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जाने मंगल पाण्डेय की जीवनी को - History Of Mangal Pandey

जाने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत मंगल पाण्डेय  की जीवनी को 

दोस्तों आज के इस खास आर्टिकल में जानते हैं भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत मंगल पाण्डेय की जीवनी को (History Of Mangal Pandey) और उनसे जुड़े खास तथ्यों को. जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की और अपनी आवाज़ को बुलंद किया. 1857 के महानायक "मंगल पांडे के जन्मदिन 19 जुलाई" पर हम सभी उन्हें याद करते हैं. और उनका नमन करते हैं. जिनके कारण आज हमें आज़ादी मिली.
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जाने मंगल पांडे की जीवनी को - History Of Mangal Pandey 

History Of Mangal Pandey in Hindi

दोस्तों आईये आज जानते हैं प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक मंगल पांडे के जीवन से जुडी बातो को जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का पहला मोर्चा खोला और देश  की आज़ादी को लेकर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक गए. और अपने प्राणों की पहली आहुति दे दी आज़ादी के हवन-कुण्ड में...
  • प्रारंभिक जीवन. 
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले में स्थित नगवा गाँव में 19 जुलाई, 1827 को सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार में हुआ था. लेकिन कुछ लोगो का कहना हैं की उनका जन्म  उत्तर प्रदेश के  फ़ैज़ाबाद ज़िले में स्थित अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर ग्राम में हुआ था. 

महाबली मंगल पांडे के पिता का नाम  दिवाकर पांडे था. और उनकी माता जी का नाम श्रीमती अभय रानी था. 
  • अंग्रेजो की सेना भर्ती.  
सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्मे Mangal Pandey जब युवा हुए तब उन्होंने अपनी और अपने परिवार की जीविका के लिए 22 साल की उम्र में सन 1849 में अंग्रेजों की फौज में शामिल हो गए. 

सर्वप्रथम Mangal Pandey कोलकाता के करीब स्थित  बैरकपुर  में  "34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री" की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही बने.  बताया जाता हैं की उनकी सेना में भर्ती किसी ब्रिगेड के द्वारा की गयी थी. 
जंग-ए-आज़ादी का बजा बिगुल  

  • 0.577 कैलीबर की एनफ़ील्ड बंदूक 
जंग-ए-आज़ादी का विगुल 1857 में महाप्रलय के रूप में बजा  एक बंदूक की कारतूस के कारण. 

जब अंगेजों ने अपनी सेना में शामिल भारतीय सैनिको को "0.577 कैलीबर की एनफ़ील्ड बंदूक" दी . जो पुरानी "बंदूख ब्राउन बैस" के मुकाबले काफी शक्तिशाली और अचूक थी. इस 0.577 कैलीबर की एनफ़ील्ड आधुनिक बंदूख से गोली को चलाना पुरानी बंदूख से आसान था. इसका निशाना भी सटीक था.



मगर  इस 0.577 कैलीबर एनफ़ील्ड नामक इस आधुनिक बंदूख में कारतूस को भरने के लिए सबसे पहले अपने दांतों से कारतूस की बाहरी  परत को काटना पड़ता था, और फिर कारतूस में भरे बारूद को निकाल कर  बंदूख की नली में भरना तथा उस कारतूस को बंदूख की नली में डालना पड़ता था. 

बताते चले की कारतूस के बाहरी परत पर जो खोल लगायी जाती थी उससे पानी तथा सीलन से बचाव होता था. लेकिन यह कारतूस पर लगायी जाने वाली खोल चर्बी से बनती थी. 


  • कारतूस में लगी चर्बी  
कारतूस पर लगायी जाने वाली खोल पर चर्बी को लेकर सभी भारतीय सिपाहियों में ये अफवाह फ़ैल गयी की इस चर्बी में गाय और सूअर के मांस का प्रयोग किया जाता है. 

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती सैनिक जोकि हिन्दू और मुस्लिम थे. उन्हें यह जान कर बड़ा गुस्सा आया की ये अंग्रेज अब हमारी धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध भी साजिश करने लगे. हमारे धर्म पर भी इनका प्रहार शुरू हो गया. 

History Of Mangal Pandey in Hindi


पहले से ही ईस्ट इंडिया कंपनी की हुकुमत के खिलाफ लोगो में नफ़रत थी  इशाई मिस्नरियों द्वारा धर्मान्तर करने तथा राज हड़प नीति को लेकर. और अब इस कारतूस के द्वारा धर्म पर हमला भारतीय सैनिकों के दिल में विद्रोह की ज्वाला धधक गयी. इस बात को लेकर अन्दर ही अन्दर एक चिंगारी सी जल उठी. 

सैनिको में उठ रहे विद्रोह को देखते हुए कुछ अंग्रेजी सेना के अफसर ने अपने बड़े अफसरों को सुझाव दिया की अगर नई चर्बी से बनी कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ सकता हैं. 

अगर आप  कारतूस को पानी और सीलन से बचाने के लिए चर्बी का ही प्रयोग करना हैं तो गाय और सूअर की चर्बी के बजाय बकरे या मधुमक्क्खी की चर्बी प्रयोग की जाये. या तो  सैनिक कारतूस को दांतों से उसे खोलने के बजाय हाथों से खोले. क्युकी  गाय और सूअर  की चर्बी से बने कारतूस हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचाने जैसा हैं अगर इसे प्रयोग किया गया तो सैनिको में विद्रोह की ज्वाला भड़क सकती हैं.

