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गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी - Gopinath Bordoloi Biography In Hindi

गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी - Gopinath Bordoloi Biography In Hindi

दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, आधुनिक असम का निर्माता और असम राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे “गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी” ( Gopinath Bordoloi  Biography) के बारे में.


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एक झलक Gopinath Bordoloi की जीवनी पर :
गोपीनाथ जी भारतीय स्वतंत्रा संग्राम के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे. जिन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ़ जंग लड़ी.

देश की आज़ादी के बाद गोपीनाथ जी ने तत्कालीन गृह मंत्री रहे  सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ मिलकर असम को  चीन और पाकिस्तान से बचा कर भारत का हिस्सा बनाया. उन्हें आधुनिक असम का निर्माता भी कहा जाता हैं.

वो शुरू से ही गांधीजी के ‘अहिंसा’ की नीति के समर्थक रहे. असम राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री भी थे और उन्होंने हमेशा असम के आधुनिकीकरण का प्रयास किया.

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प्रगतिवादी विचार धार वाले व्यक्ति थे. हमेशा उन्होंने असम के लिए  उन्नति और विकास के कार्य किये जिस कारण प्रदेश की जनता ने  उनको  ‘लोकप्रिय’ नाम  से नवाज़ा.

प्रारंभिक जीवन :
गोपीनाथ बोरदोलाई जी का जन्म असम के नौगाँव ज़िले के रोहा नामक स्थान पर 10 जून, 1890 को हुआ. इनके पिता जी  का नाम बुद्धेश्वर बोरदोलोई तथा माता जी का नाम प्रानेश्वरी बोरदोलोई था. इनके ब्राह्मण पूर्वज उत्तर प्रदेश से जाकर असम में बस गए थे. जब इनकी उम्र 12 साल की हुयी तब इनकी माँ प्रानेश्वरी बोरदोलोई जी का निधन होगा था.

शिक्षा :
सन 1907 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा को पास किया और उसके बाद सन 1909 में गुवाहाटी के 'कॉटन कॉलेज' से प्रथम श्रेणी में इण्टरमीडिएट की परीक्षा को पास किया.

और इसी के बाद अपनी उच्च शिक्षा के लिए वे कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) चले गए और वही से बी.ए किया और इसी के बाद सन 1914 में उन्होंने एम.ए. परीक्षा  पास की. और तीन वर्षो तक क़ानून की पढाई की फिर उसके बाद वो गुवाहाटी आ गए.

कार्य :
शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्होंने सर्वप्रथम सोनाराम हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्य किया. और बाद में सन 1917 में वकालत का काम शुरू कर दिया.

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राजनैतिक जीवन में प्रवेश :
अंग्रेजो के खिलाफ़ उस दौरान स्वाधीनता आन्दोलन में गाँधी जी सक्रीय थे . और गाँधी जी देश की स्वतंत्रता के लिए  ‘अहिंसा’ और ‘असहयोग’ जैसे हथियारों का प्रयोग करते थे तब गाँधी जी ने देश की आज़ादी के लिए चलाये जा रहे ‘असहयोग आन्दोलन’ में युवाओं का आह्वान किया तब लोगो तेजी से इस  आन्दोलन में जुड़ने लगे अपना सब कुछ  त्याग कर.


कांग्रेस की सदस्यता :
जब सन 1922 में ‘असम कांग्रेस’ की स्थापना हुई. और इसी स्थापना के साथ गोपीनाथ बोरदोलाई जी भी अपनी जमी-जमाई वकालत छोड़ कर एक स्वयंसेवक के रूप में कांग्रेस की सदस्यता ली और इसी के साथ उन्होंने अपना राजनितिक जीवन का पहला कदम बढाया.

और राष्ट्र सेवा में लग गये. उनके साथ साथ कई अन्य असम के नेताओं ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जिनमे मुख्य रूप से थे..
  • नवीनचन्द्र बोरदोलोई,
  • चन्द्रनाथ शर्मा,
  • कुलाधार चलिहा,
  • तरुणराम फूकन आदि.

