौट आये. गोखले जी के विचार गाँधी जी के विचार से मेल खाते थे. और काफी प्रभावित थे गोखले जी के विचारो से गाँधी जी. आते ही देश के कई भागो का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की.

1918 चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह :
गाँधी जी ने अपना आन्दोलन किसानो के हित को लेकर शुरू किया. बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में. किसानों को खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करने के लिए बुरी तरह से मजबूर कर रहे ब्रिटिश ज़मींदार के खिलाफ.
चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह - यह चित्र indiatoday से ली गयी हैं 
लगान के खिलाफ. हड़ताल अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी लगान (कर) के खिलाफ. हड़ताल और विरोध प्रदर्शन भी किया और उसका पूरा नेतृत्व किया और इस आन्दोलन के बाद आखिरकार हुकूमत को गरीब किसानो की मांगो के आगे झुकाना पड़ा और किसानो की इस जायज मांग को माना गया.

गुजरात में स्थित खेड़ा गाँव में सन 1918 में आई बाढ़ के कारण पूरा इलाका सूखे की चपेट में आ गया. जिसके कारण गरीब किसान की ज़िन्दगी बद से बद्तर हो गयी. किसान अपने लगान (कर) माफ़ी की मांग करने लगे.

जिसके लिए गाँधी जी फिर आगे आये इस बार उनका मार्ग दर्शन सरदार पटेल ने किया और अंग्रेजों के साथ किसानो के कर माफ़ी की समस्या पर वार्ता की और किसानो का नेतृत्व किया.

इस वार्ता के बाद अंग्रेजो ने कर ना देने वाले बंदी किसानो को रिहा किया और राजस्व संग्रहण से किसानो को मुक्ति दी. और इसी के साथ साथ गाँधी जी की प्रसिद्धि और बढ़ गयी पुरे देश में. और वो स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बन गए लोगो का उन्हें समर्थन मिलने लगा.

असहयोग आन्दोलन लगातार तेजी से बढती लोकप्रियता के कारण गाँधी जी को कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया. गाँधी जी का मानना था की वे अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ अगर हम सब मिल कर उनके हर बातो का अहिंसा तथा शांतिपूर्ण ढंग से असहयोग करे तो हमारी आजादी संभव हैं.

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और इसी बीच हुआ जलियावांला नरसंहार पुरे देश को हिला दिया था. लोगो में भारी गुस्सा था और यह गुस्सा हिंसा की ज्वाला बन कर दहक उठा था.

विदेशी वस्तुओं बहिष्कार :
और इसी को लेकर जनता ने असहयोग आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. जिसमे लोगो ने विदेशी वस्तुओं बहिष्कार करना शुरू कर दिया. अंग्रेजों द्वारा बनाए गए वस्त्रों की जगह लोगो ने खुद के हाथो बनाये गए खादी के वस्त्रो का उपयोग करना शुरू कर दिया.


गाँधी जी के इस आवाहन में पुरूषों और महिलाओं को रोज़ सूत कातने के लिए कहा. इसके साथ ही उन्होंने ब्रिटेन की शिक्षा संस्थाओं और न्यायालयों का बहिष्कार भी करने को कहा. सरकारी नौकरी तथा अंग्रेजी हुकूमत से मिले तोहफे तमगे सम्मान सभी कुछ लौटाने की भी बात कही, और लोगो से इस पर अमल करने के लिए विनम्र अनुरोध भी किया.

और इसके फलस्वरूप असहयोग आन्दोलन को लोगो का समर्थन मिला और इस आन्दोलन सफलता मिली. जिसमे समाज के सभी वर्गों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और लोगो में आज़ादी को लेकर उत्साह बढ़ा.

चौरा कांड :
लेकिन फरवरी 1922 में हुयी -चौरा कांड की हिंसक घटना को देखते हुए गाँधी जी ने यह आन्दोलन वापस लेना पड़ा. और अंग्रेजी सरकार ने गाँधी जी पर राजद्रोह का मुकदमा चला के छह साल कैद की सजा सुना दी. पर उनकी ख़राब स्वास्थ्य को देखते हुए फरवरी 1924 में रिहा कर दिया गया.
स्वराज और नमक सत्याग्रह: रिहा होने के बाद 1924 से 1928 तक सक्रिय राजनीति से काफी दूर रहे. क्युकी इस बीच गाँधी जी स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच चल रहे मनमुटाव को कम करने में जुटे थे. और इसी के साथ वो शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ संघर्ष करते रहे.