मगर  दिल्ली से लेकर लन्दन तक बैठी सत्ता के अहंकार में चूर  किसी अधिकारी ने इस सुझाव  पर ध्यान नहीं दिया. और तत्कालीन (भारत) के प्रमुख अंग्रेज अफ़सर जार्ज एनसन ने  इसे ये कहते हुए अस्वीकार कर दिया यह बंदूख आधुनिक हैं और इसके कारतूस का प्रयोग जैसे बताया गया हैं वैसे ही सैनिको को करना हैं. इसमे कोई बदलाव नहीं किया जायेगा. और इस नयी बंदूक से उत्पन्न हुई समस्या को सुलझाने से साफ़ इनकार कर दिया..
हमेशा ही अंग्रेजी हुकूमत ने सेना के सिपाहियों की नैतिक-धार्मिक भावनाओं का अनादर करते ही रहते थे. लेकिन यह चर्बी से बने कारतूस की जानकारी लगने से उन्हें काफी आहात हुआ और सेना में सिपाही के रूप में कार्यरत मंगल पांडे के साथ साथ अधिकतर भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजो  को एक बड़ा सबक सिखाने के लिए मन में ठान ली और निर्णय कर लिया की हम सब इन कारतूस का इस्तेमाल किसी सूरत में नहीं करेंगे.
  • 29 मार्च सन् 1857   
इधर अंग्रेजी हुकूमत अपनी सत्ता में चूर अपनी जिद्द पर  अड़ी थी. 29 मार्च सन् 1857 को जब पहली बार कारतूस को सैनिको के बीच जब बाटने को हुआ तो.  तब बेरहामपुर की 19 वीं नेटिव इंफ़ैंट्री में सिपाही रहे मंगल पाण्डेय ने इस कारतूस को लेने से साफ़ मना  कर दिया. 

और उसके साथ ही भड़क उठे अग्रेजी सेना के अफसरों पर और उन्हें भला-बुरा कहना शुरू कर दिया.  

इसे देख अंग्रेजी सेना के अफसर ने सिपाहियों को आदेश दिया की गिरफ्तार कर लिया जाए इस विद्रोही को.  लेकिन सेना के सिपाहियों ने अंग्रेज अफ़सर की आज्ञा को नहीं मानी. इससे क्रोधित सेना के अंग्रेज अफ़सर  सार्जेंट हडसन खुद ही मंगल पाण्डेय को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा.  जैसे ही घोड़े पर सवार पलटन के सार्जेंट हडसन मंगल पाण्डेय की ओर बढ़ा तब वीर मंगल पांडे ने अपने साथियों को विरोध के लिये ललकारा.
 फिरंगी को मारो 
और इसी के साथ उस सेना के अफसर को गोली मार दी. गोली लगते ही   हडसन  घोड़े से नीचे गिर पड़ा और तड़पने लगा. गरजते हुए महावीर मंगल पाण्डेय ने कहा......
खबरदार, जो कोई आगे बढ़ा! आज हम तुम्हारे अपवित्र हाथों को ब्राह्मण की पवित्र देह का स्पर्श नहीं करने देंगे.
इसे देख लेफ्टिनेंट बॉब आगे बढ़ा  और इस गोरे ने महावीर मंगल पांडे को घेरना चाहा.  तब फिर वीर मंगल पाण्डेय ने  लेफ्टिनेंट बॉब पर गोली चला दी.लेकिन गिरते गिरते उस गोर ने अपनी बंदूख से सीधा वीर पाण्डेय पर गोली दागी. लेकिन बिजली के तेज़ गति से अपना स्थान बदलते हुए वीर मंगल पाण्डेय ने अपनी जान बचा ली. लेकिन गुस्से से लाल अंग्रेजी अफसर ने अपनी तलवार निकाल ली और आगे बढ़ा लेकिन वीर पाण्डेय ने मुकाबला करते हुए उसे गोली मार उसका वध कर डाला. इसी तरह 1857 में पहली बार किसी क्रांतिकारी ने दो फिरंगी की बलि  ली.  
अंग्रेजो की बलि चढाने के बाद स्वयं से ही उन्होंने भारत माता के चरणों में अपनी भेट चढाने के लिए अपने सीने से पर गोली चला दी लेकिन वह गोली पसली में जा लगी और वो घायल हो गए. तब अंग्रेजी सैनिको ने उन्हें गिफ्तार कर लिया. उसके बाद उन्हें टार्चर किया गया की कहा अपने साथियों का नाम बताओ जो इस क्रांतिकारी योजना में शामिल थे. लेकिन उनका मुह आखिरी दम तक कोई ना खुलवा सके अंग्रेजी सरकार. 

जाने मंगल पांडे की जीवनी को

  • 8 अप्रैल फाँसी  
अंग्रेजी हुकूमत ने न्याय के नाम पर एक झूठा नाटक रचा और उन्हें अदालत में पेश किया गया. बहस के दौरान अदालत ने अपना फैसला सुनाया की  8 अप्रैल के दिन मंगल पाण्डेय को फांसी की सजा सुनाती है. 

जब 8 अप्रैल, 1857 का सूर्य उदय हुआ तब उन्हें फांसी के लिए लाया गया तब वहा के जल्लादों ने साफ़ मना कर दिया.  भारत के वीर मंगल पांडे के पवित्र ख़ून से अपने हांथों को रँगने के लिए. तब अंग्रेजो ने  कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाए और वो ही इस महावीर को फांसी दी. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत मंगल पांडे आज़ादी के हवन कुण्ड में अपने प्राणों की आहुति दे दी और भारत माँ का लाल मंगल पाण्डेय सदा के लिए अमर हो गया.

दोस्तों भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत मंगल पांडे की जीवनी  "History Of Mangal Pandey" पर लिखे इस लेख को  लिखने में मुझसे जो भी त्रुटी हुयी हो उसे छमा करे और हमारा इस विषय में सहयोग दे ताकि मैं अपनी गलतियों को सुधार  सकू. आशा करता हूँ की आप को यह लेख पसंद आया होगा.

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