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जाने द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन मंदिर के प्राचीन महत्त्व को - Mallikarjuna Jyotirlinga Temple

दोस्तों सावन के महापर्व के अवसर पर 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं और साथ ही जानते हैं भगवान शिव के 12  ज्योतिर्लिंगों के महत्त्व, दर्शन, और इतिहासके बारे में और साथ ही जानते है भगवान शिव के पवित्र 12 ज्योतिर्लिंग भारत में कहा कहा स्थित हैं.
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द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन मंदिर  - Mallikarjuna Jyotirlinga Temple

सावन माह का यह विशेष कालम जोकि  12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन के नाम से हैं पिछले इस कालम के पोस्ट में जाना था आप ने प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर के प्राचीन महत्त्व और इतिहास को, अब इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं, भारत के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक "द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन मंदिर के प्राचीन महत्त्व और इतिहास" को.

ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन मंदिर के प्राचीन महत्त्व - Mallikarjuna Jyotirlinga Temple


दक्षिण भारत में कैलाश के नाम से मशहूर आंध्र प्रदेश का श्रीमल्लिकार्जुन मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। यह ज्योतिर्लिग कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित हैं.  श्री शैल पर्वत को हम  दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं.. इस पवित्र स्थान की महिमा का वर्णन महाभारत, शिव पुराण और पद्म पुराण जैसे आदि धर्मग्रंथों में भी हमें मिलता हैं.. तो आईये जाने द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन मंदिर के प्राचीन महत्त्व और इतिहास को.. 
  •  पुराणों में इस द्वितीय ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुडी कथा  

भगवान शिव और माता  पार्वती के पुत्र स्वामी कार्तिकेय और श्री गणेश अपने विवाह को लेकर दोनों भाई आपस में कलह (लडाई) कर रहे थे की पहले शादी मैं करूँगा. कार्तिकेय का कहना था मैं बड़ा हूँ तो शादी सर्वप्रथम मैं करूँगा किन्तु श्री गणेश का कहना था नहीं पहले मेरा विवाह होगा. और इस तरह यह कलह लगातार बढती ही जा रही थी. 

इस कलह के समाधान के लिए दोनों भाई अपने पिता देवो के देव महादेव और माता पार्वती के पास पहुंचें. और दोनों भाई ने विस्तार से अपनी बात को बताया भगवान शंकर और मां पार्वती को और दोनों ने ही अपने माता पिता से निवेदन किया की सर्वप्रथम मेरा ही विवाह हो...   दोनों भाइयो के बीच शादी को लेकर चल रहे झगड़े को देखकर,  भगवान शंकर और माता पार्वती ने कहा. इस बात  का समाधान एक ही प्रकार से हो सकता हैं अगर तुम दोनों में से जो भी पूरी पृथ्वी का पुरा चक्कर लगाकर यहाँ पहले वापस आएगा उसी का विवाह पहले करा दिया जायेगा. 

यह सुनकर स्वामी कार्तिकेय खुश हो गए और मन-मन ही मुस्कुराएँ और सोचा मेरी तो सवारी मयूर हैं मैं तो अपने भाई गणेश से पहले ही पूरी पृथ्वी का चक्कर लागाकर पुनः इस स्थान पर आ जाऊंगा और मेरा ही विवाह पहले होगा. यह बात सोचते हुए तत्काल ही अपने मयूर पर सवार होके कार्तिकेय निकल पड़े पृथ्वी का पुरा चक्कर लगाने के लिए.

इधर श्री गणेश चिंतित हो उठे की अब वो क्या करे इस विकट प्रस्थिति में, सोच में पड़ गए की मेरा तो वाहन मूषक (चूहा) हैं भला वह दौड़ में  मयूर का सामना किस प्रकार कर पायेगा.  इस समस्या का समाधान पाने के लिए  श्री गणेश  वहा से उठ कर कुछ ही दूर एकांत में चले गए और सोचने लगे की कैसे पृथ्वी के चक्कर लगाये? 

इस समस्या के समाधान हेतु एकांत में बैठ कर मन ही मन में अपने माता पिता का ध्यान लगाया. और उनका स्मरण किया. और कुछ ही देर में उन्होंने अविलंब पृथ्वी-प्रदक्षिणा  का एक सुगम उपाय खोज निकाला..

क्युकी कहा गया हैं की शांत मन से ध्यान लगाने से हर समस्या का समाधान मिल जाता हैं. और इसी कारण बुद्धि विनायक श्री गणेश को भी इस समस्या का सरल और उत्तम समाधान  मिल गया. 

