आचार्य नरेन्द्र देव की जीवनी – Acharya Narendra Dev Biography
दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद “आचार्य नरेन्द्र देव की जीवनी” (Acharya Narendra Dev Biography in Hindi) के बारे में.
एक झलक आचार्य नरेन्द्र देव के जीवन पर :
आचार्य नरेन्द्र देव भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद के साथ कांग्रेस समाजवादी दल के प्रमुख सिद्धान्तकार भी थे. हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, पाली आदि भाषाओं के ज्ञाता होने के साथ-साथ अध्यापक के रूप में उच्च कोटि के निष्ठावान शिक्षक और महान शिक्षाविद् भी थे.
देश की आज़ादी के लिए कई बार जेल भी गए. विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के धनी आचार्य नरेन्द्रदेव जी काशी विद्यापीठ, और उन्हें यही से आचार्य की उपाधि मिली तब से आचार्य नरेन्द्र देव के नाम से प्रख्यात हुए. साथ ही वो लखनऊ विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भी कुलपति रहे. भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सक्रीय सदस्यों में से एक थे. और सन 1916 से लेकर 1948 तक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी थे.
देश की आज़ादी के लिए कई बार जेल भी गए. विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के धनी आचार्य नरेन्द्रदेव जी काशी विद्यापीठ, और उन्हें यही से आचार्य की उपाधि मिली तब से आचार्य नरेन्द्र देव के नाम से प्रख्यात हुए. साथ ही वो लखनऊ विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भी कुलपति रहे. भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सक्रीय सदस्यों में से एक थे. और सन 1916 से लेकर 1948 तक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी थे.
आचार्य नरेन्द्र देव की जीवनी परिचय :
नरेन्द्र देव जी का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में 31 अक्टूबर, 1889 को हुआ. इनके पिता जी का नाम बलदेव प्रसाद था. जोकि पेशे से वकील थे. नरेन्द्र जी के बचपन का नाम अविनाशी लाल था. इनके पिता जी के एक परम मित्र ने अविनाशी लाल से नरेन्द्र देव नाम रख दिया था.
और इसी के बाद इनके पिता बलदेव प्रसाद सीतापुर जिले से अपने पैतृक नगर फैजाबाद वापस आ गए. और यही अविनाशी लाल (नरेन्द्र देव) का बचपन बिता.
नरेन्द्र जी के पिता जी अपने समय के जाने माने वकील के साथ साथ धार्मिक विचारधारा के इंसान थे. उन्हें राजनीति का भी थोडा बहुत ज्ञान था. जिसके कारण उनके घर पर धार्मिक, शिक्षित और नेताओं का आना जाना लगा रहता था.
जिसके कारण घर के वातावरण में ही उन्हें धार्मिक और सामाजिक माहोल मिला और इसी के चलते एक दिन उनकी मुलाकात अपने ही घर में स्वामी रामतीर्थ, पंडित मदनमोहन मालवीय, पं० दीनदयालु शर्मा आदि से हुयी. और उनके करीब आने का मौका मिला. और इसी के साथ उनके ह्रदय में भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम उमड़ा और राजनीति के क्षेत्र में उनका झुकाव हुआ.
आगे की शिक्षा के लिए वो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला कराया और यही से इन्होने बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और पुरातत्व के अध्ययन के लिए काशी के क्वींस कालेज चले गए. और सन 1913 में एम.ए. संस्कृत से किया.
कानून की पढाई : नरेन्द्र देव जी के पिता एक जाने माने प्रसिद्ध वकील थे तो उनकी इच्छा थी कि आगे नरेन्द्र देव भी वकालत करे और इसी पेशे को अपनाये, लेकिन इनका मन राजनीति के क्षेत्र में जाने का था. तब नरेन्द्र देव जी ने सोचा वकालत करते हुए राजनीति में आना बेहद आसान होगा. यही सोच कर उन्होंने कानून की पढाई की. कानून की पढाई करने के बाद सन 1915 से लेकर 1920 तक फैजाबाद में रहकर वकालत की.
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नरेन्द्र देव का राजनैतिक जीवन में प्रवेश :
नरेन्द्र देव जी अपनी पढाई के दौरान ही राजनीति की गतिविधियों में हिस्सा लेते रहे. और उसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ असहयोग आंदोलन प्रारंभ हुआ था तब उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ़ असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए अपनी वकालत को छोड़ दिया.
और काशी विद्यापीठ आ गए और वही उन्होंने अध्यापन के कार्य को प्रारंभ किया. उन्होंने विद्यापीठ में डॉ भगवानदास की अध्यक्षता में कार्य शुरू किया.
आचार्य की उपाधि : सन 1926 में उन्हें काशी विद्यापीठ के कुलपति बना दिए और इसी के बाद वे आचार्य नरेन्द्र देव के नाम से प्रसिद्द हुए.
वे अपने गरम विचारों के कारण भी पहचाने जाते थे. कांग्रेस से भी जुड़े थे और कांग्रेस के अधिवेशनों में उनके राजनैतिक विचार धीरे-धीरे गरम दल के लोगों से मेल खाने लगे.
