गणेश शंकर विद्यार्थी की जीवनी – Ganesh Shankar Vidyarthi Biography in Hindi
दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, निडर और निष्पक्ष पत्रकार, समाज-सेवी “गणेश शंकर विद्यार्थी की जीवनी” (Ganesh Shankar Vidyarthi Biography in Hindi) के बारे में.
एक झलक गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन पर :
अपने कलम की ताकत से भारत में अंग्रेज़ी हुकूमत की नींद उड़ा देने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी जी भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उनका नाम आज भी अजर-अमर है.
स्वतंत्रता के आन्दोलन में अपनी कलम और शब्दों से महात्मा गांधी के अहिंसावादी आन्दोलन और क्रांतिकारियों के विचारों को अपनी लेखनी के द्वारा समान रूप से समर्थन और सहयोग दिया.
निडर और निष्पक्ष पत्रकार, समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ कुशल राजनीतिज्ञ भी थे. उन्होंने उत्पीड़न क्रूर व्यवस्था, अन्याय के खिलाफ हमेशा अपनी आवाज़ को उठाया.
स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बहुत कलम के सिपाहियों ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी. उनमे से ही एक गणेशशंकर विद्यार्थी भी महान पत्रकार थे. जो देश की आज़ादी के लिए अपनी कलम को तलवार बनाकर अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी.
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प्रारंभिक जीवन:
गणेशशंकर ‘विद्यार्थी’ का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को प्रयाग (इलाहाबाद) के अतरसुइया मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ. इनके पिता जी का नाम श्री जयनारायण था, पेशे से वो अध्यापक थे. और उर्दू फारसी के जानकार थे. उत्तर प्रदेश के फतेहपुर (हथगाँव) के निवासी थे.
शिक्षा:
प्रारंभिक शिक्षा : इनकी प्रारंभिक शिक्षा 1905 में उर्दू-फ़ारसी का अध्ययन से हुयी. और भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा को पास किया.
कायस्थ पाठशाला में प्रवेश: सन 1907 में इन्होने प्राइवेट फार्म भरा और और प्रवेश परीक्षा दी. और इसके बाद आगे की पढाई के लिए उन्होंने प्रयाग (इलाहाबाद) के कायस्थ पाठशाला में प्रवेश लिया. और वही से पढाई की.
पत्रकारिता में रूचि: पढाई के दौरान ही उन्हें पत्रकारिता में रूचि बढ़ने लगी. और उन्होंने कलम को अपनी ताकत बना ली. लेखन के कार्य में आगे की ओर बढ़ने लगे.
पत्रकारिता में पहला कदम: पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका पहला कदम प्रसिद्द लेखक पंडित सुन्दर लाल के द्वारा प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक ‘कर्मयोगी’ के संपादन में सहायता करने से हुयी.
30 रु० महीने की नौकरी : अध्ययन के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने सन 1908 में कानपुर के करेंसी आफिस में कार्य करना शुरू कर दिया था और उन्हें सैलरी के रूप में 30 रु० माह प्राप्त होते थे. लेकिन इसी बीच एक अंग्रेज अधिकारी से बाद विवाद होने के कारण वो नौकरी छोड़नी पड़ी.
अध्यापन का कार्य: आर्थिक तंगी से जूझ रहे गणेशशंकर विद्यार्थी जी ने कानपुर में स्थित पृथ्वीनाथ हाई स्कूल में अध्यापन बने और सन 1910 तक अध्यापन का कार्य किया. अध्यापन कार्य के साथ साथ उन्होंने
- सरस्वती,
- कर्मयोगी,
- स्वराज्य (उर्दू)
- हितवार्ता
- जैसे प्रकाशनों में अपने लेख को लिखा
सम्पादन कार्य:
साहित्यिक पत्रिका 'सरस्वती' : महावीर प्रसाद द्विवेदी जी उनकी योग्यता से काफी प्रभावित थे इस कारण उन्होंने सन 1911 में विद्यार्थी जी को साहित्यिक पत्रिका 'सरस्वती' उप-संपादक के पद के कार्य को संभालने के लिए निवेदन किया.
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अभ्युदय : लेकिन उनकी रूचि पत्रकारिता और सामाजिक कार्यों में थी. और एक ही साल के पाश्चात्य 'अभ्युदय' नामक पत्र में काम करने लगे.
क्रन्तिकारी पत्रिका ‘प्रताप’ की स्थापना : उन्होंने 'प्रभा' का भी सम्पादन किया साथ ही सन 1913 में 'क्रन्तिकारी पत्रिका ‘प्रताप’ की स्थापना की और सम्पादक बने इस पत्र के माध्यम से किसानों की आवाज़ बनकर उसे बुलन्द किया. और उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ लेखो को लिखा.
उपनाम ‘विद्यार्थी’ : क्रांतिकारी पत्रकार और स्वाधीनता कर्मी के तौर पर पहचाने जाने वाले गणेश शंकर जी ने अपना उपनाम ‘विद्यार्थी’ रखा. और आगे चल कर इसी नाम से विख्यात हुए.
