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Best Mohsin Naqvi Poetry / मोहसिन नकवी ग़ज़ल - शायरी

Mohsin Naqvi  Ghazals, Shayari, Love & Sad  Poetry

Best-Mohsin-Naqvi-Poetry


Thehar Jao Ke Hairani To  Jayen 

ठहर जाओ के हैरानी तो जाये
तुम्हारी शक़्ल पहचानी तो जाये

शब-ए-ग़म तू ही मेहमाँ बन के आ जा
हमारे घर की वीरानी तो जाये

ज़रा खुल कर भी रो लेने दो हमको
कि दिल की आग तक पानी तो जाये

बला से तोड़ डालो आईनों को
किसी सूरत ये हैरानी तो जाये


  • शायर :- मोहसिन नकवी
  • गायक एवं संगीत :- गुलाम अली

Best-Mohsin-Naqvi-Poetry
मोहसिन नकवी  ग़ज़ल - शायरी 

Rait Par Likh Kar Mera Naam Mitaya Na Karo

रेत पर लिख के मेरा नाम मिटाया न करो
आँख सच बोलती हैं प्यार छुपाया न करो

लोग हर बात का अफ़साना बना लेते हैं
सबको हालात की रूदाद सुनाया न करो

ये ज़ुरूरी नहीं हर शख़्स मसीहा ही हो
प्यार के ज़ख़्म अमानत हैं दिखाया न करो

शहर-ए-एहसास में पथराव बहुत हैं 'मोहसिन'
दिल को शीशे के झरोखों में सजाया न करो

आँखें सच बोलती है ,प्यार छुपाया न करो
रेत पे लिख के मेरा नाम ......



Pagal Ankhon Wali Larki

पागल आंखों वाली लड़की
इतने महेंगे ख़्वाब ना देखो
थक जाओगी

कांच से नाज़ुक ख़्वाब तुम्हारे
टूट गए तो पछताओगी

तुम क्या जानो ...!
ख़्वाब... सफ़र की धुप के तीशे
ख़्वाब... अधोरी रात का दोज़ख़
ख़्वाब... ख़यालों का पछतावा

ख़्वाबों का हासिल होना मतलब तन्हाई
महेंगे ख़्वाब खरीदना हों तो
आँखें बेचना पड़ती हैं
रिश्ते भूलना पड़ते हैं

अंदेशों की रेत ना फानको
ख़्वाबों की ओट सराब ना देखो
प्यास ना देखो
इतने महेंगे ख़्वाब ना देखो
थक जाओगी....



  1. तीशा = कुल्हाड़ी


Bichar Ke Mujh Se Kabhi Tu Ne Ye Bhi Socha He

बिछड के मुझ से कभी तू ने ये भी सोचा है
अधुरा चाँद भी कितना उदास  लगता है

ये वस्ल का लम्हा है इसे रायेगाँ न समझ
के इस के बाद वही दूरियों का सहारा है

कुछ और देर न झरता उदासियों का शजर
किसे खबर तेरे साये में कौन बैठा है

ये रख -रखाव मुहब्बत सिखा गई उस को
वो रूठ कर भी मुझे मुस्कुरा के मिलता है

मैं किस तरह तुझे देखूं नज़र झिझकती है
तेरा बदन है के ये आइनों का दरिया है



Ye Dil Ye Pagal Dil Mera Kyon Bujh Gaya Aawargi

अंदाज़ अपने देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कि कोई देखता न हो।

ये दिल ये पागल दिल मेरा, क्यों भुज गया आवारगी
इस दश्त में इक शहर था, वो क्या हुआ, आवारगी

कल शब् मुझे बेशक्ल सी, आवाज़ ने चौंका दिए
मैंने कहा तू कौन है, उसने कहा आवारगी

इक तू की सदियों से मेरा, हमराह भी हमराज़ भी
इक मैं की तेरे नाम से ना-आशना, आवारगी

ये दर्द की तनहाइयां, ये दश्त का वीरान सफ़र
हम लोग तो उकता गए, अपनी सूना आवारगी

इक अजनबी झोंके ने जब, पूछा मेरे ग़म का सबब
सहरा की बीगी रेत पर, मैंने लिखा आवारगी

ले अब तो दश-इ-शब की, साड़ी वुसातें सोने लगीं
अब जागना होगा हमें, कब तक बता आवारगी

कल रात तनहा चाँद को, देखा था मैंने ख्वाब में
‘मोहसिन’ मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी






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