Type Here to Get Search Results !

सत्यजित राय की जीवनी - Satyajit Ray Biography In Hindi

सत्यजित राय की जीवनी - Satyajit Ray Biography In Hindi - 2 May Birthday Special 

दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं बीसवीं शताब्दी के विश्व की महानतम फ़िल्मी हस्तियों में से एक पद्म भूषण, पद्म विभूषण, भारत रत्न, और ऑस्कर अवॉर्ड' से अलंकृत सत्यजित राय का जीवन परिचय” (Satyajit Ray Biography In Hindi) के बारे में. 
Satyajit Ray 2 May Birthday Special 
Satyajit-Ray-Biography-In-Hindi


एक झलक सत्यजित राय की जीवनी पर :
सत्यजित राय का जन्म कलकत्ता में 2 मई 1921 को हुआ था. इनके पिता का नाम सुकुमार राय था और माता का नाम सुप्रभा राय था. Satyajit Ray के पिता जी छपाई तथा पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े थे.



सत्यजित राय के दादा जी  का नाम  उपेन्द्रकिशोर राय था जो एक प्रसिद्ध लेखक, चित्रकार, वायलन वादक तथा संगीतकार थे. और इसी कारण पूरा घर के  माहौल में कला का वातावरण बना रहता था जहा पले-बढे सत्यजित राय और इन्हें विरासत में ही मिला उन्हें कला का खज़ाना.



पिता का निधन:
सत्यजित राय जब मात्र तीन वर्ष के थे तब उनके  पिता सुकुमार राय का निधन हो गया तब माँ ने बड़े ही संघर्ष-पूर्वक धेर्य से अपने भाई के घर पर रह के पालन-पोषण किया.

शिक्षा:
शुरूआती शिक्षा माँ ने ही घर में दी और उसके बाद आठ वर्ष की उम्र में उनका दाखिला कलकत्ता के बालीगंज के सरकारी स्कूल में करा दिया. और उसके बाद लगभग पन्द्रह वर्ष की आयु में हाई स्कूल  की शिक्षा पूर्ण की. 

कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से की और वहा दो वर्षों तक साइंस की पढाई की फिर तीसरे वर्ष अर्थशास्त्र ले लिया. अर्थशास्त्र लेने का मुख्य कारण मामा जी बात थी अगर वो इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएट हो जाते हैं तो उन्हें नौकरी दिला देंगे और उन्हें नौकरी की बहुत जरुरत थी. इस लिए साइंस की पढाई को छोड़ कर इकोनॉमिक्स ले लिया.

पढाई ना करने का निर्णय:
Satyajit Ray ने अपना ग्रेजुएशन 1939 में कम्पलीट किया. और वही से मन बना लिया अब आगे की पढाई नहीं करेंगे. लेकिन इसका विरोध माँ ने किया और उन्हें मनाने की कोशिश करने लगी क्युकि वो नहीं चाहती थी की उनका बेटा18 वर्ष की आयु से ही काम करने लगे पैसो के पीछे भागे.

चित्रकारी की शिक्षा: 
आखिरकार माँ ने मना ही लिया सत्यजित राय को पढाई के लिए और उन्हें चित्रकारी की शिक्षा लेने के लिए शांति निकेतन में दाखिला करा दिया.

संगीत और फिल्मों का शौख:
पढाई के दौरान ही उन्हें संगीत का सौख था और उस समय ग्रामोफोन का ज़माना था.  और वो उसी से सॉंग सुना  करते थे. उन्हें पाश्चात्य फिल्मों और संगीत का का काफी सौख रहा.

उस दौरान फिल्मो को बाइस्कोप कहा जाता था. हॉलीबुड फिल्मो को देखना और पत्र पत्रिकाओं में नायिकाओं और नायकों की फोटो देखना उनकी रोज़ की आदतों में से थी. साथ उन्हें चित्रकारी  में भी रूचि थी. और चित्रकारी की शिक्षा Satyajit Ray ने शान्ति निकेतन में नन्दलाल बोस से ली.



यूरोप यात्रा:
कलकत्ता की एक विज्ञापन कम्पनी ने उनको काम दिया और उसके बाद सन 1950 में यूरोप यात्रा का उन्हें पुरस्कार मिला. और फिर छः महीने के लिए यूरोप चले गए.

फिल्मो का जुनून:
फिल्मो का नशा उनपर इस कदर चढ़ा था की लन्दन फिल्म क्लब उन्होंने सदस्यता ले ली. और साढ़े चार महीनों के अन्दर लगभग 90 फिल्में देखी डाली,



फिल्मो की ओर:
कुछ फिल्मे उनके दिल में ऐसे बस गयी उनकी मंजिल ही बदल गयी.  फिल्म ‘बाइसिकल थीब्स’ और ‘लूसिनिया स्टोरी एण्ड अर्थ’ जैसी फिल्मो का असर उन पर काफी पड़ा जिसके कारण उन्हें फिल्म बनाने का चस्का लग गया और इस क्षेत्र में उतर पड़े.

शुरूआती दौर में उनका रुझान नायक नायिकाओं पर था लेकिन फिर फिल्म निर्देशन की ओर बढ़ गए. और उसकी बारीकियों को समझना शुरू कर दिया.

विवाह:
सत्यजित राय का विवाह जानी-मानी अभिनेत्री तथा गायिका विजया दास से सन 1948 में हुआ था. और इन्हें एक पुत्र भी हुआ जिनका नाम सन्दीप रखा गया जो अब  फिल्म निर्देशक के रूप में कार्य कर रहे हैं.

