महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की जीवनी - Madan Mohan Malaviya Biography
दोस्तों आज के आर्टिकल Biography में जानते हैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की जीवनी (Madan Mohan Malaviya Biography in Hindi) के बारे में.
प्रारम्भिक जीवन परिचय:
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता, आदर्श पुरुष प. मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malaviya) का जन्म 25 दिसम्बर 1861 को इलाहाबाद के अहिल्यापुर मुहल्ले में हुआ था.
इनके पिता का नाम पण्डित बृजनाथ मालवीय था जोकि संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे. और वे श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर अपने परिवार की आजीविका चलते थे. प. मदन मोहन मालवीय की माता का नाम मूनादेवी था. मालवीय जी अपने माता-पिता की कुल सात संतानों में से पांचवे पुत्र थे. जो मध्य भारत के मालवा प्रांत से आकर प्रयाग (इलाहाबाद) में आकर बस गए थे.
शिक्षा :
संस्कृत भाषा में प्रारम्भिक शिक्षा लेने के लिए पाँच वर्ष की आयु में उनके पिता ने पण्डित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में दाखिला करा दिया और उन्होंने वही से प्रारंभिक शिक्षा को लिया साथ ही वही से उन्होंने प्राइमरी परीक्षा को उत्तीर्ण किया. मेट्रिक परीक्षा सन 1879 में पास की, और उसके बाद उन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा सन 1884 में दी.
परिवार की आर्थिक स्थित ठीक ना होने के कारण शिक्षा के दौरान ही उन्होंने कविताओं को लिखना प्रारम्भ कर दिया था. उनके द्वारा लिखी गयी कवितायें मकरंद के उपनाम से प्रकाशित होती थी, और लगातार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती थी.
विवाह:
मदन मोहन मालवीयजी की आयु जब 16 वर्ष की हुयी तब उनका विवाह वर्ष 1878 में मिर्जापुर की कुंदन देवी के साथ करा दिया गया. मालवीयजी की को पांच पुत्र और पांच पुत्रियां थी.
उल्लेखनीय कार्य की शुरुआत:
मदन मोहन जी की शुरुवात एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सन 1886 से हुयी.
उसी दौरान कलकत्ता में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में आयोजित हुयी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में भाग लेने के साथ हुयी. और वे इस अधिवेशन में अपना सर्वप्रथम भाषण दिया. वहा मौजूद लोगो ने उनके भाषण सराहा.
उसी दौरान कलकत्ता में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में आयोजित हुयी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में भाग लेने के साथ हुयी. और वे इस अधिवेशन में अपना सर्वप्रथम भाषण दिया. वहा मौजूद लोगो ने उनके भाषण सराहा.
पत्रकारिता की शुरुआत:
कालाकाँकर के देशभक्त राजा रामपाल सिंह भी इस अधिवेशन में आये हुए थे. मालवीय जी के भाषण का इन पर भी गहरा असर हुआ. और राजा रामपाल सिंह मालवीयजी से मिले और एक प्रस्ताव रखा उनसे. साप्ताहिक समाचार पत्र हिंदुस्तान का संपादक बनने का और उसका प्रबंधन संभालने का.
तब सन 1887 से हिन्दी अंग्रेजी समाचार पत्र हिन्दुस्तान का सम्पादन लगातार दो ढाई वर्ष करते रहे. और उसके बाद LLB की शिक्षा के लिए इलाहाबाद वापस आ गए और 1891 में उन्होंने अपनी एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी की.
उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस :
उसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस करने लगे. और बाद में पंडित मोती लाल नेहरु और सर सुंदर लाल जैसे प्रथम श्रेणी के वकीलों में उनकी गिनती होने लगी. इसी के बाद पं0 अयोध्यानाथ द्वारा संचालित इण्डियन ओपीनियन के सम्पादन में भी अपना योगदान दिया.
साप्ताहिक अभ्युदय की नीव:
सन 1907 में साप्ताहिक अभ्युदय की नीव रखी और उसका भी कार्यभार संभाला. बताते चले की अंग्रेजी सरकार समर्थक पायोनियर नाम से पत्र प्रकाशित होता था. उसके समकक्ष सन 1909 में दैनिक लीडर अखबार को निकाला और इसी के एक वर्ष बाद उन्होंने मर्यादा नामक पत्रिका को भी प्रकाशित की. और इसी तरह सम्पादन के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे. हिंदी के उत्थान में मालवीयजी की भूमिका प्रशंसनीय और ऐतिहासिक थी.
उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस :
उसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस करने लगे. और बाद में पंडित मोती लाल नेहरु और सर सुंदर लाल जैसे प्रथम श्रेणी के वकीलों में उनकी गिनती होने लगी. इसी के बाद पं0 अयोध्यानाथ द्वारा संचालित इण्डियन ओपीनियन के सम्पादन में भी अपना योगदान दिया.
साप्ताहिक अभ्युदय की नीव:
सन 1907 में साप्ताहिक अभ्युदय की नीव रखी और उसका भी कार्यभार संभाला. बताते चले की अंग्रेजी सरकार समर्थक पायोनियर नाम से पत्र प्रकाशित होता था. उसके समकक्ष सन 1909 में दैनिक लीडर अखबार को निकाला और इसी के एक वर्ष बाद उन्होंने मर्यादा नामक पत्रिका को भी प्रकाशित की. और इसी तरह सम्पादन के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे. हिंदी के उत्थान में मालवीयजी की भूमिका प्रशंसनीय और ऐतिहासिक थी.
महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की जीवनी - Madan Mohan Malaviya Biography
स्वराज्य के लिये कठोर तप :
भारत की आज़ादी में मालवीयजी का बहुत बड़ा योगदान रहा. सन 1886 से लेकर अपनी अन्तिम साँस तक स्वराज्य के लिये कठोर तप किया.
जो गान्धी-युग की कांग्रेस में हिन्दू मुसलमानों के बीच उत्पन्न विभिन्न मतों में सामंजस्य स्थापित करने में जुटे रहते थे और वे हमेशा नरम और गरम दलों के बीच की कड़ी बने रहे.
एनी बेसेंट ने ठीक कहा था कि "मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि विभिन्न मतों के बीच, केवल मालवीयजी ही हैं जो भारतीय एकता की मूर्ति बने खड़े हुए हैं.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) की स्थापना:
महामना पंडित मदन मोहन मालवीयजी द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय "बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय" की स्थापना सन 1916 में वसंत पंचमी के पावन पर्व पे की गयी थी.
वाराणसी में स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) को बनाने के लिए काशी नरेश ने भूमि का दान दिया और उसी भूमि पर इस विश्व विद्धालय का निर्माण हुआ.
जीवन का अंतिम पड़ाव:
मदन मोहन मालवीयजी अपने जीवन के अंतिम वर्षों में लगातार बीमार चलने लगे जिसके कारण उनका 12 नवंबर 1946 को निधन हो गया.
दोस्तों आईये जानते हैं अब महामना पंडित मदन मोहन मालवीयजी के विषय में कुछ अन्य रोचक जानकारिया इसी लेख में क्रमशः
1= जन्म 25 दिसम्बर 1861 को इलाहाबाद के अहिल्यापुर मुहल्ले में हुआ था.
2= पिता का नाम पण्डित बृजनाथ मालवीय था, और माता का नाम मूनादेवी था.
3=अपने माता-पिता की कुल सात संतानों में से पांचवे पुत्र थे.
4= पाँच वर्ष की आयु में संस्कृत की शिक्षा धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला ली थी.
5= सन 1878 में उनका विवाह कुंदन देवी से हुआ.
6= शिक्षा के दौरान आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण मकरंद के उपनाम से कवितायें लिखनी भी प्रारम्भ कर दी थी.
7= 1879 में उन्होंने म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से मेट्रिक की पढ़ाई पूरी की, जो आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है.
8= उनकी योग्यता को देखते हुए स्कूल के प्रिंसपल हैरिसन ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेज दिया. और वही से मालवीयजी ने सन 1884 में B.A. की पढाई की.
9= 1886 में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन में सम्मिलित हुए और उन्होंने अपना भाषण भी दिया जिसे वह उपस्थित लोगो ने काफी सराहा.
10= 1887 में राजा रामपाल सिंह के अनुरोध पर मालवीयजी ने राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान में बतौर संपादक नौकरी की.
11= 1889 में सम्पादकी का कार्य छोड़ कर एलएलबी की पढ़ाई हेतु इलाहाबाद वापस आकर एल.एल.बी. की पढ़ाई करने लगे.
12= 1891 में उन्होंने अपनी एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी कर ली बाद में वो पंडित मोती लाल नेहरु और सर सुंदर लाल जैसे प्रथम श्रेणी के वकीलों में उनकी गिनती होने लगी.
13= 1907 में पं0 अयोध्यानाथ द्वारा संचालित इण्डियन ओपीनियन के सम्पादन में भी अपना योगदान दिया.
14= 1909 में दैनिक 'लीडर' नामक अखबार निकाला.
15= 1909 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने.
16= 1910 में मर्यादा पत्रिका प्रकाशित की.
17= 1911 में वकालत की प्रेक्टिस छोड़ कर पूर्णत देश की सेवा में लग गए.
18= 1912 से लेकर 1926 तक इंपीरियल विधान परिषद के सदस्य बने रहे.
19= 1914 से लेकर 1946 तक ऑल इंडिया सेवा समिति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.
20= 1915 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के विधेयक को पास कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.
21= 1916 में उनके अथक प्रयासों से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई.
22= 1916 से लेकर 1918 तक औद्योगिक आयोग के सदस्य रहे.
23= 1919 से लेकर 1939 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया.
24= 1924 से लेकर 1946 तक राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान के संचालक दल के चेयरमैन रहे.
25= 1928 में साइमन कमीशन का जोरदार विरोध किया.
26= 1931 में प्रथम गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया.
27= 1939 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के लाइफ रेक्टर के पद पर नियुक्त किए गए.
28= 1941 में गोरक्षा मंडल नामक संस्था की स्थापना की.
29= 12 नवंबर 1946 को महामना पंडित मदन मोहन मालवीयजी का निधन हो गया.
दोस्तों आपने जाना इस आर्टिकल में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की जीवनी (Madan Mohan Malaviya Biography in Hindi) के बारे में. आशा करता हूँ यह लेख आपको पसंद आया होगा.
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