बुद्धि के महासागर श्री गणेश उस एकांत स्थल से उठ खड़े हुए और अपने माता पार्वती और पिता शिव के पास पहुंचे 

और माता पार्वती - पिता शिव के हाथो को पकड़ा और उन्हें एक ऊँचे स्थान पर बैठाया और पूरी श्रद्धा के साथ उनके चरणों को स्पर्श किया साथ ही पत्र-पुष्पों द्वारा उनकी पूजा की. और उसके बाद माता पिता की परिक्रमा करने लगे जब एक चक्कर पूरा हुआ तो शिव-पार्वती के चरण स्पर्श किया और फिर परिक्रमा लगाने लगे दूसरा पूरा हुआ तो फिर चरण स्पर्श किये इसी तरह कर के सात बार विधिवत् पूजन किया. उनका यह कार्य शास्त्रानुमोदित था. 

पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रकान्तिं च करोति यः।तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम्।।

यह देख कर माता पार्वती  ने पूछा पुत्र ये  प्रदक्षिणाएँ क्यों की? तब गणपति जी ने कहा. 
सर्वतीर्थमयी माता. सर्वदेवमयो पिता.
सारी पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य माता की प्रदक्षिणा करने से हो जाता है. यह शास्त्रवचन है. पिता का पूजन करने से सब देवताओं का पूजन हो जाता है. क्युकी  पिता देवस्वरूप हैं. अतः आपकी परिक्रमा करके मैंने संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमाएँ कर लीं हैं. 

यह सुन कर माता पार्वती और पिता शिव गणपति जी की इस चतुराई को देख मंद मंद मुस्काए और श्री गणेश का विवाह विश्वरूप प्रजापति की दो पुत्रियों से करा दिया गया जिनका नाम सिद्धि और बुद्धि था. विवाह के बाद श्री गणेश को दो पुत्रो की प्राप्ति हुयी ‘क्षेम’ तथा ‘लाभ’ के रूप में. 
  • रुष्ट हुए स्वामी कार्तिकेय 
जब स्वामी कार्तिकेय पृथ्वी-प्रदक्षिणा कर तब भ्रमणशील देवर्षि नारद कार्तिकेय से मिले और उन्हें विस्तार से श्री गणेश विवाह के बारे बताया विवाह की सूचना मिलते ही स्वामी कार्तिकेय वापस लौटे तो देखा श्री गणेश का विवाह हो चूका था और उन्हें दो पुत्रो की प्राप्ति भी हो गयी थी. इसे देख  कार्तिकेय अत्यंत रुष्ट हो गए, उसके बाद कार्तिकेय अपने माता पिता के चरण स्पर्श किये और और वो वहा से क्रौंच पर्वत की ओर चले गए. और वही रहने लगे.

माता पार्वती ये सहन ना कर सकी अपने पुत्र को वापस बुलाने के लिए, भ्रमणशील और जगत् का कल्याण करने वाले  देवर्षि नारद को भेजा पुत्र को समझा बुझा कर वापस लाने के लिए. लेकिन देवर्षि नारद कार्तिकेय को समझाने में नाकामयाब रहे उनकी सारी कोशिशे व्यर्थ गयी कार्तिकेय को समझाने की और वो वापस नहीं लौटे.  

अपने पुत्र के प्रति कोमल हृदय रखने वाली माता पार्वती अपने पुत्र स्नेह में और अधिक व्याकुल हो उठीं. अपने रुष्ट पुत्र को स्वयं मनाने के लिए भगवान शिव जी को लेकर क्रौंच पर्वत की ओर निकल पड़ी इधर जैसे ही  स्वामी कार्तिकेय को माता-पिता के  सूचना मिली की क्रौंच पर्वत आ रहे हैं तो वे वहा से  तीन योजन अर्थात छत्तीस किलोमीटर उस पर्वत से दूर चले गये. इस तरह  स्वामी कार्तिकेय  के चले जाने से देवो के देव महादेव ने क्रौंच पर्वत पर ही द्वितीय ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये

तभी से ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ.  मल्लिका’ माता पार्वती का नाम है, और  ‘अर्जुन’ भगवान शंकर के नाम से. और इसी तरह ‘मल्लिकार्जुन’ नाम द्वितीय ज्योतिर्लिंग का नाम पड़ा और जगत् में प्रसिद्ध हुआ...

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द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन मंदिर  - Mallikarjuna Jyotirlinga Temple
  • मंदिर से जुडी अन्य कथा

 किसी चन्द्रगुप्त नामक राजा की राजधानी कौंच पर्वत के समीप में ही थी. अचानक उस राज्य की  राजकन्या पर आये संकट से बचने के लिए. राजा चन्द्रगुप्त की  पुत्री राज्यकन्या  समीप में ही स्थित पर्वतराज की शरण में आ गयी . और  वह राजकन्या ग्वालों के साथ रहने लगी, और उन्ही की तरह  कन्दमूल को खाती और दूध पीती, और इसी तरह वह उस पर्वत पर रहने लगी और अपना जीवन-निर्वाह करने लगी. उसके पास एक काली गाय थी श्याम नाम की. और उस गाय की देखभाल स्वयं से करती थी उसके चारा खिलाने से लेकर दूध निकालने तक. 

