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शहीद भगत सिंह की जीवनी - Bhagat Singh Biography In Hindi

शहीद भगत सिंह की जीवनी - Bhagat Singh Biography In Hindi

दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक, 24 साल की उम्र में देश की आज़ादी की खातिर हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिकारी “शहीद भगत सिंह की जीवनी” (Bhagat Singh  Biography) के बारे में.

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एक झलक Bhagat Singh की जीवनी पर :

अंग्रेजो से देश की आज़ादी के लिए भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा देने वाले महान शहीद क्रांतिकारी  भगत सिंह. जिन्होंने पंजाब के अन्दर क्रांति की ज्वाला जलाने हेतु नौजवान भारत सभा का गठन किया. साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजो द्वारा लाठी-चार्ज में लाला लाजपत राय की हुयी मौत का बदला लेने के लिए ज़िम्मेदार अंग्रेज़ अफ़सर सॉन्डर्स को मौत के घाट उतारने का कार्य किया. 


अंग्रेजों  के खिलाफ़ बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका. और मात्र 24 वर्ष की उम्र में ही  देश के लिए हंसते हंसते फांसी के फंदे को गले से लगा कर हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो  गए.

प्रारंभिक जीवन :
भगत सिंह जी का जन्म  27 सितम्बर 1907 को पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं में एक सिख परिवार में हुआ. इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह था और माता जी का नाम विद्यावती था. भगत सिंह अपने माता पिता की तीसरी संतान थे.

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इनका पूरा परिवार ही देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन से जुड़ा हुआ था. उनके पिता और चाचा अजित सिंह ग़दर पार्टी के सदस्य थे. 

देश प्रेम की भावनाओ से भरे पारिवारिक वातावरण के कारण भगत सिंह में बचपन से ही उनके रगों में खून की तरह  देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी थी.

शिक्षा :
लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय में सन 1916 में के दौरान उनकी मुलाकात देश के उन स्वतंत्रता सेनानियों से हुयी जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की नीव को हिला रखा था.  तब उनकी खास मुलाकात लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस से भी  हुयी. 

जलियाँवाला बाग :
जब इनकी उम्र 12 वर्ष की हुयी तब रौलेट एक्ट के  विरोध में पूरा पंजाब राजनैतिक रूप से जल रहा था. उसी दौरान एक सभा में जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने सन 1919 में बेवजह सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं. जिसके कारण हज़ारों की संख्या में  बेमौत निर्दोष जनता की मौत हो गयी और 2000 हज़ार से ज्यादा लोग घायल हो गए .

FileJallianwala-Bagh

इस हत्याकांड ने उनको अन्दर से हिला दिया. अंग्रेजों के लिए नफरत और ज्यादा उनके अन्दर भर गयी. और इसी हत्या कांड के दुसरे दिन उसी स्थान पर पहुंचे और उस स्थान की मिटटी को माथे से लगाते हुए पूरी जिंदगी एक निशानी के रूप में रखा. और उन्होंने प्रण किया कि देश से अंग्रेजो को भगा के रहूँगा और साथ ही अंग्रेजो को चैन से सोने नहीं दूंगा.

 क्रन्तिकारी जीवन में प्रवेश :
 महात्मा गांधी ने  देश में अंग्रेजो के खिलाफ़ सन 1921 में असहयोग आंदोलन का आह्वान किया.  तब  Bhagat Singh ने इस आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए अपनी पढाई को छोड़ दिया. और सक्रिय रूप से इस आन्दोलन में अपना योगदान दिया.

 चौरी-चौरा कांड :
5 फ़रवरी 1922 को गोरखपुर के पास एक कसबे में भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे. तब गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन के दौरान हिंसा होने के कारण अपने द्वारा चलाये गए  असहयोग आन्दोलन को बंद कर दिया. 


आन्दोलन के बंद हो जाने के कारण तब भगत सिंह बहुत निराश हुए. तब उन्हें यह महसूस हुआ की अहिंसा के जरिये आज़ादी मिलना मुश्किल हैं. सशस्त्र क्रांति ही भारत को स्वतंत्रता दिला सकती हैं.

राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश :
तब भगत सिंह लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया अपनी पढाई जारी रखने के लिए. अगर सही मायनों में देखा जाए तो यह  विद्यालय शिक्षा के साथ साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का एक केंद्र भी था. और इसी विद्यालय में उनकी मुलाकात भगवती चरण वर्मा, सुखदेव  तथा अन्य दूसरे क्रांतिकारियों से हुयी.


प्रथम क्रांति का पाठ :
उनके घर वाले चाहते थे की जल्द ही भगत सिंह जी का विवाह करा दिया जाए लेकिन वो विवाह से बचने के लिए घर से भाग निकले और पहुच गए कानपुर और यही उनकी मुलाकात महान क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी  जी से हुयी और उन्ही से सीखा क्रांति का प्रथम पाठ.

दादी की बीमारी :
तभी अचानक उनको गाँव से खबर आई की उनकी दादी जी की तबियत ज्यादा ख़राब हैं. यह सुनकर भगत सिंह जी वापस अपने गाँव लौट गए. और वही रह कर  क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढाया.

नौजवान भारत सभा :
और फिर वह लाहौर गए और वही पर उन्होंने "नौजवान भारत सभा" के नाम से एक क्रांतिकारी संगठन को बनाया. और इसी के साथ पंजाब के अन्दर क्रांति के सन्देश को फैलाना प्रारंभ कर दिया. और लोगो को अंग्रेजों के खिलाफ़ एक जुट करने लगे.

नौजवान भारत सभा - wikimedia

हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन :
उसी दौरान क्रांतिकारियों की एक बड़ी बैठक सन 1928 में दिल्ली में हुयी तब इस बैठक सभा में प्रसिद्ध   क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद जी मिले और उनके सम्पर्क में आये. और फिर दोनों ने आपस में मिल कर देश में सशस्त्र क्रांति के माध्यम से गणतंत्र की स्थापना करने के उदेश्य से "हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ" की स्थापना की.


साइमन कमीशन :
लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजो द्वारा की गयी लाठी-चार्ज में लाला लाजपत राय जी बुरी तरह से घायल हो गए थे. जिसके कारण 17 नवंबर 1928 को लगी चोटों की वजह से लाला लाजपत राय जी का निधन  हो गया था.

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लाला लाजपत राय जी की मौत के जिम्मेदार  ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट से बदला लेने के लिए उन्होंने संकल्प लिया और उसी की बाद लाला लाजपत राय जी निधन के लिए ज़िम्मेदार अंग्रेज़ अफ़सर स्कॉट को मौत के घाट उतारने के लिए एक योजना बनायीं गयी. और Bhagat Singh और Rajguru ने मिलकर जे. पी. सांडर्स सहित एक अन्य अंग्रेज़ अफ़सर को भी मारा डाला. जिसने स्कॉट के कहने पर लाला लाजपत राय पर लाठियाँ चलायी थीं.  इस घटना को अंजाम देने के बाद अंग्रेजो से बचने के लिए भगत सिंह ने लाहौर को छोड़ दिया.

डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट :
ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने के बजाय देश में पुलिस को और खुली छुट का अधिकार देने तथा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधियाँ हो या जुलूस निकला जा रहा हो उसे रोकते हुए उसमे शामिल लोगो को गिरफ्तार करने का कानून बनाया गया "डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट" के नाम से और इस को लागु  कराने के लिए  केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया. लेकिन यह प्रस्ताव  मात्र एक मत से पास नहीं हो सका. लेकिन तानशाह ब्रिटिश सरकार ने इस प्रस्ताव को लागू कर दिया. यह बोलते हुए की यह ऐक्ट भारत की जनता के हित में हैं.