स्वराज और नमक सत्याग्रह का यह चित्र en.wikipedia.org से लिया गया हैं 
और इसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत के जॉन साइमन के नेतृत्व में एक सुधार आयोग बनाया गया लेकिन उस आयोग में कोई एक भी व्यक्ति भारतीय नहीं था. और इसी कारण भारतीय राजनैतिक दलों ने इस आयोग का बहिष्कार किया.

और इसी के पश्चात गाँधी जी ने दिसम्बर 1928 कलकत्ता अधिवेशन में अंग्रेजी सरकार को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा. और चेतावनी दी की अगर एसा नहीं किया तो देश की आज़ादी के लिए असहयोग आंदोलन करेंगे उसका सामना करने को अंग्रेजी सरकार तैयार रहे.

लेकिन अंग्रेजो द्वारा इस का कोई जवाब नहीं मिला. तब 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया. और इसी के साथ कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 में भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया.

दांडी यात्रा :
उसी समय नमक पर कर लगाने के विरुद्ध गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह चलाया, और इस नमक सत्याग्रह के लिए उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रेल को अहमदाबाद से दांडी, गुजरात तक लगभग 388 किलोमीटर यात्रा की. और इस यात्रा का मात्र उद्देश्य खुद नमक का उत्पाद करना था.

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और इस सत्याग्रह में हजारो की संख्या में भारतीयों ने सहयोग दिया. और इस सत्याग्रह से अंग्रेजी सरकार विचलित हो गयी और लगभग 60 हज़ार से अधिक भारतीयों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

दांडी यात्रा का यह चित्र AajTak से लिया गया हैं 
और इसके बाद लार्ड इरविन ने प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ बैठ कर इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करने का फैसला लिया. और मार्च 1931 में हस्ताक्षर के माध्यम से संधि हुयी. और इस संधि के कारण सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने को तैयार हो गयी सरकार.

गोलमेज सम्मेलन :
और इस संधि के बाद कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधी जी लंदन में आयोजित होने वाली गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया. पर यह सम्मलेन कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादियों के लिए घोर निराशाजनक रही. और गाँधी जी फिर से एक बार गिरफ्तार हो गए.

भारत राष्ट्र का निर्माण :
कांग्रेस की सदस्यता से 1934 में गांधी ने इस्तीफ़ा दे दिया. और उसके बाद निचले स्तर से शुरुआत की भारत राष्ट्र के निर्माण की और इस निर्माण कार्य पर अपना ध्यान लगाया भारत को छुआछूत के खिलाफ और ग्रामीण भारत शिक्षित करने में. और इस आन्दोलन को जारी रखने के लिए

राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की जीवनी - Mahatma Gandhi Biography in Hindi

ग्रामीणों को कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया ताकि लोगो की आवश्यकतायें पूरी हो और शिक्षित भारत बनाने के लिए.साथ ही शिक्षा प्रणाली को बढाने  का कार्य भी शुरू किया.

हरिजन आंदोलन:- दलित नेता बी आर अम्बेडकर अछूतों को सम्मान दिलाने के लिए किये गए लगातार कोशिशों के परिणामस्वरूप अंग्रेजी सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान मंजूर कर दिया था.

छुआ छुत का विरोध :
येरवडा की जेल में बंद गांधीजी ने छुआ छुत के विरोध में सितंबर 1932 में छ: दिन का उपवास कर अनसन किया और अंग्रेजी सरकार को सब के लिए एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने के लिए मजबूर कर दिया. अछूतों को सम्मान और हक दिलाना साथ ही उनके जीवन को सुधारने के लिए यहअभियान की शुरूआत थी.

हरिजन आंदोलन :
गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 8 मई 1933 को 21 दिन का उपवास किया और एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए.

लेकिन इसके विपरीत अमबेडकर जी इस आन्दोलन से खुश नहीं थे और गांधी जी द्वारा दलितों के लिए संबोधन किये गए हरिजन शब्द की निंदा की.