पैदल भ्रमण :
इस आन्दोलन में अपनी सक्रीय भूमिका को निभाते हुए गोपीनाथ जी ने लोगों के अन्दर देश के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से दक्षिण कामरूप और गोआलपाड़ा आदि  ज़िले का पैदल भ्रमण किया.

विदेशी माल का बहिष्कार :
पैदल यात्रा के दौरान लोगो को विदेशी माल का बहिष्कार करने तथा अंग्रेज़ों के साथ असहयोग और विदेशी वस्त्रों की जगह  खादी से बने हुए  वस्त्रों को पहनने का आह्वान किया.

साथ ही उन्होंने लोगो को कहा कि, हमें विदेशी सामानों का बहिष्कार करने के साथ साथ  सूत कातने पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए. हमें स्वदेशी बनना होगा.

एक वर्ष की कैद :
गोपीनाथ बोरदोलोई द्वारा लोगो के बीच जाकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने की बात को लेकर अंग्रेजी हुकूमत उन्हें एक विद्रोही के रूप में देखने लगी, जिसके कारण उनको उन  तमाम साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया जो इस आन्दोलन में जुड़े थे.

और 1 वर्ष की सजा सुनाई गयी. सजा पूरी करने के बाद जेल से बाहर आये गोपीनाथ जी अपने आप को स्वाधीनता आन्दोलन के लिए समर्पित कर दिया.

दुबारा से वकालत की शुरुआत :
उसी समय चौरी चौरा कांड हुआ था. और इसी कांड के बाद  ‘असहयोग आन्दोलन’ को गाँधी जी ने वापस ले लिया. इसके बाद  बोरदोलोई जी वापस गुवाहाटी आ गए और अपनी वकालत प्रारंभ कर दी.

सामाजिक कार्यों की ओर :
और इसी दौरान गुवाहाटी के नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष सन 1932 में बने और फिर इसी तरह सन 1930 से लेकर  1933 के के दौरान अपने आप को राजनैतिक गतिविधियों से दूर रहते हुए विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों को किया. और असम के विकास के लिए एक हाई कोर्ट और विश्वविद्यालय की भी मांग उठाई.

कांग्रेस की सरकार बनी :
गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया ऐक्ट, 1935 के तहत हुए चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में कांग्रेस आई लेकिन सरकार बनाने से साफ़ इनकार कर दिया.

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जिसके बाद मोहम्मद सादुल्लाह ने सरकार बनायी लेकिन सितम्बर 1938 में इस सरकार ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया. जिसके कारण गोपीनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी.

द्वितीय विश्व युद्ध :
पूरा विश्व, द्वितीय विश्व युद्ध की आग में जल रहा था तब गाँधी जी के आह्वान पर उनकी सरकार ने इस्तीफ़ा दे दिया. जिसके फलस्वरूप उन्हें ब्रिटिश सरकार  द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कारावास की सजा सुना दी गयी. लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण ब्रिटिश सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ा सजा अवधि से पहले.

भारत छोड़ो आन्दोलन :
देश में स्वतंत्रता की एक तेज़ आंधी सी आई हुयी थी और उसी दौरान गाँधी जी द्वारा चलाया गया अगस्त 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के बाद  अंग्रेजी सरकार ने कांग्रेस को अवैध बताते हुए गोपीनाथ जी के साथ -साथ अन्य  सभी बड़े  नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.

गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी - Gopinath Bordoloi Biography In Hindi

और इसी का फायदा उठाते हुए मौकापरस्त मोहम्मद सादुल्लाह ने अंग्रेजों के साथ मिल कर अंग्रेजों के सहयोग से एक बार फिर से सरकार बना ली. और भारत में सांप्रदायिक गतिविधियों को तेज़ कर दिया.

सरकार का विरोध :
सजा पूरी होने के बाद सन 1944 में रिहा हुए तब उन्होंने अन्य नेताओं के साथ मिलकर सरकार की गतिविधियों का भरपूर विरोध किया. और विरोध के कारण मौकापरस्त सादुल्ला ने  समझौता किया.

