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शहीद राजगुरु की जीवनी - Shivaram Rajguru Biography In Hindi

शहीद राजगुरु की जीवनी - Shivaram Rajguru Biography In Hindi

दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं क्रांतिकारी  “ शहीद राजगुरु की जीवनी” (Rajguru Biography In Hindi) के बारे में जिन्होंने 22 साल की उम्र में  देश की आज़ादी की खातिर हंसते-हंसते  फांसी के फंदे पर झूल गए और भारत माता की आज़ादी के खातिर अपने प्राणों की आहुति दे डाली.  
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शहीद राजगुरु की जीवनी - Shivaram Rajguru Biography In Hindi

शहीद राजगुरु  प्रारंभिक जीवनी  :
राजगुरु का जन्म महाराष्ट्र, के पुणे जिले के खेडा गाँव में 24 अगस्त, 1908 को हुआ. इनके पिता जी का नाम श्री हरि नारायण और माता जी नाम पार्वती बाई था. 

इनके पिता श्री हरि नारायण जी का  निधन उस समय हुआ जब इनकी उम्र 6 वर्ष की थी. तब से इनका पालन पोषण और शिक्षा की ज़िम्मेदारी इनकी माता जी और बड़े भैया ने निभाई.

Shivaram Rajguru जी बचपन से ही निडर और साहसी स्वभाव के थे. हमेशा वे खुशमिजाज़ रहते थे. बचपन से ही उनके ह्रदय में वीर शिवाजी और लोकमान्य तिलक के लिए सम्मान था और उनके परम भक्त थे. प्रति दिन व्यायाम (कसरत) भी किया करते थे.

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इनको हमेशा अपने बड़े भैया और भाभी की डांट खानी पड़ती थी क्युकि इनका मन पढाई में नहीं लगता था जिसके कारण माँ भी कुछ बोल नहीं पाती थी. और इस से तंग आकर एक दिन घर छोड़ कर निकल गए. रास्ते भर सोचते रहे अब घर से आज़ाद हूँ अब मैं अंग्रेजो की गुलामी की बेडियो को काट सकता हूँ और भारत माता को आज़ाद कराने का कार्य कर सकता हूँ.

 चंद्रशेखर आज़ाद से सम्पर्क :
Shivaram Rajguru भारत की आज़ादी को लेकर देश में अंग्रेजो के खिलाफ़ विद्रोह करने वाले उन तमाम क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आये. और उसी दौरान उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आज़ाद जी से हुयी. तब चन्द्रशेखर आजाद जी  से वे  इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये.  

निशानेबाजी :
Chandra Shekhar Azad जी राजगुर के जोशीले स्वभाव से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने राजगुर को निशानेबाजी का हुनर सिखाने लगे. और जल्द ही वो भी आज़ाद जी जैसे पक्के निशानेबाज बन गए. 

निशानेबाजी के हुनर में महारथ हासिल कर ली. जल्दी ही एक समय ऐसा आ गया की इनके द्वारा लगाया गया कोई भी निशाना चुकता नहीं था. 

निशाने बाजी की शिक्षा देते समय  शिवराम राजगुरु जी से कोई गलती होती या अन्य कोई लापरवाही करते थे तब चंद्रशेखर आज़ाद इनको डांट देते थे लेकिन Shivaram Rajguru ने इस बात का कभी बुरा नहीं माना क्युकि आज़ाद जी को अपना बड़ा भाई मानते थे. और उनके प्रति दिल में आपार प्रेम था. 

भगत सिंह और सुखदेव से मुलाकात :
 दल में ही इनकी भेंट अंग्रेजो से संघर्ष करने वाले और कई क्रान्तिकारियों से भी हुयी.  और एक दिन इनकी मुलाकात  भगत सिंह जी और सुखदेव जी से हुई. राजगुरु इन दोनों से मिलकर बड़े ही प्रभावित हुए. और परम  मित्र बन गए.


साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन

सांडर्स हत्याकाण्ड :
लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजो द्वारा की गयी लाठी-चार्ज में लाला लाजपत राय जी बुरी तरह से घायल हो गए थे. जिसके कारण 17 नवंबर 1928 को लगी चोटों की वजह से लाला लाजपत राय जी का निधन  हो गया था. 

राजगुरु और भगत सिंह का चुनाव :
उनके निधन के लिए ज़िम्मेदार अंग्रेज़ अफ़सर स्कॉट को मौत के घाट उतारने के लिए एक योजना बनायीं गयी. और इस योजना को साकार करने के लिए राजगुरु और भगत सिंह का चुनाव हुआ.  अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के लिए व्याकुल बैठे राजगुरु बहुत खुश हुए इस अवसर को प्राप्त करके.

जे. पी. सॉन्डर्स हत्या :
सुखदेव जी  के कुशल मार्गदर्शन एक योजनाबद्ध तरीके से 18 दिसंबर 1928 को फिरोजपुर, लाहौर में राजगुरु, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद ने जे. पी. सांडर्स सहित एक अन्य अंग्रेज़ अफ़सर को भी मारा डाला जिसने स्कॉट के कहने पर लाला लाजपत राय पर लाठियाँ चलायी थीं. इस कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद भगत सिंह अंग्रेज़ी साहब के रूप में राजगुरु उनके सेवक बनकर आज़ाद वहा की सुरक्षा को मात देते हुए निकल गए.

गिरफ़्तारी :
असेम्बली में बम फोड़ने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अपने आप को स्वयं को गिरफ्तार करा लिया, और उसी की बाद  सुखदेव सहित दल के सभी सदस्य गिरफ्तार हो गए लेकिन इस गिरफ्तारी में बस राजगुरु जी ही बचे रहे.
Bhagat-Singh-Biography-In-Hindi
केन्द्रीय विधान सभा
तब पुलिस से बचने के लिए आज़ाद जी के कहने पर राजगुरु महाराष्ट्र चले गए. लेकिन उनकी एक लापरवाही से अंग्रेजी पुलिस की निगाहों में आ गए और छुटपुट संघर्ष के बाद उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया.

शहीद राजगुरु की जीवनी - Shivaram Rajguru Biography In Hind

अंग्रेज़ों ने राजगुरु पर अनेकों अमानवीय अत्त्याचार किये चंद्रशेखर आज़ाद का पता जानने के लिए. लेकिन भारत का वीर लाल अपने ऊपर हो रहे अंग्रेज़ों के अत्त्याचारो से तनिक भी विचलित नहीं हुए. और आखिरकार अंग्रेजो ने उनको लाहौर की जेल में बंद कर दिया. 

जहा पहले से ही उनकी सभी साथी बंद थे. मस्तमौला वीर मराठा को देखते ही जेल में बंद सभी साथियों उत्साह भर गया खुशियाँ सभी के चेहरों से झलकने लगी.

मुकदमा :
जे. पी. सांडर्स हत्याकाण्ड का मुकदमा उन सभी क्रांतिकारियों पर चलाया गया. सभी क्रांतिकारियों को यह पहले से ही ज्ञान था कि न्यालय में अंग्रेजो द्वारा मुकदमा तो एक बहाना हैं.  हमारा फैसला तो अंग्रेजी हुकूमत ने पहले ही सुनश्चित कर लिया हैं.

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राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव ने आपस में बात की और कहा की हमारी मौत का फरमान तो अंग्रेजो ने लिख ही दिया हैं. वो हमें आज नहीं तो कल सुना ही दिया जायेगा, क्यों ना हम सब अदालत में मस्ती की जाए ? अंग्रेज़ जज को मज़ा चखाया जाए.


