Gulzar Love, Romantic And Sad Hindi Poetry
गुलज़ार साहब की शायरी ग़ज़ल
Log Kahte Hain Meri Aankhen, Meri Maan Si Hain
Tujhe Pechanoonga Kaise? Tujhe Dekhaa Hi Nahin!
Dhoondhaa Karta Hoon Tumhen, Apne Chehare Men Kahin
Log Kahte Hain Meri Aankhen, Meri Maa,n Si Hain.
Yoon To Labrez Hain PaanI Se,
Magar Pyasi Hain Kaan Men Chhed Hai
Paidayashi aaya hoga Toone mannat ke liye
Kaan Chhidaya Hoga
तुझे पहचानूंगा कैसे? तुझे देखा ही नहीं
ढूँढा करता हूं तुम्हें अपने चेहरे में ही कहीं
लोग कहते हैं मेरी आँखें मेरी माँ सी हैं
यूं तो लबरेज़ हैं पानी से मगर प्यासी हैं
कान में छेद है पैदायशी आया होगा
तूने मन्नत के लिये कान छिदाया होगा
सामने दाँतों का वक़्फा है तेरे भी होगा
एक चक्कर तेरे पाँव के तले भी होगा
जाने किस जल्दी में थी जन्म दिया, दौड़ गयी
क्या खुदा देख लिया था कि मुझे छोड़ गयी
ढूँढा करता हूं तुम्हें अपने चेहरे में ही कहीं
लोग कहते हैं मेरी आँखें मेरी माँ सी हैं
यूं तो लबरेज़ हैं पानी से मगर प्यासी हैं
कान में छेद है पैदायशी आया होगा
तूने मन्नत के लिये कान छिदाया होगा
सामने दाँतों का वक़्फा है तेरे भी होगा
एक चक्कर तेरे पाँव के तले भी होगा
जाने किस जल्दी में थी जन्म दिया, दौड़ गयी
क्या खुदा देख लिया था कि मुझे छोड़ गयी
Bahut Mushkil Se Karata Hun Teri Yaadon Ka Karobar,
Munafa Kam Hain, Par Guzara Ho Jata Hain..
Munafa Kam Hain, Par Guzara Ho Jata Hain..
बहुत मुश्किल से करता हूँ, तेरी यादों का कारोबार,
मुनाफा कम है, पर गुज़ारा हो ही जाता है
मुनाफा कम है, पर गुज़ारा हो ही जाता है
Suno.. Jara Rasta To Batana.
Mohabbat Ke Safar Se Wapasi Hain Meri..
सुनो….ज़रा रास्ता तो बताना.
मोहब्बत के सफ़र से, वापसी है मेरी..
Jo Bhi Chhupa Rakha Hain Man Me, Luta Dene Ka Man Hain.
आज हर ख़ामोशी को मिटा देने का मन है
जो भी छिपा रखा है मन में लूटा देने का मन है..
Sham Se Aankhn Me Nami Si Hai.
Aaj Fir Aap Ki Kami Si Hai.
Waqt Rahata Nahin Kahi Tham Kar
Is Ki Aadat Bhi Adami Si Hain....
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं थमकर
इस की आदत भी आदमी सी है
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था ख़त का रुख़ दिखा रहा था
कुछ और भी हो गया नुमायाँ मैं अपना लिक्खा मिटा रहा था
उसी का ईमाँ बदल गया है कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था
वो एक दिन एक अजनबी को मेरी कहानी सुना रहा था
वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था
बताऊँ कैसे वो बहता दरिया जब आ रहा था तो जा रहा था
धुआँ धुआँ हो गई थी आँखें चराग़ को जब बुझा रहा था
मुंडेर से झुक के चाँद कल भी पड़ोसियों को जगा रहा था
ख़ुदा की शायद रज़ा हो इसमें तुम्हारा जो फ़ैसला रहा था
(रज़ा = मर्ज़ी, इच्छा) (नुमायाँ = प्रकट)
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
Woh khat ke purze uda raha tha
Kuch aur bhi ho gaya numaya Main apna likha mita raha tha
Hawaon ka rukh dikha raha tha Woh khat ke purze uda raha tha
Ussi ka imaan badal gaya hai Kabhi jo mera khuda raha tha
Hawaon ka rukh dikha raha tha Woh khat ke purze uda raha tha
Woh ek din ek ajnabi ko Meri kahani suna raha tha
Hawaon ka rukh dikha raha tha Woh khat ke purze uda raha tha
Woh umar kam kar raha tha meri Main saal apne badha raha tha
Hawaon ka rukh dikha raha tha
Woh khat ke purze uda raha tha Hawaon ka rukh dikha raha tha.
- Album :: Marasim (1999)
- Lyricist : Gulzar,
- Singer : Jagjit Singh,
- Aap Ke Baad Har Ghadi - Ghazal
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है.
रात को दे दो चाँदनी की रिदा
दिन की चादर अभी उतारी है.
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन में तारी है.
कल का हर वाक़िआ' तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है.
रात को दे दो चाँदनी की रिदा
दिन की चादर अभी उतारी है.
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन में तारी है.
कल का हर वाक़िआ' तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है.