गिरफ्तारी : 'क्रन्तिकारी पत्रिका ‘प्रताप’ में लगातार पीड़ित किसानों, मिल मजदूरों और दबे-कुचले गरीबों की आवाज़ उठाने के कारण, अंग्रेजी सरकार ने उनपर जुर्माने लगाये साथ ही कई मुक़दमे भी लगा दिए और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया. अपनी क्रांतिकारी पत्रिकारिता के कारण उन्हें बहुत से कष्टों का सामना भी किया.
कदम स्वाधीनता आन्दोलन की ओर :
गाँधी जी से मुलाकात : महात्मा गाँधी जी से उनकी पहली बार मुलाकात सन 1916 में हुयी. और उनके विचारो से प्रभावित देश हित के लिए कुछ और अधिक करने के उद्देश्य से पूर्णतया स्वाधीनता आन्दोलन में अपने आपको समर्पित कर दिया.
गणेश शंकर विद्यार्थी की जीवनी – Ganesh Shankar Vidyarthi Biography
होम रूल आन्दोलन : सन 1917 से लेकर 1918 तक होम रूल आन्दोलन में अपनी सक्रीय भूमिका को निभाया. और इस आन्दोलन में अपना योगदान दिया.
पहली हड़ताल : कानपुर में कपड़ामिल के मजदूरों पर हो रहे लगातार उत्पीडन के खिलाफ़ उन्होंने पहली बार हड़ताल का नेतृत्व किया.
प्रताप का दैनिक संस्करण : सन 1920 में विद्यार्थी जी ने अपनी 'क्रन्तिकारी पत्रिका ‘प्रताप’ का दैनिक संस्करण आरम्भ किया. और उसका संपादन किया.
2 वर्ष का कारावास : 1920 के दौरान ही उन्होंने राय बरेली के किसानों पर हो रहे उत्पीडन को लेकर आवाज़ उठाई जिसके कारण उन्हें 2 वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई गयी.
भड़काऊ भाषण के आरोप में गिरफ्तार : 2 वर्ष की कठोर कारावास के बाद सन 1922 में विद्यार्थी जी को जेल से रिहा कर दिया गया. लेकिन उन्हें दुबारा अंग्रेजी सरकार के खिलाफ़ उत्तेजित भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, और उन्हें जेल भेज दिया गया.
कांग्रेस अधिवेशन : कारावास के दौरान उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था. सन 1924 में उन्हें रिहा कर दिया गया. अपने ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद कानपुर में हो रहे कांग्रेस अधिवेशन में सक्रिय रूप से भाग लिया और 1925 की तैयारी में जुट गए.
राज्य विधान सभा चुनाव : पत्रकारिता के साथ साथ राजनीति के भी अच्छे जानकार थे. सन 1925 में होने वाले राज्य विधान सभा चुनावों में लड़ने का फैसला लिया और कानपुर से यू.पी. विधानसभा के लिए वो चुन लिए गए.
विधान सभा से त्यागपत्र : जब कांग्रेस ने विधान सभाओं को छोड़ने का फैसला लिया तब उन्होंने अपना विधान सभा से सन 1929 में त्यागपत्र दे दिया.
यू.पी. कांग्रेस समिति का अध्यक्ष : कांग्रेस ने यू.पी. में सत्याग्रह आन्दोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी को संभालने के लिए सन 1929 में गणेश शंकर विद्यार्थी जी को यू.पी. कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बना दिया. यू.पी. की बाग डोर उनके हाथो में आ गयी.
पुनः कारावास : यू.पी. कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन नेतृत्व बड़ी ही ज़िम्मेदारी के साथ निभाया. जिसके कारण सन 1930 में पुनः उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर से उन्हें कारावास की सजा सुना दी गयी. गाँधी-इरविन पैक्ट के बाद 9 मार्च 1931 में उन्हें आज़ाद किया गया.
आखिरी सफ़र:
हिन्दू-मुस्लिम दंगा : सन 1931 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में हिन्दू-मुस्लिम दंगा भड़का हुआ था. जिसमे हजारों लोगों की मौत हो गयी थी.
इस दंगे को शांत करने के लिए विद्यार्थी जी अपनी जान की प्रवाह ना करते हुए, इस दंगे का संचालन करने वाले आतंकियों के बीच घुस कर कई हजारों लोगों की जान बचाई.
निधन : मार-काट जैसी हिंसक वारदातों के बीच लोगो को बचाते हुए खुद 25 मार्च सन् 1931 को साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए. बाद में उनका शव अस्पताल में उन लाशों की ढेर में मिला जो इस दंगे में मारे गए थे. उनका शव कई दिनों से पड़े होने के कारण फूल गया था जिसे पहचानना तक मुश्किल हो गया था.
अंतिम संस्कार : अपनी कलम से सुधार की क्रांति लाने वाले भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, निडर और निष्पक्ष पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी का 29 मार्च 1931 को अंतिम संस्कार कर दिया गया.
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