Type Here to Get Search Results !

खाटू नरेश का इतिहास - khatu Naresh Shri Shyam Baba Ki Kahani

खाटू नरेश का इतिहास - khatu Naresh Shri Shyam Baba Ki Kahani

 ॐ श्री श्याम देवाय नमः दोस्तों आज के इस आर्टिकल में जानेंगे "Khatu Naresh Shri Shyam Baba Ki Kahani" को "श्री खाटू नरेश का इतिहास" कौन हैं "खाटू नरेश", क्यों हारे के सहारे के नाम से जाने और पूजे जाते हैं और साथ ही जानते हैं क्यों इन्हें श्री कृष्ण के रूप में भक्त पूजते हैं?  

आज यह विशेष पोस्ट मेरे इष्ट देव, महादानी, हारे का सहारा, श्री बाबा श्याम के चरणों में समर्पित हैं. 


khatu-Naresh-Shri-Shyam-Baba-Ki-Kahani

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा का इतिहास

बताते चले की खाटू नरेश श्री श्याम बाबा का इतिहास मध्यकालीन महाभारत से शुरू हुयी. श्री कृष्ण के रूप में पूजे जाने वाले श्री खाटू नरेश के बचपन का नाम बर्बरीक था. यह नाम बब्बर शेर की तरह उनके बाल होने के कारण पड़ा. जो बाल्यकाल से ही अत्यंत बलशाली, बुद्धिमान और महान योद्धा रहे. इनके पिता का नाम घटोत्कच और माता का नाम नाग कन्या मौरवी था. घटोत्कच जो अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र थे.

शिव भक्त:
युद्ध कला की शिक्षा बर्बरीक ने अपनी माता नाग कन्या मौरवी और श्री कृष्ण ली. बर्बरीक (खाटू नरेश ) शिव के भक्त भी थे और भगवान शिव की घोर तपस्या करके महादेव को परसन्न कर लिया और बालक बर्बरीक की इस घोर तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव ने तीन अमोघ बाण दिए.

 महादेव से प्राप्त तीन अमोघ बाण के कारण उन्हें तीन बाणधारी के नाम से लोग जानने लगे. इसी तरह उनके पास तीनों लोकों में विजयी पाने के लिए शक्ति प्राप्त कर ली. ⦁
  • एक बाण से पृथ्वी लोक
  • दुसरे बाण से स्वर्ग लोक
  • तीसरे से पाताल लोक
पर विजय प्राप्त करने वाले बन गए.

महाभारत का युद्ध
उसी दौरान महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य चल रहा था. और इसका समाचार उन्हें मिला तो एक योद्धा होने के नाते युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा उत्पन्न हुयी.

युद्ध स्थल की ओर जाने से पहले वीर बर्बरीक ने अपनी माता से आशीर्वाद लेने माता के पास पहुंचे और उनका आशीर्वाद लिया तब माता नाग कन्या मौरवी को वचन दिया मैं उसी का साथ दूंगा जो हारेगा, मैं हारे का सहारा बनूँगा. इसी तरह श्री खाटू नरेश का नाम "हारे का सहारा" पड़ा.

रणभूमि की ओर:
माँ से आशीर्वाद लेने के बाद अपने पसंदीद नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष को कंधे पर टांग कर कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े जहा महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य चल रहा था.

"नीलो घोड़ो लाल लगाम जी  पर बैठे बाबा श्याम"

श्री कृष्ण ने ब्राह्मण भेष बनाया
जब इसकी सूचना सर्वव्यापी श्री कृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए एक ब्राह्मण का छदम भेष बना कर उस रस्ते में निकल पड़े जिस रास्ते से नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष को कंधे पर टांग कर कुरूक्षेत्र की रणभूमि की तरफ वीर युद्धा की तरह "हारे का सहारा" बन कर बर्बरीक आ रहे थे.




रास्ते में ही ब्राह्मण भेष धरे नटवर ने उन्हें रोका और पूछा कहा जा रहे हैं?
तब उत्तर में वीर बर्बरीक ने कहा कुरूक्षेत्र की रणभूमि की तरफ. तब छदम भेष धरे श्री कृष्ण ने कहा.