संस्कृत में निपूर्ण राजगुरु ने अंग्रेज़ जज को भरी आदालत में संस्कृत में ऊँचे स्वरों में ललकारा. तब एक बार के लिए पूरा अदालत उन्हें देखता रह गया, तब अंग्रेज जज ने राजगुरु से पूछा "टूम क्या कहता हाय". तब राजगुरु ने मस्ती भरी नज़रो से भगत सिंह को देखा और हंसते हुए बोले यार भगत इसको जरा अंग्रेज़ी में समझाओ मैंने क्या बोला हैं और फिर जोर जोर हँसने लगे.

तब अंग्रेजी जज को बताया ""यह जाहिल हमारी भाषा क्या समझेंगे"" यह सुनते ही सभी क्रांतिकारी ठहाका मारकर हसने लगे. और जज की खिल्ली उड़ाई. और अदालत के सामने इन क्रांतिकारियों ने कबुल किया कि लाला लाजपत राय जी  की मौत का बदला हमने लिया.

आमरण अनशन :
जेल में बंद क्रांतिकारियों पर अंग्रेजो द्वारा किये जाने वाले अमानवीय अत्त्याचारों के विरुद्ध भगत सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने आमरण अनशन आरंभ कर दिया. और आमरण अनशन के प्रति जनता का भरपूर योगदान मिलने लगा. जो क्रांतिकारियों के लिए पहले से ही ह्रदय में श्रद्धा का भाव रखती थी. भगत सिंह के प्रति  लोगो का प्रेम और भी ज्यादा था.

हड़ताल तुडवाने का प्रयत्न :
क्रांतिकारियों द्वारा किये जा रहे इस आमरण अनशन से अंग्रेजी सरकार की नीव हिलने लगी, अनशन से वायसराय भी विचलित हो गया. इस हड़ताल को ख़त्म करवाने के लिए  अंग्रेज़ों ने कई तरह के प्रयास किये. किन्तु भारत की आज़ादी के दीवाने जिद्दी सपूतो के आगे अनशन तुड़वाने में अंग्रेज हार गए.

अनशन के दौरान राजगुरु और जतिनदास की हालत बिगड़ काफी बिगड़ गयी.  जिसके कारण जतिनदास शहीद हो गए.  जिसके कारण देश की जनता भड़क उठी. आखिरकार हार कर अंग्रेज़ों को क्रांतिकारियों की, सभी बातो को मानना पड़ा.  

मुक़दमे का परिणाम :
सांडर्स की हत्या के अपराध में राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह पर चल रही अदालती कारवाही का परिणाम का वक्त भी आ गया. और सांडर्स की हत्या अपराध में तीनो क्रांतिकारियों को  फांसी की सजा सुना दी गयी.  

राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह इस सजा को सुन कर अतिउत्साहित से हो गए ख़ुशी के मारे जोर-जोर से 'इन्कलाब जिंदाबाद' के नारे लगाने लगे.

शहादत :
भारत माता के सपूत राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव को लाहौर के केंद्रीय कारागार में 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे तीनो ने हंसते-हंसते फ़ाँसी के फंदे को अपने गले से लगा लिया और अपनी मात्रभूमि की आज़ादी के लिए शहीद हो गए.

इतिहासकार को कहना हैं कि फाँसी की तिथि 24 मार्च निर्धारित थी. लेकिन फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए फाँसी के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों से डरे अंग्रेजो ने निर्धारित तिथि से एक दिन पहले 23 मार्च, 1931 की शाम को ही आज़ादी के दीवानों को फाँसी दे दी. और बाद में उनके शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था. 


 दोस्तों अगर शहीद राजगुरु की जीवनी - Shivaram Rajguru Biography In Hindi के इस लेख को  लिखने में मुझ से कोई त्रुटी हुयी हो तो छमा कीजियेगा और इसके सुधार के लिए हमारा सहयोग कीजियेगा. आशा करता हु कि आप सभी को  यह लेख पसंद आया होगा. धन्यवाद आप सभी मित्रों का जो आपने अपना कीमती समय इस Wahh Blog को दिया.

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