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माता अष्टभुजा का मंदिर - Maa Ashtbhuja Mandir "मिर्ज़ापुर"



माता अष्टभुजा का मंदिर - Maa Ashtbhuja Mandir

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में जानते हैं. माँ अष्टभुजा धाम “Ashtbhuja Dham in  Mirzapur,  Vindhyachal ”  कहा हैं ? और क्या हैं माँ अष्टभुजा की महिमा. आज के इस पोस्ट "धर्म आस्थाके इस कड़ी में. 

माँ अष्टभुजा देवी का मंदिर  विन्ध्याचल से तीन मील पश्चिम लगभग 300 फुट ऊँचे विन्ध्य पर्वत पर स्थित है. और इसी पर्वत पर विराजमान हैं माँ अष्टभुजा. मंदिर तक पहुचने के लिए  160 पत्थर की सीढ़ियाँ बनायीं गयी हैं और साथ ही एक सड़क भी ताकि आराम से माता रानी के भक्त मंदिर तक पहुच सके.

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माता अष्टभुजा का मंदिर - Maa Ashtbhuja Mandir  "मिर्ज़ापुर"



इस मंदिर में विराजमान माँ अष्टभुजा की मूर्ति दुर्लभ और प्राचीन हैं. जो एक लंबी और अँधेरी सी गुफा में स्थित हैं.  और इसी गुफा से होते हुए भक्त माता रानी के पास पहुचते है. गुफा के अन्दर घृत दीप जलता रहता है, जिसके प्रकाश में भक्त माता के दर्शन को प्राप्त करते हैं। यह स्थान बड़ा दिव्य और रमणीक है.

मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती (देवी माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय के 41-42 श्लोकों में मां भगवती कहती हैं.

"वैवस्वत मन्वंतर के 28वें युग में शुंभ-निशुंभ नामक महादैत्य उत्पन्न होंगे।  तब मैं नंदगोप के घर उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ में अवतीर्ण हो विंध्याचल जाऊंगी और महादैत्यों का संहार करूंगी.

श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में श्रीकृष्ण जन्माख्यान में वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजी ने कंस के भय से रातोंरात यमुना नदी पार कर नंद के घर पहुंचाया तथा वहां से यशोदा नंदिनी के रूप में जन्मीं योगमाया को मथुरा ले आए.

आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिलते ही कंस कारागार पहुंचा। उसने जैसे ही कन्या को पत्थर पर पटककर मारना चाहा। वह उसके हाथों से छूट आकाश में पहुंची और दिव्य स्वरूप दर्शाते हुए कंस वध की भविष्यवाणी कर विंध्याचल लौट गई.

माता अष्टभुजा मंदिर - Maa Ashtbhuja Ki Mahima

चैत्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर यहां मेले का आयोजन होता हैं जिसमे देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं. और यहाँ  चैत्र व शारदीय नवरात्र  के दिनों स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी माता भगवती की उपासना करते हैं. "Maa Ashtbhuja Mandir "




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