Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi – बाल गंगाधर तिलक की जीवनी
दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जनक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, “लोकमान्य श्री बाल गंगाधर तिलक की जीवनी” (Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi) के बारे में.
दोस्तों अगर आपने बाल गंगाधर तिलक के 15 सुविचार नहीं पढ़े तो आप जरुर पढ़े.
एक झलक बाल गंगाधर तिलक की जीवनी पर :
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जाने बाल गंगाधर तिलक की जीवनी - Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi |
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जनक माने जाने वाले बाल गंगाधर तिलक बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न थे. जो कई विषयों के ज्ञानी थे. जो भारतीय इतिहास, गणित, खगोल विज्ञानं, संस्कृत और हिन्दू धर्म जैसे विषयों के प्रकांड विद्वानों में से एक थे. वह प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, एक समाज सुधारक, और राष्ट्रीय नेता के रूप से विख्यात थे.
अंग्रेजो से देश को आज़ादी दिलाने की खातिर बाल गंगाधर तिलक जी ने एक नारा भी दिया "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार" है और मैं इसे ले कर रहूँगा’ और अपने इस नारे से लाखों की संख्या में भारतियों को प्रेरित किया. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी.
प्रारंभिक जीवन :
बाल गंगाधर तिलक का जन्म भारत के रत्नागिरि नामक स्थान पर 23 जुलाई, 1856 को सुसंस्कृत, मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ. इनका पूरा नाम 'लोकमान्य श्री बाल गंगाधर तिलक' था
इनके पिता जी का नाम श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक था. जो रत्नागिरि में सहायक शिक्षक के रूप में कार्य करते थे. अत्यंत लोकप्रिय शिक्षक भी थे.
शिक्षा :
तिलक जी बचपन से ही होनहार छात्र रहे. उनका मन पसंद विषय गणित रहा. बचपन से ही वो अन्याय के खिलाफ़ थे. अपनी बातो को बिना डरे साफ़ साफ़ कहते थे.
बाद में रत्नागिरि से उनके पिता पूना तथा उसके बाद 'ठाणे' में सहायक उपशैक्षिक निरीक्षक बन गए. बाद में उन्होंने 'त्रिकोणमिति' और व्याकरण पर पुस्तकें भी लिखी जो प्रकाशित हुईं.
माता पिता का निधन :
अपने पिता जी और माता जी का साथ उनको अधिक समय तक ना मिल सका, जब वो 16 साल के थे तब उनकी माता जी का निधन हो गया और उसके बाद सन् 1872 में उनके पिता जी का भी निधन हो गया.
विवाह :
बाल गंगाधर तिलक जी जब मैट्रिकुलेशन की पढाई कर रहे थे तब उनका विवाह कन्या सत्यभामा जी से करा दिया उस समय सत्यभामा जी मात्र 10 वर्ष की थी.
कॉलेज में दाखिला :
विवाह के बाद मैट्रिकुलेशन की परीक्षा को पास किया और आगे की पढाई के लिए डेक्कन कॉलेज में अपना दाखिला कराया.
उन्होंने बी. ए. की परीक्षा सन 1877 में पास किया और अपने मनपसंद विषय गणित में प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण हुए. और इसके बाद उन्होंने एल. एल. बी. की पढाई की और डिग्री को प्राप्त.
गंगाधर जी पहली पीढ़ी के उन भारतीय युवा छात्रो में से एक थे जिन्होंने आधुनिक शिक्षा का भी ज्ञान लिया और महारथ हासिल की.
कार्य क्षेत्र :
शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने अध्यापक का कार्य किया एक प्राइवेट स्कूल में गणित पढ़ा के. और फिर कुछ दिनों के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कार्य किया एक सफल पत्रकार बनके.
पाश्चात्य शिक्षा का विरोध :
हमेशा से वो पाश्चात्य शिक्षा व्यवस्था का विरोध किया और अपनी आवाज़ उठाई. उनका सोचना और कहना था कि पाश्चात्य शिक्षा की इस व्यवस्था से छात्र ही नहीं पुरे भारत वर्ष की संस्कृति और धरोहरों का अपमान होता हैं.
उनका मानना था कि उत्तम शिक्षा प्रणाली ही विद्यार्थियों के जीवन को अच्छा बना सकती हैं. हमें, सभी को उत्तम शिक्षा प्रणाली के प्रति जागरूक करना हैं.
एजुकेशन सोसाइटी’ की स्थापना :
तिलत जी भारत में उत्तम शिक्षा व्यवस्था को लाने के प्रयास में जुट गए और उन्होंने ‘डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी’ की स्थापना की. आगरकर और महान समाज सुधारक विष्णु शास्त्री चिपुलंकर जी के साथ मिलकर , इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य देश के छात्रों को उच्च स्तर की शिक्षा प्रदान करना था.