अचानक ही उस गाय के साथ एक विचित्र घटना सी होने लगी. ऐसा लगता था की कोई रहस्यमय आदमी श्यामा गाय की  चोरी से दूध निकाल कर पी रहा हो. लेकिन एक दिन  उस कन्या (राजकन्या) ने देख लिया उस इंसान को, चोरी से श्यामा का दूध निकालते. और इसे देखते ही क्रोध से लाल हो उठी और उसे इस चोरी की सजा देने के लिए गुस्से में उसकी तरफ दौड़ पड़ी.  

जैसे ही वो अपनी श्यामा गाय के पास पहुंची और देखा तो देखती रह गयी. की उसकी गाय का दूध कोई चोर नहीं चुरा रहा था वहा तो सिर्फ एक शिवलिंग ही था. और कुछ नहीं. छोटी सी वो कन्या समझ गयी की यह लीला तो भगवान शिव की हैं. और इसी तरह वह रोज़ शिवलिंग की पूजा  अर्चना करने लगी. और कुछ दिनों बाद वह शिवलिंग के ऊपर मंदिर का निर्माण करायी. और आज वही शिवलिंग द्वितीय ज्योतिर्लिंग के रूप में "मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग" के नाम से भारत में प्रसिद्ध है. इस पवित्र तीर्थ क्षेत्र का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. यहाँ जो भी भक्त आते हैं सच्चे मन से मल्लिकार्जुन-शिवलिंग के दर्शन-पूजन-अर्चन करते है उनकी सभी मुरादे पूर्ण होती हैं. 
  • पुरातत्त्ववेत्ताओं का अनुमान 
और इस मंदिर के विषय में पुरातत्त्ववेत्ताओं का कहना हैं की इस मंदिर का भलीभाँति सर्वेक्षण करने के बाद यही अनुमान लगाया जाता हैं की इस मंदिर का निर्माण लगभग दो हज़ार वर्ष प्राचीन है. और अपने उस समय में काफी प्रसिद्ध था यह मंदिर इस मंदिर में दर्शन के लिए बड़े बड़े राजा महाराजा भी आया करते थे. श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती थी यहाँ.

  • मंदिर का सुन्दरीकरण विजयनगर के महाराजा द्वारा 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व श्री विजयनगर के महाराजा कृष्णराय यहाँ आये थे तब उन्होंने एक आकर्षक मन को मोह लेने वाले मण्डप का भी निर्माण कराया था. जिसके उपरी भाग (शिखर) को सोने से बनवाया था. और उसके लगभग डेढ़ सौ वर्षों बाद मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु क्रौंच पर्वत पर महाराज शिवाजी भी आये थे. तब उन्होंने मदिर से कुछ दूर श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए  धर्मशाला को बनवाया था. 

1= इसी मंदिर के पास माता पार्वती का भी मंदिर हैं जिसे ‘भ्रमराम्बा’ कहा जाता है 

2=  मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पहाड़ी से लगभग पाँच किलोमीटर नीचे जाने पर पातालगंगा के नाम से प्रसिद्ध कृष्णा नदी के दर्शन होते हैं और कृष्णा नदी में स्नान करने का महत्व हमारे शास्त्रों में भी मिलता है. 

3=  क्रौंच पर्वत की इस पहाड़ी पर जगह जगह ढेरो शिवलिंग मिलेंगे.

4=   महाशिवरात्रि के दिन यहाँ विशेष मेले का आयोजन होता हैं. 

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 "शक्तिपीठ भ्रमराम्ब देवी"  शक्ति स्वरूपा माता पार्वती का मंदिर 


  • यहाँ पहुचने का मार्ग 

आंध्र प्रदेश के श्रीसैलम में मौजूद हैं यह मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग. आप यहाँ सड़क मार्ग और रेल मार्ग तथा आप हवाई मार्ग के जरिये भी आ सकते है.  श्रीसैलम सड़क मर्ग से पूरी तरह से जुड़ा हुआ हैं. जिसमे विजयवाड़ा, तिरुपति, अनंतपुर, हैदराबाद और महबूबनगर आदि से मिलती  है सड़क जिस पर सरकारी बस के साथ साथ निजी बसें भी चलाई जाती हैं. 

श्रीसैलम से नजदीक रेलवे स्टेशन 62 किलोमीटर की दूरी पर मर्कापुर रोड है आप यहाँ  टैक्सी के जरिए  आराम से पहुँच सकते हैं...


श्रीसैलम से नजदीकी हवाई अड्डा 137 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैदराबाद का राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट
के नाम से.  

दोस्तों  "12  ज्योतिर्लिंग दर्शन" नाम के  इस आर्टिकल में  द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन मंदिर के दर्शन, महत्व और इतिहास से जुड़े इस लेख को लिखने में मुझसे जो भी त्रुटी हुयी हो उसे छमा करे  और हमारा इस विषय में सहयोग दे ताकि मैं अपनी गलतियों को सुधार  सकू. 

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