Dadabhai Naoroji Biography in Hindi - दादा भाई नौरोजी की जीवनी
दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं, भारतीय राजनीति के पितामह, पारसी बुद्धिजीवी, शिक्षाशास्त्री, सामाजिक राजनेता “दादा भाई नौरोजी की जीवनी” (Dadabhai Naoroji Biography in Hindi) के बारे में.
एक झलक दादा भाई नौरोजी की जीवनी पर :
भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार, शिक्षाविद और भारतीय राजनीति के पितामह कहे जाने वाले दादाभाई नौरोजी जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष भी रहे. वो दिग्गज राजनेता, उद्योगपति, शिक्षाविद और विचारक भी थे. अनेकों संगठनों का निर्माण दादाभाई ने किया. अंग्रेज़ी प्राध्यापक ने दादाभाई नौरोजी को 'भारत की आशा' की संज्ञा भी दी. लन्दन में स्थित विश्वविद्यालय में गुजराती के प्रोफेसर भी रहे. इन्हें लोग सम्मान से ‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया’ भी कहते हैं.
दादा भाई नौरोजी प्रारंभिक जीवन
दादा भाई नौरोजी का जन्म बम्बई के एक गरीब पारसी परिवार में 4 सितंबर, 1825 को हुआ. इनके पिता जी का नाम नौरोजी पलांजी डोरडी था. और माता जी का नाम मनेखबाई था.
दादाभाई की उम्र जब चार वर्ष की हुयी तब उनके पिता नौरोजी पलांजी डोरडी का निधन हो गया. जिसके कारण उनका पालन पोषण उनकी माता जी द्वारा हुआ.
शिक्षा :
माता जी पढी-लिखी नहीं थी लेकिन अपने पुत्र को अच्छी शिक्षा के लिए हमेशा आगे रहती थी. उनकी हमेशा यही इच्छा रहती थी की मैं तो अनपढ़ हूँ लेकिन मेरे पुत्र को यथासंभव सबसे अच्छी अंग्रेजी शिक्षा मिले. निर्धनता के बावजूद माता जी ने दादा भाई को उच्च शिक्षा दिलाई.
उन्होंने अपनी शिक्षा एल्फिंस्टोन इंस्टिट्यूट से पूरी की और वहीँ पर अध्यापक के तौर पर नियुक्त हो गए. 27 साल की उम्र में गणित और भौतिक शास्त्र में महारथ हासिल कर ली थी.
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और लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में पढ़ाने लगे थे. लन्दन में स्थित उनके घर तमाम भारतीय छात्र उनसे पढ़ने आते थे. उन छात्रो में से खास गाँधी जी भी थे. मात्र मात्र 25 बरस की उम्र में ही वो पहले भारतीय बने जो एलफिनस्टोन इंस्टीट्यूट में लीडिंग प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त हुए.
दादा भाई नौरोजी का स्वदेश प्रेम:
दादाभाई के ह्रदय में शुरू से ही देश के प्रेम था, और देश प्रेम के ही कारण वो लन्दन से भारत वापस चले आये. उस समय भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की हुकूमत चलती थी.
ब्रिटिश सरकार भारत वासियों के सामने अपने आप की छवि भारत को तरक़्क़ी के रास्ते पर ले जाने वाली बना रखी थी. लेकिन इसके विपरीत ही सारे कार्य हो रहे थे.
दादाभाई नौरोजी ने भारतवासियों के सामने तथ्यों और आंकड़ों से सिद्ध किया कि अंग्रेजी राज में भारत का, आर्थिक रूप से काफी नुकसान हो रहा है. देश लगातार निर्धन होता जा रहा है.
दादा भाई नौरोजी की जीवनी – Dadabhai Naoroji Biography in Hindi
लोगो का विश्वास : दादाभाई की बाते भारतीयों के दिल में घर कर गयी, और लोगों को उनकी बातों का विश्वास हो गया कि अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आज़ादी मिलनी चाहिए.
भारत भारतवासियों का है : देश के वो पहले इंसान थे जिन्होंने कहा कि भारत भारतवासियों का है. और भारत को आज़ाद कराना हैं. उनके द्वारा कही गयी इस बात से आने वाले कई देश भक्त नेता प्रभावित हुए जिनमे तिलक, गोखले और गांधीजी जैसे तमाम नेता भी शामिल हैं.
राजनैतिक जीवन :
राजनीति में प्रवेश: दादाभाई नौरोजी राजनीति के क्षेत्र में रह कर भी वर्षो देश की सेवा की. सन 1852 में राजनीति के क्षेत्र में उनका प्रवेश हुआ और राजनितिक गतिविधियों में सक्रीय हुए.