समाचार पत्रों का प्रकाशन :
डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी’ की स्थापना के बाद उन्होंने दो साप्ताहिक समाचार पत्रों का प्रकाशन किया जो मराठी और अंग्रेज़ी में निकलते थे. केसरी और द मराठा के नाम से,
तिलक जी ने इन दोनों समाचार पत्रों के माध्यम से भारतियों के संघर्ष और परेशानियों पर प्रकाश डाला. और लोगों की राजनीतिक चेतना को जगाने का काम किया. समस्त भारतीय से अपने हक़ के लिए लड़ने का आह्वान किया.
तिलक जी के लेखों में तीव्रता थी, देशभक्ति का जज्बा था, और उनकी प्रभावशाली भाषा थी, जिसको पढ़ने के बाद पाठको में जोश भर जाता था. देश भक्ति की भावनाएं उठने लगती थी, और अपने हक के लिए संघर्ष करने का जोश मिलता था जिसके कारण दोनों साप्ताहिक समाचार पत्र अत्यधिक लोकप्रिय थे.
सन 1890 में तिलक जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ली और राजनीति की ओर अपना कदम बढाया. इसी के साथ वो एक एक महान समाज सुधारक भी थे.
Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi – बाल गंगाधर तिलक की जीवनी
बाल विवाह का विरोध :
बाल विवाह जैसी कुरीतियों का तिलक जी ने भरपूर विरोध किया और इसे पूरी तरह से बंद कराने की मांग उठाई. साथ ही विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में रहे.
सामाजिक उत्सव :
एक कुशल संयोजक के रूप में एक दुसरे को साथ जोड़ने के उद्देश्य से गणेश उत्सव और शिवाजी के जन्म उत्सव का आयोजन भी करते रहते थे.
तिलक जी पुणे म्युनिसिपल परिषद और बॉम्बे लेजिस्लेचर के सदस्य भी रहे और बॉम्बे यूनिवर्सिटी के निर्वाचित ‘फैलो’ भी रहे.
कारावास की सजा :
अंग्रेज़ सरकार ने सन 1897 लोकमान्य जी को समाचार पत्रों के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ भड़काऊ लेखों को लिख कर देश की जनता को उकसाने का कार्य करने और व्रिटिश कानून को तोड़ने के साथ-साथ शांति व्यवस्था भंग करने का आरोप गिरफ्तार कर लिया और सश्रम कारावास की सजा सुनाई दी गयी.
स्वदेशी आंदोलन :
सन 1898 के दौरान उनकी सजा पूरी होने पर उन्हें छोड़ दिया गया. जेल से रिहा होने के बाद लोकमान्य तिलक जी ने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की और अपने समाचार पत्रों और भाषणों के जरिये महाराष्ट्र के गाँव-गाँव के लोगो तक स्वदेशी आंदोलन के उदेश्य और फायदे बताये साथ ही उन्होंने स्वदेशी मार्केट को भी स्थापित किया.
दो गुटों में मतभेद :
उदारवादी और अतिवादी गुटों में आपसी विचार ना मिलने के कारण आपस में विरोध था. अतिवादी का नेतृत्व लोकमान्य जी कर रहे थे वही उदारवादी का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले जी कर रहे थे.
स्वराज के पक्ष में लोकमान्य तिलक जी थे. लेकिन उदारवादी का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले जी का कहना था की स्वराज के लिए अभी अनुकूल वक्त नहीं आया हैं. इसी बात को लेकर अंततः कांग्रेस को दो हिस्सों में तोड़ दिया.
6 साल की सजा :
अंग्रेज़ सरकार ने बाल गंगाधर तिलक जी को सन 1906 में विद्रोह फ़ैलाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 6 साल की सजा सुना दी और उनको मांडले (बर्मा) जेल में रखा गया.
Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi – बाल गंगाधर तिलक की जीवनी
सजा के दौरान लोकमान्य जी अपना अधिकतर समय पाठन-लेखन में देते थे. और उन्होंने इसी दौरान प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीता रहष्य’ भी लिखी.
8 जून 1914 को जेल से उनकी रिहाई हुयी. रिहाई के बाद दो भागो में बटे कांग्रेस के गुटों को एक करने की पहल की. और एक करने की कोशिश में जुट गए लेकिन उन्हें इस कार्य में सफलता प्राप्त नहीं हुयी.
होम रूल लीग की स्थापना :
तिलक जी ने सन 1916 में होम रूल लीग की स्थापना की, जिसका एक मात्र उद्देश्य स्वराज था. और नारा था "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" और इसे ले कर रहूँगा.
‘होम रूल लीग’ के उद्देश्य को समझाने तथा लोगो को बताने के लिए उन्होंने लम्बी यात्रा की गाँव-गाँव और मुहल्लों में जा कर लोगो से मिले उन्हें स्वराज के लिए जागरूक किया और होम रूल लीग के उद्देश्य को समझाया.
अंतिम सफ़र :
तिलक जी का निधन बंबई में 1 अगस्त, 1920 को हुआ. महात्मा गाँधी जी ने श्रद्धांजलि देते हुए तिलक जी को आधुनिक भारत का निर्माता की उपाधि दी, और नेहरू जी ने उन्हें क्रांति के जनक की उपाधि दी.
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