बस यह तीन बाण लेकर युद्ध भूमि की तरफ निकल पड़े वहा तो एक से बढ़ एक योद्धा हैं. वह यह तीन बाण क्या काम करेंगे?

खाटू नरेश का इतिहास - khatu Naresh Shri Shyam Baba Ki Kahani

तब वीरो के वीर बर्बरीक ने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरा एक ही बाण दुशमनों की सेना को तहस नहस कर देंगा और उसके पाश्चात्य वापस तरकस में आ जायेगा. अगर मैंने तीनो बाणों को चला दिया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा.

इस बात को हंसी मजाक में उड़ाते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें उकसाया और चुनौती देते हुए बोले इतने ही शक्तिशाली योद्धा हो तो सामने दिख रहे वृक्ष के सभी पत्तो को एक ही तीर से वेध कर दिखाओ?

तब खाटू नरेश बर्बरीक ने ब्राह्मण रूप धरे भगवान् कृष्ण की इस चुनौती की स्वीकार करते हुए अपने तूणीर (तरकश) से एक बाण को निकाला और माथे पर लगा ईश्वर को स्मरण करते हुए बाण को उस पेड़ की तरफ चलाया.

बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को एक-एक कर वेध दिया और उसके पाश्चात्य श्री कृष्ण के चरणों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा. बताते चले की भगवान् कृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेने की शर्त रखने से पहले ही वृक्ष के एक पत्ते को अपने पैरो के नीचे दबा कर छुपा लिया था.

बाण को लगातार पैर के पास इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हुए देख बालक बर्बरीक ने कहा आप अपने चरण को हटा ले अन्थया ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा. तब श्री कृष्ण ने मंद मंद मुस्कान के साथ अपने पैर को उस पत्ते से हटा लिया जिसे वो छुपाये हुए थे.




तब कृष्ण ने बालक बर्बरीक से एक और प्रश्न किया ये बताओ किसकी तरफ से युद्ध में शामिल होगे तब उन्होंने बताया मैंने अपनी माता को वचन दिया हैं की मैं उसी की तरफ से युद्ध करूँगा जो पक्ष निर्बल होगा और हार रहा होगा.

यह बात अच्छी तरह से कृष्ण जानते थे की कौरवों की ही हार निश्चित है. अगर बर्बरीक ने कौरवों के पक्ष से युद्ध किया तो परिणाम युद्ध का कौरवों के पक्ष में होगा और हार का सामना पाण्डवों को करना पड़ेगा.

शीश का दान
तब ब्राह्मण भेष का फायदा उठाते हुए एक चाल चली. और बालक वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा जाहिर की. तब वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया आप मांगों जो मांगना चाहते हैं.

तब ब्राह्मण बने नटवर ने उनसे शीश का दान माँगा लिया. यह सुनते ही वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हो गए. लेकिन उन्होंने वचन दिया था. अपने दिए गए वचन को पूरा करने से पहले एक प्रश्न किया ब्राह्मण से. बोले इस तरह कोई भी साधारण ब्राह्मण शीश का दान नहीं मांग सकता, आप कोई साधारण ब्राह्मण नहीं हैं. और उन्होंने प्रार्थना की कृपया आप बताये आप का वास्तिवक रूप क्या हैं?


तब ब्राह्मणरूपी मायावी छलिया श्री कृष्ण अपने वास्तविक विराट रूप में प्रकट हो गए. और अपने विराट स्वरूप का दर्शन दिया. तब बालक  बर्बरीक ने दूसरा प्रश्न किया इस तरह शीश का दान मांगने का क्या कारण हैं?

इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कृष्ण ने समझाते हुए कहा की युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ वीर क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है. और आप भी तीनों लोकों में से एक सर्वश्रेष्ठ वीर क्षत्रिय हैं. इसी लिए ऐसा करने के लिए वे विवश था मैं और शीश का दान माँगा ताकि युद्धभूमि का पूजन हो सके.




यह बात जान कर वीर योद्धा बर्बरीक ने शीश दान देने से पहले एक प्रार्थना कि महाभारत का यह युद्ध अंत तक अपनी आँखों से देखना चाहता हूँ. यह प्रार्थना स्वीकार कर ली. तब बर्बरीक ने क्षणिक देर ना लगाते हुए उन्होंने अपने शीश को अपने धड से अलग कर दिया और दान में दे दिया.


