मजेदार 5 हास्य व्यंग्य कविता अल्हड बीकानेरी जी की
हास्यं व्यंग्य हमारे समाज का एक अंग हैं. और हँसना हँसाना हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. और इस कला के महारथी अल्हड़ बीकानेरी इनका जन्म हरियाणा के रेवाड़ी जिले के बीकानेर गांव में 17 मई, 1937 को हुआ था. लेकिन इनका असली नाम श्री श्यामलाल शर्मा था.. हरियाणा की मैट्रिक परीक्षा पूरे प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त उसके पश्चात्य उन्होंने इंजीनियरिंग करने लगे लेकिन दुसरे वर्ष वो फेल हो गए. उसके बाद डाक तार विभाग में क्लर्क की नौकरी करनी शुरू कर दी.
अल्हड़ बीकानेरी अपना गीत गज़ल, कविताये छंद लिखने का सफ़र 1962 को शुरू किया और उन्होंने उपनाम से ऊर्दू में गज़लें लिखनी शुरू कर दी. और 1967 तक ऊर्दू में गज़लें लिखते रहे.
बताते चले की इनका रुझान इस क्षेत्र में और कैसे बढ़ा एक बार कवि सम्मेलन के कर्यक्रम को देखने दिल्ली के शक्ति नगर पहुचे और वहा कवि सम्मेलन में हास्य कवि काका हाथरसी की हास्य कविताओं की बारिश हो रही थी, जिसे देख अल्हड़ बीकानेरी जी के मन में एक विचार आया क्यों ना मैं भी हास्य कविता के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाऊ, और उसी के बाद से ही हास्य कविताओं की ओर उनका झुकाव हो गया और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड कर नहीं देखा और समय के साथ उनको इस हास्य कविता के क्षेत्र में सबसे माहिर खिलाडी बना दिया.. और हास्य कवितायें लिखते गए. ज्यादा जानकारी के लिए Yaha Click करे
तो आईये आज इस अर्तिच्कल में पढ़ते हैं अल्हड़ बीकानेरी जि द्वारा लिखे गए हास्य रचना को और लोटपोट होते हैं पढ़ते पढ़ते....
Top 5 Alhad Bikaneri Hasya Kavita
Bas Ek Baar Mujhko Sarkaar Banane Do...
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जो बुढ्ढे खूसट नेता हैं, उनको खड्डे में जाने दो, बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो. मेरे भाषण के डंडे से भागेगा भूत गरीबी का, मेरे वक्तव्य सुनें तो झगड़ा मिटे मियां और बीवी का. मेरे आश्वासन के टानिक का एक डोज़ मिल जाए अगर, चंदगी राम को करे चित्त पेशेंट पुरानी टी बी का. मरियल सी जनता को मीठे, वादों का जूस पिलाने दो, बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो. जो कत्ल किसी का कर देगा मैं उसको बरी करा दूँगा, हर घिसी पिटी हीरोइन कि प्लास्टिक सर्जरी करा दूँगा. लड़के लड़की और लैक्चरार सब फिल्मी गाने गाएंगे, हर कालेज में सब्जैक्ट फिल्म का कंपल्सरी करा दूँगा.. हिस्ट्री और बीज गणित जैसे विषयों पर बैन लगाने दो, बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो.. जो बिल्कुल फक्कड़ हैं, उनको राशन उधार तुलवा दूँगा, जो लोग पियक्कड़ हैं, उनके घर में ठेके खुलवा दूँगा.. सरकारी अस्पताल में जिस रोगी को मिल न सका बिस्तर, घर उसकी नब्ज़ छूटते ही मैं एंबुलैंस भिजवा दूँगा.. मैं जन-सेवक हूँ, मुझको भी, थोडा सा पुण्य कमाने दो, बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो... श्रोता आपस में मरें कटें कवियों में फूट नहीं होगी, कवि सम्मेलन में कभी, किसी की कविता हूट नहीं होगी.. कवि के प्रत्येक शब्द पर जो तालियाँ न खुलकर बजा सकें, ऐसे मनहूसों को, कविता सुनने की छूट नहीं होगी.. कवि की हूटिंग करने वालों पर, हूटिंग टैक्स लगाने दो, बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो... ठग और मुनाफाखोरों की घेराबंदी करवा दूँगा, सोना तुरंत गिर जाएगा चाँदी मंदी करवा दूँगा.. मैं पल भर में सुलझा दूँगा परिवार नियोजन का पचड़ा, शादी से पहले हर दूल्हे की नसबंदी करवा दूँगा.. होकर बेधड़क मनाएंगे फिर हनीमून दीवाने दो, बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो..
अल्हड़ बीकानेरी हास्य व्यंग्य कविता
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5 हास्य व्यंग्य कविता अल्हड बीकानेरी
Chunav Ke Kya Khel Tamashe Hain
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चुनावों के क्या खेल तमाशे हैं नेताओं की कुर्सी है, जनता को दिलासे हैं. बस जिनका चले, इनको वे फोड़ के खा जाएं एमएलए नहीं हैं ये पानी के बतासे हैं. नेताओं के नख-शिख की, सजधज तो जरा देखो पायजामों में फरसे हैं, टोपी में गंडासे हैं. |
Alhad Bikaneri Ki Funny Poem.
