टॉप 13 रचनाएँ प्रदीप गौड़ की जो दिल को छू जाएँ
फेसबुक एक ऐसा स्थान बन गया हैं जहाँ लोग अपने विचारो को लोगो के समक्ष रखते हैं. कुछ अच्छे तो कुछ बुरे इसी बीच हमारी मुलाकात एक एसे शक्स से हुयी जिनकी लेखनी पढ़ कर दिल से आवाज़ आई Wahh क्या बात हैं. अपने शब्दों को किसी किसी जादूगर की तरह इस सरल अंदाज़ में कह जाते हैं जो लोगो के दिल को छू जाती हैं. उनके द्वारा लिखी कवितायेँ, शायरी, लेख मानो शब्दों का जाल हो जो एक सरल ढंग से बिछायी गयी हो. वाकई में उनके द्वारा लिखी हर लाइन को जैसे बड़ी बारीकी के साथ कागज़ पर उतारा गया हो. हर लाइन का एक मतलब सा निकलता हैं जैसे कम शब्दों में सारी बात को कह जाना ये हैं उनकी कला.
प्रदीप गौड़ जी के बारे में इतना बता दे की जैसी उनकी सरल लेखनी हैं वेसा ही सरल स्वभाव हैं. उन्हें अपना जो भी समय मिलता हैं उस समय बड़ी निष्ठां के साथ अपनी लेखनी को देते हैं. और अपना समय निकाल कर हम सब के समक्ष Facebook द्वारा अपनि लिखी हुयी रचनाएँ उपलब्ध कराते हैं. प्रदीप जी लखनऊ शहर के रहने वाले हैंऔर उन्हें अपने इस लेखन के कार्य से बहुत प्यार हैं,
- तो देर कैसी आईये पढ़ते हैं उनकी पहली पोस्ट में कुछ उनके द्वारा लिखी रचनाये...
1 |
जिन्दगी का हर रंग उसके साथ है
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हर दुख में जिसने मुस्कुराना सीख लिया, सच में उसने ही जग में जीना सीख लिया।। जिसने काँटों से दोस्ती कर ली, उसने हर मुश्किल आसान कर ली।। जो अपने पाँवों के छालों के पास है, जिन्दगी का हर रंग उसके साथ है।। जिन्दगी हर पल शिकायतों का पुलिन्दा है, लगा दे आग फिर देख तुझमें जिन्दगी जिंदा है। |
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प्रदीप गौड़ |
2 |
फिसली जिन्दगी कुछ यूँ साँसों से
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पल भर में ये क्या हो गया, सब कुछ मिला और सब खो गया।। फिसली जिन्दगी कुछ यूँ साँसों से, जैसे फिसलती है सूखी रेत हाथों से।। चल-चल के रुकते रहे कदम ऐसे, जैसे ठिठकती है धूप बादलों में।। आँखों से बहते हुए नीर देखा, जैसे दरकता कोई नीड देखा।। |
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प्रदीप गौड़ |
3 |
बडी अजब बात देखी मैने जमाने में
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बडी अजब बात देखी मैने जमाने में, खुद के गुनाहों का बोध नहीं, पर व्यस्त हैं दूसरों को आईना दिखाने में।। वो जो डूबे रहते हैं जामों मयखाने में, अक्सर मिलते हैं गंगाजल के फायदे बताते हुए।। सारे गुण मिलते हैं उनके रावण के गुणों से, पर कसर नहीं रखते हमें राम के रास्ते पर चलाने में।। जो भटके हैं खुद ही जिन्दगी की राहों में, अक्सर वही जिद करते हैं हमें रास्ता दिखाने में।। |
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प्रदीप गौड़ |
बस लम्हों में जिन्दगी पलती रही
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बहुत पढने की कोशिश की तुझको पर हर पल तू बदलती रही, कभी अन्धेरा कभी उजाला, बस लम्हों में जिन्दगी पलती रही।। |
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प्रदीप गौड़ |
4 |
दुखों को भूल जाओ थोडा सा हँस दो
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जो है बस ये पल ही है जी लो इस पल में, खुशियाँ समेट लो कुछ नहीं रखा है कल में, कल के फेर में आज को मत खो दो, दुखों को भूल जाओ थोडा सा हँस दो।। |
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प्रदीप गौड़ |
5 |
है अन्धेरा बहुत एक दिया जलाओ
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न वादा करो न कोई उम्मीद दिलाओ, है अन्धेरा बहुत एक दिया जलाओ, हो सकता है मैं भटका हुृआ होऊ, गर तुम आलिम हो तो मुझे रास्ता दिखाओ।। |
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प्रदीप गौड़ |
6 |
जो अभी डरोगी समाज औ रीति रिवाजों से
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गर आज दूरी है तो कल नजदीकी कैसे होगी, आज पहचान न हुई तो अगले जनम मुलाकात कैसे होगी, जो अभी डरोगी समाज औ रीति रिवाजों से, अगले जनम लडने की हिम्मत कहाँ होगी।। |