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना : गरम विचारों के कारण पहचाने जाने वाले आचार्य नरेन्द्र देव जी कांग्रेस को, समाजवादी विचारों की ओर ले जाना चाहते थे. और इसी उद्देश्य से सन 1934 में जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया तथा अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ की स्थापना की और इसी के साथ इस पार्टी का प्रथम अधिवेशन हुआ जिसमे वो अध्यक्ष के रूप में रहे
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ की स्थापना के बाद जब कांग्रेस पार्टी ने ये कहा कि कांग्रेस के अंदर किसी भी अन्य दल की भागीदारी नहीं होगी तब वो अपने सहयोगियों से साथ कांग्रेस पार्टी की सदस्यता और पदों से इस्तीफा दे दिया.
और इसके बाद सन् 1916 में जब कांग्रेस का दोनों दलों में मेल हुआ, तब वापस कांग्रेंस में आ गए. और उसके बाद "ऑल इंड़िया कांग्रेस कमेटी" में सन 1916 से लेकर सन 1948 तक सदस्य रहे. और वो नेहरू जी के साथ "कांग्रेस वर्किंग कमेटी" में भी सक्रिय सदस्य के रूप में भी अपनी भूमिका निभाई.
आचार्य नरेन्द्र देव की जीवनी – Acharya Narendra Dev Biography
जेल यात्रा :
देश की आज़ादी के लिए कई बार जेल की यातनाएँ भी सहीं. अपने ख़राब चल रहे स्वास्थ्य के बावजूद नमक सत्याग्रह के दौरान 1930 में जेल हुयी. उसके बाद सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान 1932 में जेल हुयी. व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के दौरान 1941 में जेल हुयी.
‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन : 1942 के दौरान देश आज़ादी की ज्वाला बन कर धधकने लगा था. चारो तरफ ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन की अलख जल रही थी.
करो या मरो : 8 अगस्त को गांधी जी ने “करो या मरो” का सब के बीच अपना प्रस्ताव रखा. तब बंबई में कांग्रेस कार्यसमिति के तमाम सक्रीय सदस्यों के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया. इसी तरह सन 1942 से 1945 तक नेहरू जी और अन्य प्रसिद्द नेताओ के साथ अहमदनगर क़िले में नज़रबंद रहे.
कारावास के दौरान नेहरू जी आचार्य नरेन्द्र देव जी के विद्वत्ता से काफी प्रभावित हुए. और नेहरू जी ने अपनी लिखी पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ़ इंड़िया" की पांडुलिपि में संशोधन भी करवाया.
भाषाओँ के ज्ञानी :
राजनैतिक तथा समाजवादी विचारक धाराओं के साथ साथ एक प्रसिद्ध साहित्यकार और महान शिक्षाविद भी थे. इन्हें संस्कृत, हिन्दी के आलावा कई भाषाओँ का ज्ञान था. जिसमे अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, पाली, बंगला, फ़्रेंच और अन्य भाषाएँ भी शामिल हैं.
सन 1926 में काशी विद्यापीठ के कुलपति थे और इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भी कुलपति रहे. शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अपना बहुमूल्य योगदान दिया.
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बौद्धदर्शन का ज्ञान : उनकी विशेष रुचि बौद्धदर्शन के अध्ययन में रही, साथ ही वो उच्च कोटि के वक्ता भी रहे. उन्होंने समर्पित भाव से बौद्धदर्शन के अध्ययन में लगे रहे और अपने अंतिम समय में बौद्ध-धर्म-दर्शन के अध्यन को पूर्ण किया. और “अभिधर्मकोश” प्रकाशित कराया. साथ ही “अभिधम्मत्थसंहहो” का उन्होंने हिंदी अनुवाद भी किया.
प्रकाशित रचनाएँ :
आचार्य नरेन्द्र देव जी ने कई साप्ताहिक पत्रों का संपादन भी किया. और कई पत्र-पत्रिकाओं में इनके द्वारा लिखे लेख और टिप्पणियाँ समय-समय पर प्रकाशित भी होते रहे हैं.
नरेन्द्र देव जी “विद्यापीठ” त्रैमासिक पत्रिका, “समाज” त्रैमासिक, “जनवाणी” मासिक, “संघर्ष” और “समाज” आदि साप्ताहिक पत्रों का संपादन किया.
भाषणों के संकलन :
आचार्य जी उच्च कोटि के वक्ता भी थे. और उनके महत्त्वपूर्ण भाषणों में से कुछ इस प्रकार से हैं.
- राष्ट्रीयता औऱ समाजवाद
- समाजवाद : लक्ष्य तथा साधन
- सोशालिस्ट पार्टी औऱ मार्क्सवाद
- भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास
- युद्ध और भारत
- किसानों का सवाल
आखिरी सफ़र :
निधन : दमे की बीमारी से जूझ रहे आचार्य नरेन्द्र देव जी जब अपने इलाज की खातिर मद्रास के राज्यपाल श्रीप्रकाश के बुलाने पर मद्रास (चेन्नई) गए तब उनके दमे की बीमारी और बढ़ गयी जिसके कारण 19 फ़रवरी, 1956 को एडोर में उनका निधन हो गया. मृत्यु के समय उनकी उम्र 67 साल थी.
दोस्तों "Acharya Narendra Dev Biography" आचार्य नरेन्द्र देव की जीवनी को लिखने के लिए मैंने अधिकतर जानकारी किताबो तथा hi.wikipedia.org का अध्यन करके प्राप्त की हैं . जो इंटरनेट की दुनिया में एक ज्ञान का सागर हैं.
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