Asali Makhan Kaha Aaj Kal
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असली माखन कहाँ आजकल ‘शार्टेज’ है भारी, चरबी वारौ ‘बटर’ मिलैगो फ्रिज में, हे बनवारी, आधी टिकिया मुख लिपटाय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी, कान्हा, बरसाने में आय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी. मटकी रीती पड़ी दही की, बड़ी अजब लाचारी, सपरेटा कौ दही मिलैगो कप में, हे बनवारी, छोटी चम्मच भर कै खाय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी, कान्हा, बरसाने में आय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी। नंदन वन के पेड़ कट गए, बने पार्क सरकारी, ‘ट्विस्ट’ करत गोपियाँ मिलैंगी जिनमें, हे बनवारी, ‘‘संडे’ के दिन रास रचाय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी, कान्हा, बरसाने में आय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी। जमना-तट सुनसान, मौन है बाँसुरिया बेचारी गूँजत मधुर गिटार मिलैगो ब्रज में, हे बनवारी फिल्मी डिस्को ट्यून सुनाय जइयो बुलाय गई राधा प्यारी कान्हा, बरसाने में आय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी, सुखे ब्रज के ताल, गोपियाँ ‘स्विमिंग-पूल’ बलिहारी पहने ‘बेदिंग सूट’ मिलैंगी जल में, हे बनवारी उनके कपड़े चुस्त चुराय जइयो बुलाय गई राधा प्यारी। कान्हा, बरसाने में आय जइयो बुलाय गई राधा प्यारी। ‘रॉकेट’ बन उड़ गई चाँद पर रंग-भरी पिचकारी, गोपिन गोबर लिए मिलैंगी कर में, हे बनवारी, मुखड़ौ होली पै लिपवाय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी, कान्हा, बरसाने में आय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी। सूनौ पनघट, फूटी गगरी, मेम बनी ब्रजनारी, जूड़ौ गुंबद-छाप मिलौंगो सिर पै, हे बनवारी, दरसन कर कै, प्यास बुझाय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी, कान्हा, बरसाने में आय जइयो, बुलाय गई राधा प्यारी।
अल्हड़ बीकानेरी हास्य व्यंग्य कविता
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श्यामलाल शर्मा (अल्हड बीकानेरी) की हास्य कविता
हिंदी की हो रही दुर्दशा पर काका हाथरसी यह रचना
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मंत्र पढ़वाए जो पंडित ने, वे हम पढ़ने लगे, यानी ‘मैरिज’ की क़ुतुबमीनार पर चढ़ने लगे. आए दिन चिंता के फिर दौरे हमें, पड़ने लगे, ‘इनकम’ उतनी ही रही, बच्चे मगर बढ़ने लगे. क्या करें हम, सर से अब पानी गुज़र जाने को है, सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है. घर के अंदर मचती रहती है सदा चीख़ोपुकार, आज है पप्पू को पेचिश, कल था बंटी को बुखार. जान कर भी ठोकरें खार्इं हैं हमने बारबार, शादी होते ही शनीचर हो गया हम पर सवार. अब तो राहू की दशा भी हम पे चढ़ जाने को है, सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है. देखिये क़िस्मत का चक्कर, देखिये कुदरत की मार, दिल में है पतझड़ का डेरा, घर में बच्चों की बहार. मुँह को तकिये में छुपाकर, क्यों न रोए ज़ारज़ार, रोटियों के वास्ते ‘क्यूँ’, चाय की खातिर क़तार. अपना नंबर और भी पीछे खिसक जाने को है, सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है. कोई ‘वेकेंसी’ नहीं घर हो गया बच्चों से ‘पैक’, खोपड़ी अपनी फिरी भेज हुआ बीबी का ‘क्रैक’. खाइयाँ खोदें कहीं छुप कर बचाएँ अपनी ‘बैक’, होने ही वाला है हम पर आठवाँ ‘एयरअटैक’. घर में फिर खतरे का भोंपू भैरवी गाने को है, सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है. Top 5 Alhad Bikaneri Hasya Kavita |
Hapto Unase Mile Ho Gaye, Virah Me Pilpile Ho Gaye..
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हफ्तों उनसे मिले हो गए विरह में पिलपिले हो गए. सदके जूड़ों की ऊंचाइयां सर कई मंजिलें हो गए. डाकिए से ‘लव’ उनका हुआ खत हमारे ‘डिले’ हो गए. परसों शादी हुई, कल तलाक क्या अजब सिलसिले हो गए. उनके वादों के ऊंचे महल क्या हवाई किले हो गए. नौकरी रेडियो की मिली गीत उनके ‘रिले’ हो गए. हाशिये पर छपी जब ग़ज़ल दूर शिकवे-गिले हो गए. |