सन 1946 में हुए चुनाव में एक बार फिर  कांग्रेस पार्टी की जीत हुयी, और इस जीत के साथ ही कांग्रेस ने सरकार बनायीं. और  गोपीनाथ बोरदोलोई जी असम के मुख्यमंत्री (प्रधानमन्त्री) बने. उसके बाद से वे पूरी तरह से असम की जनता के लिए समर्पित हो गए.
नोट: -  उस दौरान अलग अलग प्रदेशों के मुख्य मंत्री को ही  प्रधानमन्त्री कहा जाता था. 
कैबिनेट कमीशन की स्थापना :
भारत की आजादी के मसले को लेकर ब्रिटिश सरकार ने सन 1946 में कैबिनेट कमीशन’ की स्थापना की. यह स्थापना ब्रिटिश सरकार की सबसे बड़ी चाल थी भारत की आज़ादी को लेकर.

जिसमे भारत के विभिन्न भागों को अलग-अलग बाँट कर ग्रुपिंग सिस्टम’ के तहत राज्यों को तीन भागों में रखा गया. इस चाल को कांग्रेसी नेता समझ नहीं पाए और इस योजना को अपनी स्वीकृति दे दी डाली लेकिन वही गोपीनाथ बोरदोलोई जी इस योजना का विरोध किया.

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अपने विरोध को जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि असम से जुड़े सम्बन्ध में कोई भी निर्णय या संविधान को बनाया जाएगा उसका निर्णय लेने का अधिकार केवल असम की विधानसभा और जनता को होगा, और किसी का नहीं. उनकी यह दूरदर्शिता के कारण अंग्रेजो द्वारा किये गए षड़यंत्र का शिकार होने से बच गए और भारत का अभिन्न अंग बना रहा.

आखिरी सफ़र :
देश को एक माला में जोड़ने का कार्य करते हुए असम  का विकास किया, उन्हें लोग शेर-ए-असम के नाम से भी जानते थे.  प्रगतिवादी विचार धार वाले व्यक्ति थे. हमेशा उन्होंने असम के लिए  उन्नति और विकास के कार्य किये जिस कारण प्रदेश की जनता ने उन्हें ‘लोकप्रिय’ नाम  से नवाज़ा. उन्हें आधुनिक असम का निर्माता भी कहा जाता हैं.  जब वे 60 वर्ष थे तब  5  अगस्त, 1950 को उनका  निधन गुवाहाटी में  हो गया.

भारत रत्न :
भारत सरकार ने 1999 में मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया.

गोपीनाथ बोरदोलोई  जी एक राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ वो  एक प्रतिभाशाली लेखक भी थे. जिन्होंने जेल में बंद रहने के दौरान कई पुस्तके लिखी...
  • अन्नासक्तियोग,
  • श्रीरामचंद्र,
  • हजरत मोहम्मद 
  • बुद्धदेब जैसी पुस्तकों की रचना की.
उनके अथक प्रयासों के कारण ही असम में कई महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना  हो पाई.
  • गुवाहाटी विश्वविद्यालय,
  • असम उच्च न्यायालय,
  • असम मेडिकल कॉलेज
  • असम वेटरनरी कॉलेज  आदि 
भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में अपने महत्वपूर्ण योगदान के साथ-साथ असम की प्रगति और विकास के लिए अनेक कार्य किये. राज्य में धार्मिक सौहार्द कायम रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

दोस्तों अगर गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी - Gopinath Bordoloi Biography In Hindi के इस लेख को  लिखने में मुझ से कोई त्रुटी हुयी हो तो छमा कीजियेगा और इसके सुधार के लिए हमारा सहयोग कीजियेगा. आशा करता हु कि आप सभी को  यह लेख पसंद आया होगा. धन्यवाद आप सभी मित्रों का जो आपने अपना कीमती समय इस Wahh Blog को दिया.

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