निर्णय फिल्म बनाने का:
सत्यजित राय ने आखिरकार सन 1952 में फिल्म को बनाने का निर्णय ले लिया और विभूतिभूषण बनर्जी  के उपन्यास "पथेर पांचाली" को लिया और आठ लोगो की एक टीम बनायीं लेकिन वो सब फिल्म क्षेत्र में नए थे और नौसिखिये थे. यह फिल्म बीच में ही रुक गयी पैसो की दिक्कत के कारण. 

सत्यजित राय की जीवनी - Satyajit Ray Biography In Hindi

पहली फिल्म:
3 साल के बाद यह मूवी बनी पश्चिमी बंगाल सरकार की वित्तीय सहायता से और इसी तरह Satyajit Ray की यह पहली फिल्म बनी. जो सन 1955 में आई जिसका नाम "पथेर पांचाली" था. जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर काफी नाम कमाया.

स्वर्ण पदक तथा रजत पदक:
इस मूवी को 1955 में राष्ट्रपति स्वर्ण पदक तथा रजत पदक मिला नई दिल्ली में. 

सन 1956 में "बेस्ट हयूमन डाक्यूमेंट" का पुरस्कार मिला केन्स में और फिर डेनमार्क का बाडिल अवार्ड से बजी इन्हें नवाज़ा गया यह अवार्ड सर्वश्रेष्ठ गैर-यूरोपीय फिल्म को दिया जाता है. 

इसी के साथ उन्होंने कई फिल्मे बनायीं 1956 में "अपराजिता", 1958 में "जल्साघर"  इसी तरह लगातार फिल्म बनाते रहे और राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार पाते रहे. 



इनके द्वारा  बनायीं गयी अधिकतर फिल्म बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित रही. अपने फिल्मों में गरीबी, भुखमरी तथा भावात्मक क्रूरता को दर्शाया  फिल्मांकन में कभी भी नकलीपन को बरदाश्त नहीं करते थे.

डाक्यूमेंट्री रवीन्द्रनाथ टेगौर पर:
रवीन्द्रनाथ टेगौर पर सत्यजित राय ने 1961 में एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनायीं जिसे भारत में राष्ट्रपति स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ और साथ ही 2 और अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले. 

प्रेमचन्द की कहानी:
सन 1977 में सत्यजित राय ने एक हिंदी फिल्म बनायीं जो प्रेमचन्द की कहानी "शतरंज के खिलाड़ी" पर आधारित थी जिसे राष्ट्रीय फिल्म समारोह में वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म में शामिल किया गया. प्रेमचन्द की कहानी "सद्‌गति" बनायीं जिसे नई दिल्ली में सन  1981 में "स्पेशल जूरी अवार्ड" से नवाज़ा गया. हिंदी में बनायीं गयी यह दोनों फिल्मे सफल रही और कई पुरस्कार जीते.

पुस्तकों की रचना:
Satyajit Ray ने फिल्मो के साथ साथ कई पुस्तकों को भी लिखा. जिनमें उपन्यास, कहानी तथा लेख शामिल हैं. उनका सारा लेखन का कार्य बांग्ला में था. अपनी फिल्मो के लिए भी कहानियां लिखी. 

चित्रकारी का प्रयोग:
कुशल चित्रकार होने के कारण हमेशा अपनी चित्रकारी के जरिये बताया करते थे कि कैसे फिल्म में प्रसंग और दृश्य होने चाहिए. अपनी पटकथाओं को चित्रों के माध्यम से फिल्मांकन पूरी बारीकी समझाते थे. और अपनी कल्पनाओ को चित्रों के जरिये सजाते थे.

राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार:
Satyajit Ray को ढेरो पुरस्कार से सम्मानित किया गया जितना आजतक किसी भी अकेले भारतीय फिल्मकार को नहीं मिला.

13 बार फिल्मों के लिए भारत के राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हुए. कुल तिरासी फिल्म पुरस्कारों में अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार अड़तालीस मिले.

ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय से इन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली. यह उपाधि सबसे पहले  चार्ली चैपलिन को मिली थी. और सत्यजीत सबसे पहले फ़िल्म निर्देशक थे जिन्होंने इस सम्मान को प्राप्त किया.

भारत का सर्वोच्य सम्मान:
पद्मश्री सम्मान और पद्मभूषण तथा 1992 में वह भारत रत्न सम्मान से अलंकृत हुए.

फाल्के पुरस्कार:
1985 में उन्हें दादासाहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उसके बाद 1987 में फ़्राँस के लेज़्यों द’ऑनु पुरस्कार.  और अमेरिका के ऑस्कर से भी सम्मानित किया गया.

आखिरी सफ़र:
सत्यजित राय को ह्रदय रोग था. जिसके कारण 23 अप्रैल 1992 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया. और वो सदा-सदा के लिए इस दुनिया से चले गए लेकिन उनकी यादे आज भी ताज़ा हैं.

दोस्तों अगर सत्यजित राय की जीवनी - Satyajit Ray Biography In Hindi के इस लेख को  लिखने में मुझ से कोई त्रुटी हुयी हो तो छमा कीजियेगा और इसके सुधार के लिए हमारा सहयोग कीजियेगा. आशा करता हु कि आप सभी को  यह लेख पसंद आया होगा. 

धन्यवाद आप सभी मित्रों का जो आपने अपना कीमती समय इस Wahh Blog को दिया.


Top Post Ad