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संगीतकार शंकर सिंह की जीवनी - Music Director Shankar Singh Biography In Hindi

संगीतकार शंकर सिंह की जीवनी - Music Director Shankar Singh Biography In Hindi

दोस्तों आज के आर्टिकल (Biography) में जानते हैं,  महान संगीतकार  की जोड़ी शंकर-जयकिशन में से एक संगीतकार शंकर सिंह की जीवनी” (Music Director Shankar Singh Biography In Hindi) के बारे में. जो आज हमारे बीच नहीं रहे. तो देर कैसी आईये जानते हैं संगीतकार शंकर सिंह के बायोग्राफी के बारे में. और उससे पहले गुनगुनाते हैं उनके द्वारा संगीत दिए गए नगमे की एक लाइन को.  
जाने कहाँ गये वो दिन, कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछायेंगे चाहे कही भी तुम रहो, चाहेंगे तुम को उम्रभर तुम को ना भूल पायेंगे 
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एक झलक  महान संगीतकार शंकर सिंह की जीवनी पर :
शंकर सिंह का जन्म 15 अक्टूबर, 1922 को हैदराबाद में हुआ. इनके पिता का नाम रामसिंह रघुवंशी था वो  रघुवंशी मूलत: मध्य प्रदेश के रहने वाले थे लेकिन वो परिवार समेत हैदराबाद में बस गए थे. शंकर जी को बचपन से ही कसरत करना और कुश्ती लड़ना साथ शारीर को चुस्त दुरुस्त रखना उनका सब से बड़ा शौख था.


संगीत की तरफ झुकाव :
कसरत करने के बाद भगवान शिव की पूजा भी किया करते थे. और वहा मंदिर में पूजा अर्चना के वक्त  तबला वादक तबला भी बजाया करते थे जिसे वो बड़े ही ध्यान से सुना करते थे और तबले की एक एक थाप  में खो से जाते थे. और इसी तरह उनमे  तबला बजाने की लगन लग और दिन प्रति दिन यह लगन बढती चली गयी.


तबले के दीवाने :
और तबले के दीवाने शंकर सिंह जी महफ़िलों में जाने लगे तबला सुनने के लिए तभी एक महफ़िल में उस्ताद नसीर खान की निगाह शंकर जी  पर पड़ी उनका तबले के प्रति इतना प्यार देखते हुए उन्हें अपना शिष्य बना लिया.

तवायफ़ के कोठे पर:
कहते हैं की उनपर तबले की धुन इस कदर छाई हुयी थी की एक दिन गली से गुज़रते हुए तबले की आवाज़ सुन कर तवायफ़ के कोठे पर पहुँच गये. और उसके बाद वहा के तबला वादक को गलत तरीके से तबले को बजाने पर टोका और कहा सही से नहीं बजा रहे हो ठीक से बजाओ.

यह सुनकर वह का तबला वादक भड़क गया और बात बढ़ गयी तब लोगो ने कहा तुम्ही सही बजा कर दिखाओ तब शंकर जी ने बड़े ही काबिल अंदाज़ में सफाई से तबले को बजाया जिसे सुनकर वह उपस्थित तमाम log वाह वाह करने लगे और तारीफ पे तारीफ करने लगे.

नाट्य मंडली में: 
तबला की और बारीकी जानने तथा तबले में निखार लाने के उदेश्य से नाट्य मंडली में शामिल हो गए. और इसी के साथ  पृथ्वी थियेटर्स में 75 रुपये मासिक पर नौकरी कर ली एक तबला वादक के रूप में. 

और इसी के साथ उन्हें वही थियेटर्स में छोटी-मोटी भूमिकाएँ मिल जाती थी नाटकों में करने के लिए भी. 

उसी दौरान उन्होंने तबले के साथ साथ सितार को भी  बजाना सीख लिया. और सुर और तार में महारथ हासिल कर ली.

 दत्ताराम  से मुलाक़ात:
संगीत के साथ साथ अपने नियम से कसरत करते थे उस दौरान कसरत करने थियेटर के पास ही कुछ दूर पर बनी व्यायामशाला में  जाया करते थे तब उनकी नज़र दत्ताराम पर पड़ी और उनसे मुलाकात हुयी.

दत्ताराम जी तबले और ढोलक के माहिर थे. तब शंकर जी तबले और ढोलक के बारीक़ हुनर दत्ताराम जी से सिखने लगे. 

शंकर जी के वादन से काफी प्रभावित हुए दत्ताराम जी तब उन्होंने फ़िल्मों के अन्दर संगीत का कार्य दिलाने के लिए दादर ले आये और उनकी मुलाकात गुजराती फ़िल्मकार चंद्रवदन भट्ट से कराई.

 जयकिशन जी  से मुलाक़ात:
जिस वक्त शंकर जी और दत्ताराम जी  फ़िल्मकार चंद्रवदन भट्ट के यहाँ पहुंचे थे तब वहा फिल्मो में काम की तलाश में जयकिशन जी भी पहुंचे थे.

और साथ ही अन्दर बुलाने के इंतज़ार में साथ ही बाहर बैठे थे. और आपस की बात-चित से पता चला की  जयकिशन जी "हारमोनियम के जादूगर" है और बहुत ही अच्छा बजाते है.

संगीतकार शंकर सिंह की जीवनी - Music Director Shankar Singh Biography In Hindi

और इसी के साथ शंकर जी ने जयकिशन जी को पृथ्वी थियेटर से जोड़ लिया क्युकि थियेटर में एक अच्छा हारमोनियम मास्टर की जरुरत थी. दोनों साथ मिल कर काम करने लगे. और इसी तरह दोनों की दोस्ती बढती गयी और पक्के मित्र बन गए.