लीज के नवीनीकरण का विरोध: सन 1853 में ईस्ट इंडिया कंपनी की लीज के नवीनीकरण का भरपूर विरोध किया. और लीज के नवीनीकरण के खिलाफ़ उन्होंने अंग्रेजी सरकार को कई याचिकाएं भी लिखी, परन्तु तानाशाह ब्रिटिश सरकार ने उनकी याचिकाओं को नजर अंदाज करते हुए लीज का नवीनीकरण कर दिया.
ब्रिटिश कुशासन : उन्होंने आखिरकार यह महसूस किया कि लोगों की उदासीनता ही भारत पर ब्रिटिश कुशासन की वजह बनी. ब्रिटिश कुशासन के खिलाफ़ लडाई लड़ने के लिए सर्वप्रथम देश का शिक्षित होना आवश्यक हैं.
ज्ञान प्रसारक मंडली : और उन्होंने देश की शिक्षा दुरुस्त करने के उद्देश्य से युवकों की शिक्षा हेतु ‘ज्ञान प्रसारक मंडली’ की स्थापना की.
इंग्लैंड कि ओर रवाना : भारत की समस्याओं को लेकर उन्होंने कई दफा गवर्नर और वायसराय को कई याचिकाएं लिखीं. और उन्होंने देखा और महसूस किया कि ब्रिटेन में बैठे लोगो को और संसद को भारत की दुर्दशा के बारे में जानकारी देनी चाहिए. और इसी उद्देश्य से सन 1855 में इंग्लैंड के लिए रवाना हो गए. उस समय उनकी उम्र 30 साल की थी.
ईस्ट इंडिया एसोसिएशन’ की स्थापना : इंग्लैंड पहुचने के बाद दादाभाई ने लगातार कई प्रमुख संगठनों से मिले, भारत की दुर्दशा पर लेख लिखे और अपने भाषणों के जरिये भारत की समस्यायों को लोगो तक पहुचाया. और फिर 1 दिसंबर 1866 को ‘ईस्ट इंडिया एसोसिएशन’ की स्थापना की. और इस संस्था में भारत के उन उच्च अधिकारियों को शामिल किया गया जिनकी पहुंच ब्रिटिश संसद के सदस्यों तक थी.
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आईसीएस की प्रारंभिक परीक्षा : शिक्षा के क्षेत्र में अपना एक ओर कदम बढ़ाये हुए उन्होंने भारत और इंग्लैंड में एक साथ आईसीएस की प्रारंभिक परीक्षाओं के लिए ब्रिटिश संसद में प्रस्ताव पारित करवाया.
विले कमीशन और रॉयल कमीशन : और साथ ही उन्होंने भारत और इंग्लैंड के बीच प्रशासनिक और सैन्य खर्च के विवरण की जानकारी देने के लिए विले कमीशन और रॉयल कमीशन को भी पारित करवाया.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना : दादाभाई नौरोजी सन 1885 में एओ ह्यूम द्वारा स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. और वह 1886, 1893, 1906 में तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने. अपने तीसरे कार्यकाल में दादाभाई ने नरमपंथी और गरमपंथियों के बीच हो रहे तकरार के कारण पार्टी के विभाजन को रोका.
स्वराज्य की मांग : सन 1906 के दौरान उनकी अध्यक्षता में प्रथम बार कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में स्वराज्य की मांग की गयी. और दादाभाई नौरोजी ने अपने भाषण के जरिये कहा कि हम दया की भीख नहीं मांगते. हम तो केवल न्याय चाहते हैं. हम ब्रिटिश नागरिक के समान अधिकारों का बात नहीं करते. हम तो बस स्वशासन चाहते है.
तीन मौलिक अधिकार : और इसी के साथ अपने अध्यक्षीय भाषण में भारत की आम जनता के हितो को लेकर तीन मौलिक अधिकारों की बात कही और कहा ये अधिकार हैं हमारा.
- लोक सेवाओं में भारतीय जनता की अधिक नियुक्ति.
- विधानसभाओं में भारतीयों का अधिक प्रतिनिधित्व.
- भारत एवं इंग्लैण्ड में उचित आर्थिक सबन्ध की स्थापना.
आखिरी सफ़र :
निधन : देश के नागरिको के हितो की आवाज़ बन कर लगातार इंग्लैण्ड जाते रहे. और उम्र के साथ साथ उनका स्वास्थ्य भी ख़राब रहने लगा. भारत में राष्ट्रीय भावनाओं के जनक, देश में स्वराज की नींव डालने वाले दादाभाई नौरोजी अपना अंतिम समय भारत में बिताया और 92 वर्ष की आयु में 30 जून 1917 को उनका निधन हो गया.
दोस्तों “Dadabhai Naoroji Biography” दादा भाई नौरोजी की जीवनी को लिखने के लिए मैंने अधिकतर जानकारी किताबो तथा bharatdiscovery.org का अध्यन करके प्राप्त की हैं . जो इंटरनेट की दुनिया में एक ज्ञान का सागर हैं.
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