द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आन्दोलन : द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ के दौरान अंग्रेजों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने के पक्षधर थे. किन्तु इस विचार से कांग्रेस के बहुत से नेता सहमत नहीं थे. क्युकी जनता के प्रतिनिधियों के बिना सलाह के सरकार ने देश को युद्ध की आग झोंक दिया था,

गाँधी जी ने घोषणा की एक तरफ तो सरकार भारत को आजादी देने से इंकार कर रही हैं और दूसरी तरफ लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत के लिए भारत को युद्ध में शामिल कर रही हैं.

भारत छोड़ो आन्दोलन :
जैसे जैसे द्वितीय विश्व युद्ध अपनी चरम सीमा पर बढ़ रहा था वैसे-वैसे गाँधी जी और कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो” आन्दोलन की मांग को और तेज कर दिया. और देखते देखते ‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन का यह संघर्ष और शक्तिशाली बन कर उभरने लगा.


और इस ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन जिसमे व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई. और इस आन्दोलन में हजारों की संख्‍या में भारत के स्वतंत्रता सेनानी या तो शहीद हो गए या घायल हो गए, और साथ ही में हजारों गिरफ्तार भी कर लिए गए.

गांधी जी ने अपने घोषणा यह बात पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया था कि भारत ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक भारत को तत्‍काल आजादी न दे दी जाए.

करो या मरो का पाठ :
और साथ ही भी कहा की कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह ‘भारत छोड़ो’आन्दोलन बन्द नहीं होगा. गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतीय नागरिको को अहिंसा के साथ करो या मरो (डू ऑर डाय) का पाठ भी पढाया अनुशासन संयम बनाये रखने को कहा.

अंग्रेजी सरकार ने मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद गांधी जी को पुणे में स्थित आंगा खां महल ले गए और उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया.

कस्तूरबा गांधी का निधन :
और इसी बीच गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा गांधी का 22 फरवरी 1944 देहांत हो गया. और उसी के कुछ दिनों बाद जेल में ही गांधी जी मलेरिया के शिकार हो गए. और उनकी यह हालत देख कर अंग्रेज उन्हें जेल में नहीं छोड़ सकते थे, और उनके इलाज हेतु 6 मई 1944 को उन्हें रिहा कर दिया गया.



1 लाख के करीब गिरफ्तारी :
भारत छोड़ो आंदोलन आशिंक सफलता के बावजूद भी चलता रहा और उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक पहुचते पहुचते ब्रिटिश हुकूमत ने एक स्पष्ट संकेत दे दिया जल्द ही भारत की सत्ता भारतीयों को दे दी जाएगी.
और इस एलान के बाद गाँधी जी और उनके समर्थको ने भारत छोड़ो आंदोलन समाप्त कर दिया. और अंग्रेजी सरकार ने तुरंत ही 1 लाख के करीब गिरफ्तार राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया गया.

देश का विभाजन और आजादी:
ब्रिटिश सरकार द्वारा किये गए भारत की आज़ादी के एलान के बाद. एक आवाज़ और उठने लगी जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग मुसलमान देश की. और यह मांग लगातार तेज़ होने लगी. और इस आवाज़ को वास्तविकता में बदल डाला 40 के दशक में अलग राष्ट्र ‘पाकिस्तान’ के रूप में. इस मांग के खिलाफ थे गाँधी जी क्युकी उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत से बिलकुल अलग था यह निर्णय. लेकिन अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों में आखिर कार बाट ही दिया. भारत और पाकिस्तान को.

गाँधी जी की हत्या:
गाँधी जी की हत्या 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5:17 मिनट पर हुयी थी. उस समय वो एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे. गाँधी जी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की उनके सीने में 3 गोलियां दाग कर. अपने प्राण त्याग ने से पहले उनके मुख से आखिरी शब्द निकला 

"हे राम"
इस हत्या के दोषी नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी को गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाया गया 1949 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी.

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आशा करता हु कि आप सभी को  यह लेख पसंद आया होगा. धन्यवाद आप सभी मित्रों का जो आपने अपना कीमती समय इस Wahh Blog को दिया.

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