राजकपूर से मुलाकात:
 राज कपूर जी अपने आने वाली  पहली फिल्म के लिए पृथ्वी थियेटर्स पहुंचे तब  शंकर - जयकिशन की मुलाकात राज कपूर से हुयी.   

तब  राज कपूर ने अपनी पहली फिल्म के लिए पृथ्वी थियेटर्स के संगीतकार राम गाँगुली को लिया और साथ ही शंकर-जयकिशन को सहायक  संगीतकार के रूप लिया.

संगीत की रिकार्डिंग शुरू होने से पहले बरसात के लिए बनायीं जा रही धुन किसी और फिल्म की नक़ल जैसी लगी तब उन्हें हल्का गुस्सा आया संगीतकार राम गाँगुली पर. 

फिल्म बरसात से आगमन:
जब राज कपूर संगीत के प्रतिभाशाली गुणों से भरे  शंकर जी की 'अम्बुआ का पेड़ है, वही मुडेर है, मेरे बालमा, अब काहे की देर है'  वाली धुन सुनी जिसे शंकर सिंह ने खुद लिखा भी और उसे संगीत भी दिया था. 

जिया बेकरार है:
यह कम्पोज़िशन सुन कर राज कपूर कायल हो गए और इसी के साथ बरसात के लिए संगीत देने का कार्य शंकर - जयकिशन जी को दिया. 

और बरसात फिल्म में ही इसी धुन पर यह नगमा कम्पोज़ किया. "जिया बेकरार है, छायी बहार है आजा मेरे बलमा तेरा इंतज़ार हैं.' 

राज कपूर की बरसात फिल्म में शंकर जयकिशन की जोड़ी ने  सुपरहिट संगीत दिया जिया बेकरार है और "बरसात में हमसे मिले तुम सजन तुमसे मिले हम बरसात में"  यह सॉंग लता जी ने गया था.

कामयाबी की ओर:
इसी फिल्म के साथ शंकर जयकिशन की जोड़ी एक कामयाब संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बना ली. और सफलता की और कदम बढ़ने लगे.

साथ ही साथ राजकपूर के बहुत करीब आ गए और उनके पसंदीद संगीतकार बन गये. 

और इस जोड़ी ने राजकपूर की फ़िल्मों के लिये एक से बढ़ कर एक संगीत दिया और फिल्मो को संगीत के माध्यम से कामयाबी दिलाई.

शंकर जयकिशन ने राज कपूर की कुल 19 फिल्मो में अपना संगीत दिया. और उसमे से  9 फिल्मे RK बैनर के  तले  बनी थी.


संगीत की आवाज़ बने :
Shankar Jaikishan जी ने अपने द्वारा बनायीं गयी तमाम अलग अलग धुनों को गाने का मौका उस दौरान के तमाम सफल गायक गायिकाओं को दिया जिसमे 
  • लता जी 
  • मुकेश जी 
  • रफी जी 
  • किशोर कुमार जी 
  • मन्ना डे जी
  • गीता दत्त जी 
  • आशा भोंसले जी
  • शमशाद बेगम जी 
  • आरती मुखर्जी जी 
  • भूपेन्द्र जी 
  • तलत महमूद जी 
  • मुबारक बेगम जी 
  • चंद्राणी मुखर्जी जी 
  • सुबीर सेन जी 
  • दिलराज कौर जी थे. 
जिन्होंने अपनी आवाज़ दी, शंकर जयकिशन जी के संगीत को सबसे ज्यादा अपनी आवाज़ मोहम्मद रफी साहब ने दी और  कुल  363 गानों  को गाया  और इसी के साथ  134 गाने में अपनी मधुर आवाज़ मुकेश जी ने दी थी.  

एक झलक सुपरहिट गीतों की:
  • आवारा हूं, आवारा हूं 
  • प्यार हुआ इकरार हुआ है
  • सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी
  • मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया
  • सजन रे झूठ मत बोलो
  • अजीब दास्तां है.
  • जीना यहां मरना यहां.
  • जिया बेकरार है.
  • तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को.
  • पर्दे में रहने दो.
  • बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं.
  • आजा सनम मधुर चांदनी में हम.
  • घर आया मेरा परदेशी.
  • मेरा जूता है जापानी
  • बहारों फूल बरसाओ.
  • जाने कहां गए वो दिन


पुरस्कार:
दोनों की जोड़ी को फिल्म फेयर  की तरफ से 9 बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया और अंतिम के तीन सर्वश्रेष्ठ संगीतकार होने का  पुरस्कार  लगातार तीन वर्ष तक मिले.

आखिरी सफ़र:
फ़िल्मी दुनिया की प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी संगीत के बादशाह की हैसियत से लगभग दो दशक संगीत जगत पर राज किया  जो वर्ष 1971 तक कायम रही और इसी के साथ सबसे पहले  जयकिशन जी का निधन हो गया 12 सितंबर 1971 को और फिर 26 अप्रैल1987 को शंकर जी का निधन हो गया और हमेशा हमेशा के लिए संगीत का जादूगर शंकर जी हम सब से सदा-सदा के लिए दूर चले गए और दुनिया को अलविदा कह दिया. "जाने कहां गए वो दिन"


दोस्तों अगर संगीतकार शंकर सिंह की जीवनी  - Music Director Shankar Singh Biography In Hindi के इस लेख को  लिखने में मुझ से कोई त्रुटी हुयी हो तो छमा कीजियेगा और इसके सुधार के लिए हमारा सहयोग कीजियेगा. आशा करता हु कि आप सभी को  यह लेख पसंद आया होगा. 


धन्यवाद आप सभी मित्रों का जो आपने अपना कीमती समय इस Wahh Blog को दिया.


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