श्री कृष्ण को दान में मिले शीश से प्रसन्न होके  वीर नहीं महावीर बर्बरीक को महाभारत युद्ध का सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया. फाल्गुन माह की द्वादशी को बर्बरीक (श्री खाटू श्याम) ने  अपने शीश का दान दिया था. और इस प्रकार वे
  1. शीश के दानी दानी कहलाये 
और फिर वीर बर्बरीक के शीश को उठा कर युद्धभूमि के समीप एक ऊँची पहाड़ी पर ले जाकर  शीश को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर पहाड़ी की चोटी पर सुशोभित कर दिया. ताकि वहा से सम्पूर्ण  महाभारत का युद्ध देख सके और उसके साक्षी बन सके.  

सम्पूर्ण  महाभारत युद्ध के साक्षी
इसी तरह एक समय आया की महाभारत युद्ध समाप्ति की और बढ़ने लगा. और यह युद्ध 18वें दिन समाप्त हो गया जिसमे कौरवों की हार हुयी और पाण्डवों की जीत हुयी, तब पाण्डवों में ही आपस में ही विवाद होने लगा. इस विवाद को हल करने के लिए  पाण्डव श्री कृष्ण के पास आये और पूछा की युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है?

खाटू नरेश का इतिहास - khatu Naresh Shri Shyam Baba Ki Kahani

तब कृष्ण ने कहा की इस युद्ध का साक्षी बस एक ही हैं जो इस युद्ध को पूरा देखा हैं. और उससे निष्पक्ष निर्णायक कौन हो सकता है? जैसे ही यह बात पाण्डवों को पता चली तो एक पल का बिलम्ब ना करते हुए उस पहाड़ी की ओर बढ़ गए और पहाड़ी के ऊपर पहुँच कर.

शीश के दानी बर्बरीक के शीश के सामने सभी पाण्डव अपनी-अपनी वीरता का बखान करने लगे.  तब शीश के दानी बर्बरीक के शीश ने बोला इस युद्ध में विजय दिलाने वाले सबसे महान पात्र आप सब नहीं, वो तो बस एक हैं जो श्री कृष्ण हैं.

और इस युद्ध में सबसे निर्णायक युद्धनीति की भूमिका थी. वो उनकी शिक्षा, उपस्थिति तथा उनकी युद्धनीति और उनके ही कारण जीत पाए हो आप सब.

मुझे तो बस युद्ध भूमि पर सिर्फ और सिर्फ चारो तरफ सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था. जो की शत्रु सेनाओं को एक एक करके काटता जा रहा था. और साथ ही माँ महाकाली सुदर्शन चक्र से कटते जा रहे शत्रु सेना के रक्त को प्याले  में भर के उसका सेवन कर रही थी. इस विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी.

युद्ध के  साक्षी शीश के दानी बर्बरीक ने जो देखा वो निष्पक्ष सच सच बता दिया. उनके मुख से सत्य वचन सुनकर देवताओं ने आकाश से उन पर पुष्पों की वर्षा करने लगे और महादानी  के गुणगान करने लगे.

श्री कृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्हें एक और वरदान दिया. हे वीर मोरवी नन्दन आप महान हो आप जैसा दानी नहीं कोई, आज से आप मेरे नाम श्याम के नाम से जाने जाओगे और कलयुग में आप कृष्ण अवतार के रूप में पूजे जाओगे. और सभी भक्तो के मनोरथ को पूर्ण करेंगे साथ ही आप हारे हुए लोगो का सहारा बनेगे.




और इसी तरह मोरवी नन्दन वीर बर्बरीक का नाम श्याम बाबा पड़ा. और कलयुग में  कृष्ण अवतार के रूप में पूजे जाने लगे.

दोस्तों  आप ने जाना "खाटू नरेश श्री श्याम बाबा का इतिहास- khatu Naresh Shri Shyam Baba Ki Kahani" को अब अगली पोस्ट में जानते हैं श्याम बाबा का प्रसिद्ध मंदिर कहा हैं? और कब बना? क्या हैं उसका इतिहास?.
इन्हें भी पढ़े 


Top Post Ad