माँ पर शायरी मुनव्वर राना की कलम से
मुन्नवर राणा जी शायरी की दुनिया में एक ऐसा नाम हैं जो माँ के रूप को बड़े ही सरल शब्दों में शायरियों के द्वारा लिखते हौं और बताते हैं. मुन्नवर राणा द्वारा लिखी माँ के लिए ये शायरियां जिनका कोई जोड़ नहीं हैं. कम से कम शब्दों में माँ के प्यार को लिखने की कला तो बस मुन्नवर राणा साहब ही जानते हैं. उनकी कलम में मानो खुद माँ का ही वास हो, उनकी कलम तो बस माँ के प्यार के लिए बनी हैं. मुन्नवर राणा द्वारा लिखी गयी माँ नामक किताब जो पुरे विश्व में मशहूर हैं. मुन्नवर राणा हमेशा माँ के प्यार के नाम से जाने जाते हैं और उनका लेखन कार्य में कोई जोड़ नहीं हैं..
दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में मुन्नवर राणा द्वारा लिखी माँ के ऊपर शायरी के रूप में लिखी वो लाईने पढेगे जो उनके द्वारा लिखी गयी हैं और काफी मशहूर हैं . जिसे आप सोशल मिडिया पर और अन्य वेब साईटों पर जरुर पढ़ा और उनके द्वारा सुना भी होगा कुछ चुनिन्दा खास शायरी माँ से जुडी आप के लिए wahh टीम द्वारा आप के समक्ष पेश हैं . तो देर कैसी आईये पढ़ते हैं.....
पढ़े ढेरों Munawwar Rana शायरी माँ के नाम
मुनव्वर राना की शायरी माँ के नाम
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चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखि है Chalti firti hui aankhon se azan dekhi hai Maine jannat to nahi dekhi hai maa dekhi hai Maa Par Shayari - Munawwar Rana |
2 | मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है Mujhe kadhe hue takiye ki kya jaroorat hai Kisi ka haath abhi mere sar ke neeche hai |
3 | इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है Is tarah mere gunaahon ko wo dho deti hai Maa bahut gusse me hoti hai to ro deti hai |
4 | ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे Khud ko is bheed me tanha nahi hone denge Maa tujhe hum abhi boodha nahi hone denge |
5 | खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही Khaane ki cheeze Maa ne jo bheji hai gaaon se Baasi bhi ho gai hai to lazzat wahi rahi "माँ पर शायरी - मुनव्वर राना " |
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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई Kisi ko ghar mila hisse mein ya koi dukaan aai Main ghar mein sabse chhota tha mere hisse mein Maa aai |
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लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती Labon pe uske kabhi baddua nahi hoti Bas ek Maa hai jo kabhi khafa nahi hoti |
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ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया Ae andhere dekh le munh tera kala hogaya Maa ne aankhe khol di ghar me ujaala ho gaya
पढ़े ढेरों माँ पर शायरी मुनव्वर राना की कलम से
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मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना Maine rote hue ponchhe the kisi din aansoo
Muddaton Maa ne nahi dhoya dupatta apna
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यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
Yahin rahoonga kahin umra bhar na jaaunga
Zameen Maa hai ise chhod kar na jaaunga
माँ पर शायरी - मुनव्वर राना |
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कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी Kuchh anhi hoga to aanchal me chhupa legi mujhe Maa kabhi sar pe khuli chhat nahi rahne degi |
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मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
Meri khwaahish hai ki main phir se farishta ho jaaun Maa se is tarah lipat jaaun ki baccha ho jaaun पढ़े ढेरों माँ पर शायरी मुनव्वर राना की कलम से |
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बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था Bahan ka pyar Maa ki mamata do cheekhati Yahi tohafe the wo jinko main aksar yaad karta tha |
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दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है Duaaen Maa ki pahunchaane ko meelo meel jati hai Ki jab pardesh jane ke liye beta nikalta hai Maa Par Shayari - Munawwar Rana |
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बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है Barbaad kar diya hume pardesh ne magar Maa sabse kah rahi hai ki beta maze main hai |
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मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है Mukaddas muskuraahat Maa ke hontho par larzati hai Kisi bacche ka jab pahla sipaara khatm hota hai |
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जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा Jab tak raha hoon dhoop me chaadar bana raha Main apni Maa ka aakhiri jewar bana raha माँ पर शायरी - मुनव्वर राना |
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मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है Musibat ke dino me humesha sath rahati hai Pyambar kya pareshani mein ummat chhod sakta hai |
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अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’ माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है Ab bhi chalti hai jab aandhi kabhi gham ki Rana Maa ki mamta mujhe baahon me chhupa leti hai |
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दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है Din bhar ki mashakkat se badan chur hai lekin Maa ne mujhe dekha to thkan bhool gai hai पढ़े ढेरों माँ पर शायरी मुनव्वर राना की कलम से |
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दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा Diya hai Maa ne mujhe Doodh bhi wajoo karke Mahaaze-jang se main laut kar na jaaunga Maa Par Shayari - Munawwar Rana |
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हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे Haadson ki gard se khud ko bachaane ke liye Maa hum apne saath bas teri dua le jayenge माँ पर शायरी - मुनव्वर राना |
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माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती Maa ke aage yoon kabhi khul kar nahi rona Jahan buniyaad ho itani nami achchhi nahi hoti |
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बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता Bujurgon ka mere dil se abhi tak dar nahi jaata Ki jab tak jaagti rahti hai Maa main ghar nahi jaata |
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ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता, मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है Ye aisa karz hai jo main adaa kar hi nahi sakta Main jab tak ghar na lautoon, meri maa sazde me rahti hai |