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प्रदीप गौड़ |
7 |
आँसुओं को पी लेता हूँ, आईने को तोड देता हूँ
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जब भी मैं तन्हाईयों से ऊब जाता हूँ, थोडी देर तेरी तस्वीर से बात करता हूँ।। कुछ कहे कुछ अनकहे किस्से, फैले हैं आस-पास मेरे, कहीं तेरे पैरों में न चुभ जायें, मैं उनको समेट लेता हूँ।। जब कभी जिन्दगी कोई दास्ताँ, लिख देती है दिल में मेरे, अक्सर कुछ देर पढता हूँ, फिर आँसुओं से धो डालता हूँ।। कभी-कभी अक्श धुधले, से नजर आते हैं मुझको, आँसुओं को पी लेता हूँ, आईने को तोड देता हूँ।। | |
प्रदीप गौड़ |
8 |
तेरे पग से छनकती ये पायल की रुन-झून,
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एक हल्के झोंके से छू के गुजर जाती हो, दिल में अरमानों के कई फूल खिला जाती हो।। ये मदहोश करती तेरी जिस्म की खुशबु, मुझे बहारों के दरीचों का एहसास दिलाती है।। तेरे पग से छनकती ये पायल की रुन-झून, मेरे मन में जैसे रागनियों के सुर सजा जाती है।। तेरी ये खनकती, लरजती सी हँसी बरकरार रहे, मेरे हालात की फिक्र न कर बस साथ तेरा प्यार रहे।। |
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प्रदीप गौड़ |
9 |
आस्माँ पे चाँद निकला है
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कुछ मौसम भी रंगीला कुछ तेरा किरदार ऐसा है, हर तरफ बारिश का मौसम और आस्माँ पे चाँद निकला है। |
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प्रदीप गौड़ |
10 |
इतना ही सच है बाकी कुछ भी नहीं
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कौन लौटा है एक बार जाने के बाद, कहाँ है हीर कहाँ मँजनू कहाँ है शाहजहाँ, कहीं किसी में छवि दिखाओ इनकी, जो कहना है इसी जन्म में कह डालो, या तो मुहब्बत करो या ठुकरा दो मुझको।। जो मैं गया इस फानी दुनियाँ से, फिर न लौटूँगा कभी किसी जहाँ से, जो है यही है मेरे जाने के बाद कुछ भी नहीं, बस तुम हो मैं हूँ ये समय आज का, इतना ही सच है बाकी कुछ भी नहीं।। |
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प्रदीप गौड़ |
11 |
बस जरा ये फुरकत की शाम ढल जाने दो
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काश ये वक्त जरा ढहर जाये, चाहत शायद रंगों में ढल जाये।। खुशबु जरा हवाओं में घुल जाये, सारी उदासियाँ मुस्कानों में बस जाये।। पंछियों सा हवाओं में उडता फिरु, बस जरा अरमानों को पंख मिल जाये।। आँखों-आँखों में बात करने के दिन आयेंगे, बस जरा ये फुरकत की शाम ढल जाने दो।। |
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प्रदीप गौड़ |
12 |
जिन्दगी बस रोज जीने का एक नशा है
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जो काँच पे चलने से डर जायेंगे, तो जिन्दगी क्या है कैसे समझ पायेंगे।। जिन्दगी पल-पल ढलती हुई आरजू है, जो न मिल सके उसे पाने की जुस्तजु है।। न हवा है न सफा है न वफा न दगा है, जिन्दगी बस रोज जीने का एक नशा है।। तू मिले न मिले कोई साथ चले न चले अकेला सही, मैं जिन्दगी सा चलता रहूँगा मिलने की आरजू लेकर।। किसी हद किसी मोड पे तो मिल ही जायेगी, ये जो खो गये हैं पल तेरी मेरी खुशियों के।। |
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प्रदीप गौड़ |
13 |
ये उधार की जिन्दगी तू रख ले तो अच्छा है
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समय के शिलालेख पर लिखा है नाम तुम्हारा, और समय के शिलालेख पर वक्त फिसल जाते हैं शायद इसिलिये मेरी मुहब्बत फिसल जाती है।। सुना है मुहब्बत की राहें बडी अंधेरी होती हैं, शायद इसीलिये लोग दिल को जलाया करते हैं।। काश जिन्दगी की रवायतें नजर आती, दर्द की धुन्ध में हर शै गुमनाम सी हो रही।। कुछ गम कुछ दर्द पिघल रहे मेरे जाम में, पि लूँगा तो मर जाऊगा न पी तो भी मर जाऊँगा।। न अमर होना है न गुमनाम होने की ख्वाहिश है, ये उधार की जिन्दगी तू रख ले तो अच्छा है।। |
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प्रदीप गौड़ |