केन्द्रीय विधान सभा में बम फेकना :
Bhagat Singh ने इस अध्यादेश के खिलाफ़ केन्द्रीय विधान सभा में बम फेकने का मन बना लिया बिना किसी मारे या चोट पहुचाएं अंग्रेजी हुकूमत को सबक सिखाने के लिए .  विधान सभा में बम फेकने का उदेश्य सरकार का ध्यान आकर्षित करना साथ ही यह बताना कि उनके द्वारा लगाये जा रहे दमन के तरीकों को अब हम और अधिक नहीं सहेंगे. इसका उत्तर हमें भी देना आता हैं. और इसी के साथ भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान सभा भवन में बम को फेंका जिससे किसी को नुकसान नहीं पहुंचा. विधान सभा में बम को फेकने के बाद दोनों वह से भागे नहीं. शेरो की तरह खड़े रहे और जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे डाली.

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केन्द्रीय विधान सभा

अंग्रेजो ने उनको लाहौर की जेल में बंद कर दिया. जहा पहले से ही उनके कई साथी बंद थे. जिनपर जेल अधिकारियों द्वारा अमानवीय अत्याचार किया जाता था. तब अत्त्याचारों के विरुद्ध Bhagat Singh के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने आमरण अनशन आरंभ कर दिया.  और आमरण अनशन के प्रति जनता का भरपूर योगदान मिलने लगा. जो क्रांतिकारियों के लिए पहले से ही ह्रदय में श्रद्धा का भाव रखती थी. भगत सिंह के प्रति  लोगो का प्रेम और भी ज्यादा था.

क्रांतिकारियों द्वारा किये जा रहे इस आमरण अनशन से अंग्रेजी सरकार की नीव हिलने लगी, अनशन से वायसराय भी विचलित हो गया. इस हड़ताल को ख़त्म करवाने के लिए  अंग्रेज़ों ने कई तरह के प्रयास किये. किन्तु भारत की आज़ादी के दीवाने जिद्दी सपूतो से अनशन तुड़वाने में अंग्रेज हार गए.

मुक़दमे का परिणाम :
भगत सिंह ने अपने बचाव पक्ष के लिए कोई भी वकील नहीं रखा. क्युकि भगत सिंह  को यह पहले से ही ज्ञान था कि न्यालय में अंग्रेजो द्वारा मुकदमा तो एक बहाना हैं.  हमारा फैसला तो अंग्रेजी हुकूमत ने पहले ही सुनश्चित कर लिया हैं.

और इसी के साथ 7 अक्टूबर 1930 को विशेष न्यायलय के द्वारा तीनो क्रांतिकारियों को  फांसी की सजा सुना दी गयी.  भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव  इस सजा को सुन कर उत्साहित से हो गए ख़ुशी के मारे जोर-जोर से 'इन्कलाब जिंदाबाद' के नारे लगाने लगे. 

शहादत :
भारत माता के सपूत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर के केंद्रीय कारागार में 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे तीनो ने हंसते-हंसते फ़ाँसी के फंदे को अपने गले से लगा लिया और अपनी मात्रभूमि की आज़ादी के लिए शहीद हो गए.


इतिहासकार को कहना हैं कि फाँसी की तिथि 24 मार्च निर्धारित थी. लेकिन फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों को ध्यान में रखते हुए फाँसी के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों से डरे अंग्रेजो ने निर्धारित तिथि से एक दिन पहले 23 मार्च, 1931 की शाम को ही आज़ादी के दीवानों को फाँसी दे दी.

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आज ही के दिन 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में आज भी मनाया जाता हैं. देश आज भी इन वीर शहीदों को याद करती जिन्होंने देश की खातिर अपने प्राणों की आहुति दी.   

 दोस्तों अगर शहीद भगत सिंह की जीवनी - Bhagat Singh Biography In Hindi के इस लेख को  लिखने में मुझ से कोई त्रुटी हुयी हो तो छमा कीजियेगा और इसके सुधार के लिए हमारा सहयोग कीजियेगा. 

आशा करता हु कि आप सभी को  यह लेख पसंद आया होगा. धन्यवाद आप सभी मित्रों का जो आपने अपना कीमती समय इस Wahh Blog को दिया.

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