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Vindhyvasini Dham in Mirzapur - माँ विंध्यवासिनी धाम मिर्ज़ापुर

Vindhyvasini Dham in  Mirzapur - "माँ विंध्यवासिनी धाम मिर्ज़ापुर" कहा हैं ? जाने “धर्म-आस्था“ में विन्ध्यवासिनी माता की महिमा, Vindhyvasini Temple in  Mirzapur, 


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Vindhyvasini Dham in  Mirzapur - माँ विंध्यवासिनी धाम मिर्ज़ापुर 



सबसे पहले जानते हैं विंध्य क्षेत्र का महत्व जहा माता विराजती हैं.
बताते चले की :- विंध्य पर्वत पर ही भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी माँ विंध्यवासिनी ने. मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश  पर  किया था. साक्षात् विन्ध्य पर्वत पर विराजमान हैं मनवांछित फल देने वाली माँ विंध्यवासिनी अपने तीन रूपों में, अलौकिक प्रकाश के साथ.

Vindhyvasini Dham in  Mirzapur - माँ विंध्यवासिनी धाम मिर्ज़ापुर 

कहा जाता हैं कि जो भी भक्त इस स्थान पर आकर तपस्या करता हैं.  उसे अवश्य ही सिध्दि की प्राप्ति होती हैं. मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है. देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है.


विंध्य क्षेत्र का महत्व पुराणों में तपोभूमि के रूप में वर्णित है. विन्ध्याचल में स्थित हैं माता विंध्यवासिनी का मंदिर. ऐसी मान्यता है लोगो कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता.


Vindhyvasini Temple in  Mirzapur

यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिद्वि प्राप्त होती है. 
यह विंध्य क्षेत्र सिद्व पीठ के रूप में विख्यात है. आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे वर्ष दर्शनाथयों का आना-जाना लगा रहता है.
माँ विंध्यवासिनी धाम

चैत्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर यहां मेले का आयोजन होता हैं जिसमे देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं. और यहाँ  चैत्र व शारदीय नवरात्र  के दिनों स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और  महेश भी माता भगवती की उपासना करते हैं,

इसकी पुष्टि मार्कंडेय पुराण श्री दुर्गा सप्तशती की कथा से भी होती है.
जिसमें सृष्टि के प्रारंभ काल की कुछ इस प्रकार से चर्चा है. सृजन की आरंभिक अवस्था में संपूर्ण रूप से सर्वत्र जल ही विमान था. शेषमयी नारायण निद्रा में लीन थे. भगवान के नाभि कमल पर वृध्द प्रजापति आत्मचिंतन में मग्न थे.

तभी विष्णु के कर्ण रंध्र से दो अतिबली असुरों का प्रादुर्भाव हुआ. ये ब्रह्मा को देखकर उनका वध करने के लिए दौड़े. ब्रह्मा को अपना अनिष्ट निकट दिखाई देने लगा.

असुरों से लड़ना रजोगुणी ब्रह्मा के लिए संभव नहीं था. यह कार्य श्री विष्णु ही कर सकते थे, जो निद्रा के वशीभूत थे। ऐसे में ब्रह्मा को भगवती महामाया की स्तुति करनी पड़ी, तब जाकर उनके ऊपर आया संकट दूर हो सका.

दुर्गासप्तशती (देवी-माहात्म्य)
मार्कण्डेयपुराण के अन्तर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती (देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर भगवती उन्हें आश्वस्त करते हुए कहती हैं, देवताओं वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवें युग में शुम्भ और  निशुम्भ नाम के दो महादैत्य उत्पन्न होंगे.


तब मैं नन्दगोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी. लक्ष्मी तन्त्र नामक ग्रन्थ में भी देवी का यह उपर्युक्त वचन शब्दश: मिलता है. ब्रज में नन्द गोप के यहाँ उत्पन्न महालक्ष्मी की अंश-भूता कन्या को नन्दा नाम दिया गया.


Vindhyvasini Temple in  Mirzapur

मूर्ति रहस्य में ऋषि कहते हैं. नन्दा नाम की नन्द के यहाँ उत्पन्न होने वाली देवी की यदि भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के आधीन कर देती हैं।

श्रीमद्भागवत महापुराणके श्रीकृष्ण-जन्माख्यान में यह वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजी ने कंस के भय से रातों-रात यमुनाजी के पार गोकुल में नन्दजी के घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा ले आए.


Vindhyvasini Dham in  Mirzapur

आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस कारागार में पहुँचा. उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया। कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई.

माँ विंध्यवासिनी धाम – Vindhyvasini Dham in Mirzapur, Vindhyachal

मार्कण्डेयपुराणके अन्तर्गत वर्णित श्री दुर्गासप्तशती (देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर माँ भगवती ने कहा है–

नन्दागोपग्रिहेजातायशोदागर्भसंभवा !
ततस्तौ नाशयिश्यामि विंध्याचलनिवासिनी !!

वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवेंयुग में शुम्भ और  निशुम्भ नाम के दो महादैत्य उत्पन्न होंगे. तब मैं नन्द गोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी.


लक्ष्मीतन्त्र नामक ग्रन्थ में भी देवी का यह उपर्युक्त वचन शब्दश: मिलता है. ब्रज में नन्द गोप के यहाँ उत्पन्न महालक्ष्मी की अंश-भूता कन्या को नन्दा नाम दिया गया. मूर्तिरहस्य में ऋषि कहते हैं.  नन्दा नाम की नन्द के यहाँ उत्पन्न होने वाली देवी की यदि भक्तिपूर्वकस्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के आधीन कर देती हैं.

विन्ध्यस्थाम विन्ध्यनिलयाम विंध्यपर्वतवासिनीम ! 
योगिनीम योगजननीम चंदिकाम प्रणमामि अहम् !!

विंध्याचल मंदिर में भी दूर-दराज से श्रद्धालु देवी मां के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. देवी मां की आरती में शामिल होकर वे अपने परिवार की सुख-शांति की मन्नतें मांगते हैं.


Vindhyvasini Temple in  Mirzapur

दोस्तों माँ विंध्यवासिनी का यह मंदिर वाराणसी से 60 किलोमीटर  और इलाहाबाद  (प्रयाग) से 100 की दुरी पर स्थित हैं. नई दिल्ली-हावड़ा रूट पर स्थित हैं विन्ध्याचल रेलवे स्टेशन जहा चैत्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर लगने वाले मेले के दौरान यहाँ कई प्रमुख ट्रेनों का ठहराव भी होता हैं. विन्ध्याचल के नजदीक स्थित हवाई अड्डा बाबतपुर हैं जोकि वाराणसी में स्थित हैं.

माँ विंध्यवासिनी मंदिर 

आरती का समय: 
  • मंगला आरती – सुबह (in Morning) 4.00 AM to 5.00 AM
  • राजश्री आरती – दोपहर (in Noon) 12.00 PM to 1.30 PM
  • छोटी आरती – शाम ( in Evening)7.15 PM to 8.30 PM
  • बड़ी आरती – रात्रि (in Night)9.30 PM to 10.30 PM
  •  Vindhyvasini Dham in Mirzapur, Vindhyachal


महिमा और धाम के बारे में Vindhyvasini Dham in  Mirzapur के इस पोस्ट में माँ के धाम के विषय में और अधिक जानकारी के लिए wikipedia के पोस्ट को भी पढ़े.

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